लखनऊ में है क्रूर जनरल हैवलाक की कब्र, कानपुर से मिटा उसका नाम अब शांतिपथ
बदलेगी मानसिकता लौटेगा गौरव कानपुर कैंट एरिया में ज्यादतर सड़कें अंग्रेज शासन काल के अफसरों के नाम पर थीं जिनका नाम बदल दिया गया था। ऐसी ही सड़क अब श ...और पढ़ें

कानपुर, जागरण संवाददाता। छावनी बोर्ड में कई सड़कों के नाम अंग्रेजों के नाम पर थे जिन्हें वर्ष 2007 में बदल दिया गया। जनरल हेनरी हैवलाक को इतिहास के पन्नों में क्रूर जनरल के नाम से जाना जाता है लिहाजा उसके नाम पर सड़क को अब शांतिपथ के नाम पर परिवर्तित कर दिया गया है। इसी तरह मेयो के नाम पर सड़क को अब कबीर पथ के नाम के जाना जाता है।
कानपुर से लखनऊ चला गया था हैवलाक
मेजर जनरल हेनरी हैवलाक ब्रिटिश सेना में जनरल पद पर था। उसने आंग्ल अफगान युद्ध, आंग्ल बर्मा युद्ध, आंग्ल सिख युद्ध और आंग्ल फारस युद्ध में भाग लिया था। 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ तो क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए हैवलाक सेना लेकर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से कानपुर की ओर चला। 17 जुलाई 1857 को कानपुर पर कब्जा कर लिया। इस दौरान उसने क्रांतिकारियों का चुन चुनकर दमन किया।
कानपुर पर कब्जा कर लेने के बाद उसने शेरार को कलेक्टर बनाया और कुछ दिन कानपुर का प्रशासन देखा और बाद में लखनऊ चला गया, जहां पर 24 नवंबर 1857 को उसकी मृत्यु हो गई। कानपुर इतिहास समिति के महासचिव अनूप शुक्ला बताते हैं कि चंद्र नगर आलमबाग में आज भी उसकी कब्र बनी हुई है। अंडमान द्वीप समूह के एक द्वीप का नाम हैवलाक द्वीप रखा गया था, आजादी के बाद स्वराज द्वीप कहलाया।
छावनी में शांतिपथ से प्रवेश
मुरे कंपनी पुल से नीचे उतरकर छावनी में प्रवेश करते ही शांतिपथ दिखायी देगा। इससे पहले यह हैवलाक रोड हुआ करता था।छावनी बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक इतिहास बताता है किस तरह से जनरल हैवलाक ने कानपुर में 1857 की क्रांति का दमन किया।वह मार्ग में भी गांवों को जलाते हुए आया था।उस दौरान वह प्रत्येक भारतीय को क्रांतिकारियों को समर्थक समझकर सजा दे रहा था।ऐसे क्रूर जनरल की नाम की सड़क को इसीलिए शांतिपथ का नाम दिया गया है।
मेयो ने शुरू की थी प्रायोगिक जनगणना
मेयो भारतवर्ष के 1869 से 1872 तक वायसराय था। मेयो का कालखंड महारानी विक्टोरिया के समय का है। सन 1872 में सबसे पहले मेयो ने ही प्रायोगिक जनगणना शुरू की जिसे बाद में रिपन ने 1881 से नियमित रूप से शुरू करा दिया। मेयो ने भारत में कृषि विभाग की स्थापना की और अजमेर में मेयो कालेज स्थापित किया। मेयो आठ फरवरी 1872 को जब अंडमान निकोबार में पोर्ट ब्लेयर स्थित सेलुलर जेल का निरीक्षण और समीक्षा कर रहा था उसी दौरान देशभक्त अफगानी शेर अली खान ने उसकी हत्या कर दी थी। मेयो के नाम पर उसी वर्ष एक द्वीप का नाम लार्ड मेयो दीप रखा गया था।
कबीर नहीं मानते थे हिंदू और इस्लाम धर्म
कबीर पंद्रहवीं शताब्दी के कवि, संत और सुधारवादी थे। हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन युग में वह महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। उनकी रचनाओं ने हिंदी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को काफी प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों के आदिग्रंथ में भी देखने को मिलता है। कबीर हिंदू और इस्लाम धर्म को न मानकर एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड और अंधविश्वास की हमेशा ङ्क्षनदा की। इसके साथ ही वह सामाजिक बुराइयों के कड़े आलोचक थे।

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