Bigg Boss 19: बिग बास 19 का आज से आगाज, मिलिए ‘बिग बास’ की रौबीली आवाज से पहचान बनाने वाले विजय विक्रम सिंह से...
कानपुर के विजय विक्रम सिंह जो बिग बास की आवाज से जाने जाते है ने अपनी जीवन यात्रा साझा की। फौज में जाने की चाहत रखने वाले विजय ने रिजेक्शन के बाद जिंदगी में एक नई पहचान बनाई। विजय कानपुर को फिल्मों में दिखाए जाने पर कनपुरियापन की कमी महसूस करते हैं। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में सफलता के लिए हुनर और काम के प्रति पागलपन को जरूरी बताया।
हिमांशु द्विवेदी, जागरण, कानपुर। बिग बास की रौबीली आवाज से पहचान बनाने वाले वायस आर्टिस्ट, एक्टर, मोटिवेशनल स्पीकर विजय विक्रम सिंह की फर्श से अर्श पर पहुंचने की जीवन यात्रा रोचक है। कानपुर के दैनिक जागरण कार्यालय आए विजय विक्रम सिंह ने कहा, मैं फौज में जाना चाहता था। रिजेक्शन को बर्दाश्त नहीं कर सके। मौत से लड़े, फिर जिंदगी की जंग जीतकर एक नई पहचान बनाई। इसके बाद बिग बास में वायस नैरेशन के अलावा ‘फैमिली मैन’, ‘अनदेखी-3’, छावा जैसी कई मूवी में पहचान बनाई।
फिल्मों में कानपुर तो दिखा लेकिन कनपुरियापन नहीं
कानपुर में फिल्मों की खूब शूटिंग हो रही हैं। यहां की भौकाली बोली का भी फिल्मों में खूब इस्तेमाल हुआ लेकिन इससे विजय विक्रम खुश नहीं हैं। वह कहते हैं कि कानपुर को फिल्मों में तो दिखाया गया लेकिन उसमें कभी कनपुरियापन की झलक नहीं दिखी। कानपुर का सिर्फ चीप वर्जन यानि सस्ती कापी ही दिखाई गई। ये मेरा दर्द है कि असली कानपुर को अब तक कोई स्क्रीन पर दिखा ही नहीं पाया। कुछ तस्वीरें भर दिखा देने से किसी शहर की रूह को नहीं दर्शाया जा सकता। भविष्य में वह इस पर काम करने का भरोसा दिलाते हैं।
फिल्म इंडस्ट्री में काम चाहिए तो पुल ढूंढ़िए या तैरना सीख लीजिए
फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमाने का सपना देखने वालों को विजय ने महत्वपूर्ण सलाह दी। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी क्षमता पर भरोसा करें। अपने हुनर को पहचानें। किसी मुहल्ले वाले ने कह दिया कि आप अच्छा गाना गा लेते हैं तो जरूरी नहीं कि आपको फिल्मों में गाने मिल जाएंगे। आपको अपना बड़ा बेंचमार्क तय करना होगा। आपको यह पता होना चाहिए कि मैंने जो राह चुनी है, उसे पार करने की प्रतिभा और क्षमता मेरे अंदर है या नहीं।
काम के प्रति पागलपन होना चाहिए
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने काम से प्यार और पागलपन होना चाहिए। तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अगर नदी पार करनी है तो या तो पुल ढूंढ़ लीजिए या फिर तैरना सीख लीजिए। काम चाहिए तो आपको मुंबई में उपस्थिति दर्ज करानी ही होगी। आपने अपने काम के सैंपल भेज दिए फिर ये सोचें कि उसे देखकर कोई बुलाएगा और मैं यहां से बैग पैक करके पहुंच जाऊंगा, ऐसा नहीं होता।
...सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है
विजय बताते हैं कि अब मैं कारपोरेट ट्रेनिंग भी देता हूं। देश-विदेश में मोटिवेशनल सेशन करता हूं। जल्द ही वायस ट्रेनिंग पर कोर्सेज भी लांच करने जा रहा हूं। वह कहते हैं कि आपकी सफलता का राज आपकी कम्युनिकेशन स्किल यानि संवाद कौशल पर निर्भर करता है। वसीम बरेलवी का शेर सुनाते हुए उदाहरण देते हैं... कौन सी बात कैसे कही जाती है, ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है। वह बताते हैं कि अल्बर्ट मेराबिन के सिद्धांत के अनुसार, जब आप कोई बात कह रहे होते हैं तो कंटेंट सिर्फ सात प्रतिशत ही दर्शकों का ध्यान खींच पाता है।
अटेंशन के लिए ये जरूरी
93 प्रतिशत अटेंशन डायलाग डिलीवरी और बाडी लैंग्वेज से मिलती है। किसी कर्मचारी के पास आइडिया बहुत अच्छे हैं लेकिन वह उसे सही तरीके से समझा ही नहीं पा रहा तो सब कुछ बेकार है। यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री हो या कारपोरेट की दुनिया, कम्युनिकेशन स्किल और पर्सनालिटी डेवलपमेंट की ट्रेनिंग पर खूब जोर दिया जा रहा है।
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