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    20वीं शताब्दी के द्रोणाचार्य डा. सोम.. जिन्होंने डीएवी कालेज को बना दिया था क्रांतिकारी युवाओं का केंद्र, यहां पढ़ें जीवन के खास अंश

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Mon, 18 Jul 2022 03:28 PM (IST)

    डीएवी कालेज के प्राध्यापक डा. मुंशीराम शर्मा सोम वेद-मीमांसा भाष्य समीक्षा और प्रचुर श्रृजन के लिए ही नहीं बल्कि क्रांतिकारियों के मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने चालीस से अधिक ग्रंथों की रचना भी की थी।

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    क्रांतिकारी युवाओं के संरक्षक व मार्गदर्शक थे डा. मुंशीराम शर्मा 'सोम'।

    कानपुर, [डा. राकेश शुक्ल]। स्वातंत्र्य समर में ऐसे क्रांतिकारियों और सेनानियों की कमी नहीं थी, जिनकी सुदीर्घ और एकनिष्ठ साहित्य साधना राष्ट्र को समर्पित रही है। उनमें से अनेक ऐसे अधीत विद्वान भी हैं, जो भारतीय संस्कृति और वाङ्गमय के अप्रतिम उन्नायक थे। डा. मुंशीराम शर्मा 'सोम' एक ऐसे ही वैदिक भाष्यकार, समीक्षक, कवि और विद्वान शिक्षक थे। क्रांतिकारियों के संरक्षक और मार्गदर्शक के रूप में डा. सोम का योगदान बहुमूल्य है। चालीस से अधिक ग्रंथों के प्रणेता डी. ए-वी. कालेज, कानपुर में प्राध्यापक रहे डा. सोम ने न जाने कितने शिष्यों में स्वाधीनता और स्वाभिमान की लौ जाग्रत की थी। अवसर आने पर प्रखर क्रांतिकारियों को अपने घर में शरण देना उनके अदम्य साहस का प्रमाण बना।

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    काकोरी कांड के बाद जब क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज हो गई थी और उन्हें सुरक्षित ठिकाने की तलाश थी तब वर्ष 1926 में नियुक्त हुए युवा प्राध्यापक और छात्रावास अधीक्षक सोम जी ने न जाने कितने क्रांतिकारियों को अपने छात्रावास में शरण दी। उन्होंने कालेज को क्रांतिकारी युवाओं का केंद्र बना दिया था, जिसके कारण उन्हें बीसवीं शताब्दी का द्रोणाचार्य भी कहा जाता है।

    सोम जी के प्रिय शिष्य सुरेन्द्रनाथ पाण्डेय पहले से ही क्रांतिकारी दल के सक्रिय सदस्य थे, पर सोम जी की प्रेरणा से महावीर सिंह, तुलसीराम शर्मा और ब्रह्मदत्त मिश्र भी क्रांतिकारी दल में सक्रिय हो गए। ये तीनों जान पी. सांडर्स की हत्या में पकड़े गए और लाहौर जेल में रखे गए। उन्हीं दिनों उनका परिचय क्रांतिकारी दल के नायक चंद्रशेखर आजाद से हुआ, जिनसे उनकी निकटता स्थापित हो गई थी। आजाद के साथ राजगुरु, सुखदेव, शिव वर्मा, जयदेव कपूर, जयदेव वर्मा, उदय प्रकाश तथा काशीराम आदि भी क्रांतिकारी गतिविधियों में सोम जी का मार्गदर्शन प्राप्त करते थे।

    सरदार भगत सिंह भी आवश्यतानुसार इस छात्रावास में अनेकश: रुकते थे। आजाद के विषय में सोम जी ने लिखा है कि, 'उनके हाथी जैसे शरीर में सिंह जैसी स्फूर्ति थी। राय बहादुर शम्भुनाथ और टीकाराम जैसे गुप्तचर विभाग के अधीक्षक देखते रह जाते और वे उनके सामने मस्ती से निकल जाते। उनके अचूक निशाने से सब परिचित थे।

    'एक दिसंबर 1930 को जब उनके क्रांतिकारी शिष्य सालिगराम शुक्ल कालेज के मुख्य द्वार पर अंग्रेज पुलिस से मुठभेड़ में बलिदान हुए तब उनके पार्थिव शरीर के पास सबसे पहले सोम जी ही पहुंचे थे। लाहौर में 'हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र संघ' की बम बनाने वाली फैक्ट्री के भंडाफोड़ तथा लार्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन के नीचे बम विस्फोट की कार्यवाही के बाद जब यशपाल और भगवती चरण वोहरा आदि फरार थे और उनकी गिरफ्तारी पर बीस हजार रुपये के इनाम वाले पोस्टर गांव-गली तक मे लगे हुए थे, तब आजाद के कहने पर यशपाल और उनकी पत्नी प्रकाशवती जी कई दिनों तक सोम जी के आतिथ्य में रहे थे। यशपाल ने 'क्रांतिकारियों के शरणदाता' शीर्षक से उन पर एक लेख भी लिखा था।

    16 नवंबर 1901 को फीरोजाबाद जनपद के ओखरा में जन्मे सोम जी की प्राथमिक शिक्षा गांव में, पूर्वमाध्यमिक शिक्षा एटा तथा माध्यमिक और उच्च शिक्षा कानपुर में हुई। स्नातक में गोल्ड मेडल प्राप्त करने पर डी. ए-वी. कालेज के प्रबंधतंत्र ने छात्रवृत्ति देकर परास्नातक करने हेतु उन्हें लाहौर के डी.ए-वी. कालेज भेजा। वहां भी उन्होंने (पंजाब विश्वविद्यालय में) स्वर्णपदक प्राप्त किया।

    सोम जी एक ऋषिकल्प विद्वान थे। वेद-मीमांसा, समीक्षा, भाष्य और काव्य- इन विधाओं में उन्होंने प्रचुर सृजन किया। 'आर्यधर्म', 'जीवन-दर्शन', 'वेदार्थ चंद्रिका', 'वैदिक संस्कृति और सभ्यता' तथा 'वैदिकी' आपके वैदिक मीमांसा परक प्रमुख गं्रथ हैं तो 'सूर-सौरभ', 'भारतीय साधना और सूर साहित्य', 'सूरदास और भगवद्भक्ति', 'सूर का काव्य वैभव', 'सारस्वत भक्ति का विकास', 'साहित्यशास्त्र' और 'तुलसी का मानस' आदि आपके मूल्यवान समीक्षा ग्रंथ हैं। इनके अतिरिक्त कबीर, जायसी, तुलसी तथा प्रसाद की कृतियों पर आपने भाष्य भी लिखे हैं।

    'विरहणीÓ सहित एक दर्जन काव्य कृतियों के माध्यम से जहां उन्होंने प्रज्ञा और रस समन्वित काव्य-सृजन किया है, वहीं हजारों वैदिक ऋचाओं का हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है। डा. सोम ने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई, बल्कि राष्ट्रीयता के दिव्यताबोध से अनुप्राणित कविताएं भी लिखी थीं। राष्ट्रऋषि की परंपरा के प्रतिनिधि सोम जी 12 जनवरी 1990 को कीर्तिशेष हुए।

    वर्ष 1977 में प्रकाशित उनके अभिनन्दन ग्रंथ में कविवर सुमित्रानन्दन पंत ने लिखा था, 'साहित्य जगत में उद्भट विद्वान तो हमें और भी मिलेंगे, किंतु शर्मा जी जैसे अन्तर्दृष्टिसम्पन्न, अद्भुत एवं बहुमुखी प्रतिभा वाले आलोक शिखर मनीषी विरले ही मिलेंगे।'

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