शिव की जटाओं से निकली धार सहेज रहा गंगाधर, कानपुर में मिसाल बना दो सौ साल प्राचीन सरोवर
कानपुर के सरसौल क्षेत्र के हाथीपुर गांव में शिव मंदिर में दो सौ साल पुराना तालाब जल संरक्षण की मिसाल बन गया है। बूंद-बूंद जल को सहेजकर मंदिर प्रबंधन और भक्त समाज को बड़ा संदेश दे रहे हैं।
कानपुर, शैलेन्द्र त्रिपाठी। जल ही जीवन है, इस मंत्र को साकार कर रहा है सरसौल क्षेत्र के हाथीगांव में स्थित शिव मंदिर। यहां भगवान शिव की जटाओं से निकली जल धारा को दो सौ साल पुराना तालाब सहेज रहा है। शिवलिंग पर जलाभिषेक के जल, बारिश के पानी को गड्ढे और मंदिर परिसर में बने तालाब में इकट्ठा करने की व्यवस्था समाज को जल संरक्षण का बड़ा संदेश भी दे रही है। इस तालाब को लोग गंगाधर के नाम से जानते हैं।
बूंद-बूंद संरक्षण की पहल : कानपुर-प्रयागराज हाईवे पर स्थित सरसौल कस्बे से दो किलोमीटर दूर हाथीगांव रेलवे क्रासिंग के बगल में बना नंदेश्वर महादेव मंदिर में दो सौ साल से जल की एक-एक बूंद को संरक्षित किया जा रहा है। मंदिर में जमीन के अंदर से निकले शिवलिंग पर किए जाने वाले जलाभिषेक को पीछे बनी नाली द्वारा बड़े गड्ढे में सहेजा जाता है। मंदिर परिसर की सफाई व धुलाई में प्रयुक्त जल को मंदिर के मुख्य द्वार के बगल से सामने बने तालाब में इकट्ठा किया जाता है। इसी तालाब में बारिश के पानी को भी सहेजते हैं। तालाब पूरे साल जल से लबालब रहता है।
जनसहयोग से बढ़ा कारवां : मंदिर समिति के प्रबंधक हाथीगांव निवासी हरिपाल यादव के मुताबिक, मंदिर में जल सहेजने की व्यवस्था दो सौ साल पुरानी है। उनके पूर्वज भी तालाब व गड्ढे में शुरू से जल को सहेजे जाने के बारे में बताते चले आए हैं। पहले तालाब कच्चा था, लेकिन लगभग 40 साल पहले जन सहयोग से मंदिर प्रबंध समिति ने पक्का करा दिया है। मंदिर से तालाब में पानी ले जाने के लिए लगभग 30 मीटर लंबी ईंटों की नाली भी मंदिर प्रबंधन की तरफ से बनवाई गई है। वर्तमान में जल संरक्षण की मुहिम को प्रबंधक हरिपाल यादव, पुजारी मोती बाबा, मंदिर समिति के सदस्य खजुरिया के राजू गुप्ता व भक्त हाथीगांव के भगवान दीन यादव आगे बढ़ा रहे हैं।
भक्तों को जल संचयन का देते संदेश : मंदिर आने वाले भक्तों को जल की बर्बादी न करने के बारे में बताया जाता है। पूजन के बाद बचे जल को तालाब में डालने के लिए सभी को प्रेरित किया जाता है। संचयन का संदेश ऐसा कि जरूरत के मुताबिक ही भक्त जल का उपयोग करते हैं। बारिश के पानी को भी सब मिलकर तालाब में सहेजते हैं।
गड्ढे को भी पक्का बनाने की योजना : हरिपाल यादव ने बताया कि जलाभिषेक वाले जल को अभी कच्चे गड्ढे में एकत्रित किया जाता है। इसको भी जल्द ही पक्का कराया जाएगा। ढक्कन से उसे बंद करा दिया जाएगा। इसके अलावा मंदिर परिसर से जुड़े प्राचीन कुएं को भी वाटर रीचार्ज के लिए प्रयोग किए जाने के बारे में सोचा जा रहा है।
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