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    किसानों की मित्र है ग्रीनहाउस खेती, इसमें पढ़िए जैविक खेती और घरेलू बागवानी से जुड़ा हर एक पहलू

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Sun, 17 Apr 2022 12:49 PM (IST)

    किताबघर में इस बार यतींद्र मिश्र ने ग्रीनहाउस खेती उत्पादन एवं संरक्षण पुस्तक की समीक्षा की है ये किताब कृषि से जुड़ी कई पुस्तकों का मिश्रण है और संरक्षित कृषि पर आधारित उपयोगी और व्यावहारिक पाठ मिलता है।

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    किताबघर में ग्रीनहाउस खेती और मयूरपंख में यादों के बिखरे मोती की समीक्षा।

    किताबघर : संरक्षित कृषि पर आधारित उपयोगी और व्यावहारिक पाठ

    ग्रीनहाउस खेती: उत्पादन एवं संरक्षण

    संरक्षित कृषि पर पाठ्य एवं किसान मित्र पुस्तक

    कृषि /अध्ययन/पर्यावरण

    पहला संस्करण, 2021

    पेंटाइमर पब्लिकेशंस, नई दिल्ली

    मूल्य: 3,500 रुपए

    समीक्षा : यतीन्द्र मिश्र

    स्वाधीनता के हीरक जयंती वर्ष में यह देखना गौरवपूर्ण है कि भारत ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही कृषि प्रधान देश होने की सार्थकता को चरितार्थ करते हुए पिछले 75 वर्ष में इस क्षेत्र में भी विकास के ढेरों अविस्मरणीय उद्यम किए हैं। 1947 के बाद, हरित क्रांति के आगमन के साथ खेती-किसानी के संबंध में ऐसे अनूठे प्रयोग, नवाचार और कृषि क्षेत्र में उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाने वाली ढेरों वैज्ञानिक प्रविधियां प्रयोग की गई हैं। ऐसे में नवेद साबिर, अवनि कुमार सिंह एवं मुर्तजा हसन के द्वारा संरक्षित कृति पर तैयार की गई किसान मित्र पुस्तक ‘ग्रीनहाउस खेती: उत्पादन एवं संरक्षण’ पठनीय सामग्री से भरपूर है। जब हम सामाजिक विमर्श और कला-संस्कृति के संरक्षण की वैचारिक पुस्तकों के माध्यम से समाज निर्माण की बात करते हैं, उनके मूल विचार को समझते हुए समावेशी वातावरण निर्माण की प्रक्रिया की पैरोकारी करते हैं, तब ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प बन जाता है कि हम विज्ञान, पर्यावरण, भूगोल और नृतत्वशास्त्र के उन शोधपरक ग्रंथों का भी सम्यक मूल्यांकन कर सकें, जिनसे हमारे जीवन जगत, पर्यावरण संतुलन और प्राकृतिक संपदा के संरक्षण की बात सामने आती है। 21वीं शताब्दी में कृषि विज्ञान के संदर्भ में हुए विकास का एक सकारात्मक प्रभाव हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा, जिसके तहत कृषि समाज में विभिन्न प्रौद्योगिकियों के चलते खेती के स्तर में अप्रत्याशित सुधार हुए। इसमें कृषि से संबंधित बुनियादी आवश्यकताओं, फसल प्रबंधन, पौधों की किस्मों, कृषि भूमि के उपजाऊ होने की शर्तों तथा वनस्पति के परागण एवं उपज के लिए प्रयुक्त होने वाली तकनीकी, व्यवस्था, प्रबंधन एवं प्रसंस्करण आदि के लिए एक बेहतर पाठ्य सामग्री या रीडरनुमा पुस्तक की आवश्यकता बरसों से महसूस होती रही है। संरक्षित खेती विषय पर लिखित इस पुस्तक में ऐसी तमाम युक्तियों का समाधान किया गया है, जो स्वागतयोग्य है। इस लिहाज से भी कृषक समाज के संदर्भ में यह पुस्तक एक वैचारिक और सुस्पष्ट प्रयास है, जो वैज्ञानिकता से ओत-प्रोत है।

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    इस पुस्तक के संदर्भ में कृषि संबंधी कई उल्लेखनीय पुस्तकें याद की जा सकती हैं, जिनमें ‘जैविक खेती: मानकें और प्रमाणीकरण’ (डा. प्रशांत नाईकवाडी), ‘जैविक खेती के नुस्खे’ (वेंकटेश नारायण सिंह), ‘घरेलू बागवानी कैसे करें’ (प्रो. जयशंकर मिश्र) तथा ‘कृषि अर्थशास्त्र’ (डा. जे.पी. मिश्र) प्रमुख हैं। समग्रता से देखने पर यह किसान मित्र पुस्तक अपनी शोध सामग्री के चलते तकनीकी तथा व्यावहारिक रूप से अधिक काम की नजर आती है। 37 अनुच्छेदों में विभक्त ग्रीनहाउस खेती के ढेरों प्रत्ययों पर सूक्ष्मता से सैद्धांतिकी गढ़ती इस किताब का उद्देश्य युवा कृषकों और शोधार्थियों के लिए ज्ञान के भंडार सरीखा है। विशेषकर वे खंड जिनमें उपयोगिता, विधियों, प्रबंधन, उत्पादन, संरक्षण और संभावनाओं पर हर प्रकार से विचार किया गया है।

    उदाहरण के तौर पर- ‘मिट्टी व जल परीक्षण: विधियां एवं उपचार’ में मिट्टी के उर्वर होने के तरीकों की जांच को तार्किक ढंग से विश्लेषित करते हुए एक पूरी वैज्ञानिक तालिका उन उर्वरकों की संरचना पर आधारित है, जो किसी भी मृदा तत्व को उर्वर बनाते हैं। देखने वाली बात यह है कि लगभग हर अध्याय अपने विषय के मुताबिक कई छोटी-बड़ी तालिकाओं से भी आपको सूचनाएं प्रदान करता है, जिसका प्रमुख आधार वैज्ञानिक शोध है। यह कहा जा सकता है कि विज्ञान को लेकर एग्रीकल्चर की दुनिया में जितने प्रतिष्ठित पत्र और शोध अंग्रेजी में प्रकाशित होते रहते हैं, उनमें यह एक ऐसा मानक उदाहरण है, र्जो ंहदी भाषा में रोचक ढंग से आपको शिक्षित करता है। पुस्तक के लेखकों ने इस बात पर भी ध्यान रखा है कि विषय का विस्तार करते हुए उसे अधिक से अधिक ज्ञानोपयोगी, व्यावहारिक और साधारण जुबान में समझ में आने वाला बनाया जाए।

    दक्षता के साथ संपादित यह किताब उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण बन गई है, जो अपने पाठकीय स्वाद के लिए किसी अवांतर विषय की कोई पुस्तक पढ़ना चाहते हैं। जैसे, हम जल और तालाब प्रबंधन पर अनुपम मिश्र की ‘आज भी खरे हैं तालाब’ तथा सोपान जोशी की ‘जल थल मल’ को बेहतरीन साहित्येतर किताबों के रूप में पढ़ते रहे हैं।

    विषय अनुरूप तस्वीरों का चुनाव, विभिन्न प्रकार के विषाणुओं और जीवाणुओं के स्लाइड्स का अंकन, ग्रीनहाउस में पैदा की जाने वाली सब्जियों के प्रबंधन के चित्र और विषय की एकरसता भंग करने के लिए विशेष अंतराल के बाद दुर्लभ पुष्पों, वनस्पतियों के चित्रांकन से भी किताब को सजाया गया है। विषयवार तकनीकी ज्ञान के साथ एक परिशिष्ट ‘अनुलग्नक’ का भी है, जिसमें वैज्ञानिक शब्दावली का नामांकन, फसल आधारित उपयोगिता एवं फसल चक्र के साथ ग्रीनहाउस फसलों के लिए माहवार गतिविधियों का कैलेंडर भी जारी किया गया है, जो बेहतर उपयोगी है।

    यह किताब मानवता के लिए सुंदर उपहार है, जो धरती की उर्वरा शक्ति का बड़ा फलक दिखाती है। शहरीकरण के दौर में ऐसी किताबों का महत्व और भी बढ़ जाता है। हिंदी के वृत्त में खेती से संबंधित ऐसी ढेरों किताबों की जरूरत है, जो मौलिक ढंग से इस देश में हरित क्रांति के संदेश को पुख्ता बनाने में सहायक हो सकती हैं।

    मयूरपंख : विभाजन का छलकता दर्द

    यादों के बिखरे मोती: बंटवारे की कहानियां

    आंचल मल्होत्रा

    इतिहास

    पहला संस्करण, 2021

    हार्पर कालिंस पब्लिशर्स, भारत

    मूल्य: 499 रुपए

    आंचल मल्होत्रा की ‘रेमेनेंट्स आफ-ए-सेपरेशन’ का हिंदी अनुवाद ‘यादों के बिखरे मोती: बंटवारे की कहानियां’ में स्वाधीनता के संघर्ष व विभाजन को दर्शाया गया है। लेखिका ने सामान्य वस्तुओं के माध्यम से दुनिया के एक ज्वलंत इतिहास को पुनर्सृजित किया है। विभाजन के परिदृश्य में मौजूद लोगों के पलायन, उनकी यादें, पीछे छूटती एक पीढ़ी, अस्त-व्यस्त होते हुए घर-परिवार और साजोसामान- सभी कुछ संजोकर एक ऐसी संवेदना के साथ पाठकों के सामने रखा है, जिसे पढ़कर एक पूरी पीढ़ी की वेदना छलक आती है।

    गहराई से किया गया शोध, पार्टीशन के विशाल अभिलेखागार से चुनी गई सूचनाएं और यादों के अंतहीन सिलसिले में पिरोई हुई 21 कहानियां गहरे नश्तर सी चुुभती हैं। शरणार्थी बंटवारे के वक्त, सरहद पार अपने घरों से जो वस्तुएं लेकर आए थे, उन्हीं की स्मृति से संजोई इस किताब में पिछली पीढ़ी का संताप, भय, पीड़ा की कथाएं और अपनों से विछोह का दंश- सभी कुछ मिलकर इसे मर्मस्पर्शी बनाते हैं। (यतीन्द्र मिश्र)