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Amrit Mahotsav: रूढ़ियों और बेड़ियों को तोड़ने वाली 'तूफानी' बहन सत्यवती, जेल गईं पर नहीं हारी हिम्मत

Azadi Ka Amrit Mahotsav पंजाब के जालंधर में पैदा हुईं सत्यवती की कर्मभूमि रही दिल्ली। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वह कई बार जेल गईं पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। महात्मा गांधी प्यार से बहन सत्यवती को तूफानी कहकर बुलाते थे।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Fri, 27 Aug 2021 07:50 PM (IST)Updated: Sat, 28 Aug 2021 08:54 AM (IST)
Amrit Mahotsav: रूढ़ियों और बेड़ियों को तोड़ने वाली 'तूफानी' बहन सत्यवती, जेल गईं पर नहीं हारी हिम्मत
सत्यवती की मां महात्मा गांधी का अनुसरण करती थीं एवं अहिंसा की पुजारी थीं।

संजीव कुमार मिश्र। राधा परिवार के साथ नई सड़क पर रहती थीं। बहन सत्यवती के भाषणों से इस कदर प्रभावित हुईं कि स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ीं। दिल्ली के मोरी गेट और चांदनी चौक में शराब की दुकानों पर पिकेटिंग करने पहुंच गईं। नतीजा यह हुआ कि ब्रितानिया हुकूमत ने इन्हेंं गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। सिर्फ राधा रानी ही नहीं रूप देवी सरीन, शांति देवी सरीखी दिल्ली की बहुत सी महिलाएं बहन सत्यवती से प्रभावित थीं। रूप देवी सरीन ने वर्ष 1927 में बहन सत्यवती का भाषण सुना। ओजस्वी भाषणों ने उन पर ऐसा असर डाला कि सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान दिल्ली के भोला राम एंड संस के सामने शराबबंदी की अलख जगाने पहुंचीं। पुलिस ने इन्हेंं गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। दरअसल, बहन सत्यवती का व्यक्तित्व था ही ऐसा। ओजस्वी भाषणों को सुन दिल्ली की महिलाएं घर की दहलीज लांघ आजादी के आंदोलनों में पुरुषों संग कंधे से कंधा मिलाकर भागीदार बनीं। बहन सत्यवती को दिल्ली की पहली महिला सत्याग्रही भी कहा जाता है। आर्य समाज से जुड़े स्वामी श्रद्धानंद की पोती सत्यवती देवी का जन्म 26 जनवरी 1906 में पंजाब के जालंधर में हुआ था। इनकी मां महात्मा गांधी का अनुसरण करती थीं एवं अहिंसा की पुजारी थीं। सत्यवती का विवाह वर्ष 1922 में हुआ और वह दिल्ली आ गईं। उनके पति वीरभद्र दिल्ली कपड़ा मिल में अधिकारी थे।

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घर-घर जगाई क्रांति की अलख: दिल्ली आने पर सत्यवती पहले पहल कपड़ा मिल के मजदूरों की समस्या से वाकिफ हुईं और उनकी जिंदगी को नजदीक से जाना। धीरे-धीरे सामाजिक आंदोलनों की पृष्ठभूमि तैयार हुई। कांग्रेस में रहकर कांग्रेस महिला समाज और कांग्रेस सेवा दल जैसे संगठन खड़े किए। बाद में वह कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की संस्थापक सदस्य भी बनीं और उन्होंने दिल्ली के कपड़ा मिलों के श्रमिकों को विशेषकर महिला श्रमिकों को राजनीतिक रूप से जागरूक करने का काम किया। उनके भाषणों को सुनकर हिंदू कालेज और इंद्रप्रस्थ कालेज की छात्राएं और अन्य महिलाएं भी स्वतंत्रता आंदोलन में शरीक होने के लिए प्रेरित हुईं। स्वतंत्रता आंदोलन में फिर चाहे वह नमक सत्याग्रह हो या सविनय अवज्ञा आंदोलन, दिल्ली में उसके समर्थन में प्रतिरोध की जमीन आम महिलाओं के साथ मिलकर सत्यवती ने ही तैयार की। इस संदर्भ में दिल्ली अभिलेखागार विभाग के निदेशक संजय गर्ग कहते हैं कि सविनय अवज्ञा आंदोलन छह अप्रैल 1930 में शुरू हुआ। महात्मा गांधी जी ने दांडी से आंदोलन का सूत्रपात किया। आंदोलन के लक्ष्यों में नमक कानून का उल्लंघन कर स्वयं नमक का निर्माण करना, महिलाओं द्वारा शराब, अफीम और विदेशी कपड़े की दुकानों पर जाकर धरना देने एवं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार आदि शामिल था। दिल्ली में बहन सत्यवती ने आंदोलन को धार देने का काम किया। वह न दिन देखतीं न रात। घर-घर जाकर महिलाओं से मिलतीं और उन्हेंं आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित करतीं। इसका असर यह हुआ कि महिलाएं पहली बार आंदोलन में बड़ी संख्या में शामिल हुईं।

खुद बनाया नमक: सत्यवती ने महिलाओं के साथ मिलकर शाहदरा में नमक बनाया और करीब 10 दिन तक नमक के पैकेट लोगों में बांटे गए। पुलिस ने इन्हेंं पकड़कर दो साल के लिए जेल भेज दिया। वर्ष 1931 में जब गांधी-इरविन समझौता हुआ तो बहन सत्यवती को जेल से रिहा किया गया, लेकिन आंदोलन के दौरान बहन सत्यवती के नेतृत्व में पहली बार जिस तरह हजारों की तादाद में महिलाएं शराब की दुकानों के बाहर विरोध करने आईं और नमक कानून तोड़ा वो दिल्ली के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। बहन सत्यवती से प्रभावित होकर हिंदू और इंद्रप्रस्थ कालेज की छात्रों ने अनोखी पहल की। छात्राओं ने बस्तियों में जाकर शादीशुदा महिलाओं की भी टीम बनाई ताकि वे अन्य महिलाओं को भी आंदोलन के लिए प्रेरित कर सकें।

महिलाओं को सक्रिय किया: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ग्रंथमाला-10 में लेखक फूलचंद जैन ने बृजकृष्ण चांदीवाला का एक साक्षात्कार प्रकाशित किया था। इसमें चांदीवाला कहते हैं कि वर्ष 1920 के दौरान हुए आंदोलनों के दौरान महिलाओं की भागीदारी कम थी। कारण, महिलाएं पर्दा अधिक करती थीं, लेकिन वर्ष 1930 में बहन सत्यवती ने घर-घर जाकर महिलाओं को जागरूक किया। इसका बहुत सकारात्मक असर हुआ। महिलाएं सक्रिय रूप से आंदोलनों में भाग लेने लगीं। इनमें शादी शुदा महिलाएं भी शामिल थीं।

11 दिन के बेटे के साथ जेल: सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान नमक बनाने के कारण गिरफ्तार बहन सत्यवती ने जेल से बाहर आते ही तेजी से लोगों को आंदोलन के लिए प्रेरित करने में जुट गईं। वर्ष 1932 में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल होने के कारण बहन सत्यवती को अंग्रेजों ने उनके 11 दिन के बेटे के साथ पकड़कर जेल भेज दिया। डाक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी, लेकिन आंदोलन से पीछे हटना उन्हेंं मंजूर नहीं था। जेल से वापस आने पर फिर से वह आंदोलन को धार देने में जुट गईं।

कई बार जेल गईं: स्वाधीनता संग्राम- स्त्री का वैकल्पिक क्षेत्र किताब की मानें तो बहन सत्यवती करीब 11 बार जेल गईं। जून 1943 में उनकी तबियत बिगड़ गई। दोनों फेफड़े तपेदिक के शिकार हो गए। उनका शरीर जर्जर हो चुका था। इसी बीच बच्चे के निधन की खबर ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों ने सत्यवती से कहा कि यदि वह राजनीतिक क्रिया-कलापों में भाग न लेने का लिखित वचन दें तो उन्हें जेल से रिहा किया जा सकता है। बहन सत्यवती ने इस आफर को अस्वीकार कर दिया। सत्यवती की हालत बिगडऩे पर ब्रितानिया हुकूमत ने नजरबंद रखते हुए उनका इलाज शुरू कराया। उनके तीन आपरेशन हुए, लेकिन कोई फायदा न हुआ। सारी पांबदियों को तोड़ते हुए वह 14 फरवरी 1945 को लाहौर से दिल्ली के लिए रवाना हुईं। 15 फरवरी को फ्रंटियर मेल जब दिल्ली पहुंची तो बुखार से तप रहीं सत्यवती को अंग्रेजों ने फिर गिरफ्तार कर लिया।

महात्मा गांधी को लिखा पत्र: दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार किए जाने पर बहन सत्यवती को जेल भेज दिया गया। वहां से उन्होंने महात्मा गांधी को एक पत्र लिखा। इसमें लिखा कि मैं सारी पाबंदियां तोड़कर दिल्ली पहुंच गई, लेकिन दिल्ली स्टेशन पर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। पहले मुझे जेल ले जाया गया और फिर अस्पताल ले गए। चार-पांच दिन बहुत तेज बुखार आया, लेकिन अब तबियत में काफी सुधार है। बहन सत्यवती ने पत्र में यह भी लिखा कि- आप जानते हैं बापू। मैैं हुकूमत की तरफ से लगाई गई पाबंदियां कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती। इन्हेंं तोड़कर बहुत खुश हूं, आप मेरी चिंता न करें। एक बात तय है कि मैं हुकूमत की कोई पाबंदी कभी नहीं मानने वाली। दरअसल, महात्मा गांधी उनके स्वास्थ्य को लेकर फिक्रमंद थे। वह प्यार से बहन सत्यवती को तूफानी कहकर बुलाते थे। कई बार उन्होंने बहन सत्यवती को सेवाग्राम आने को कहा। अस्पताल में इलाज के दौरान महात्मा गांधी उन्हें देखने भी आए। 21 अक्टूबर 1945 को बहन सत्यवती का निधन हो गया। दिल्ली में स्थित सत्यवती कालेज आज भी दिल्ली के लिए उनके कर्म की याद दिलाता है।

[स्वतंत्रता आंदोलन में अपना अमूल्य याेगदान देने वाली बहन सत्यवती के व्यक्तित्व पर आधारित संजीव कुमार मिश्र का लेख]। 


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