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    कबिरा संगत साधु की ज्यों गंधी का बास..

    By Edited By:
    Updated: Sun, 25 Dec 2016 01:00 AM (IST)

    'कबिरा संगत साधु की, ज्यों गंधी का बास। जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास सुवास' कविवर कबीरदा ...और पढ़ें

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    'कबिरा संगत साधु की,

    ज्यों गंधी का बास।

    जो कुछ गंधी दे नहीं,

    तो भी बास सुवास'

    कविवर कबीरदास जी ने जब यह दोहा कहा होगा तब उन्हें इसका इल्म नहीं रहा होगा कि कभी उनका यह दोहा बड़े राजनेताओं के किसी शहर में आने पर भी खरा उतरेगा। अर्थ है, गंधी अर्थात इत्र बेचने वाले के पास रहें तो वह अगर कुछ भी न दें तो भी उससे सुगंध तो मिल ही जाती है। इसी तरह यदि किसी शहर में ऊंची कुर्सियों पर सुसज्जित नेता आते जाते रहें तो भले ही उनकी घोषणाएं सफल न हों परंतु सुगंध के रूप में शहर को कुछ न कुछ तो मिल ही जाता है। अब देखिए पिछले दिनों शहर में पीएम जी का आना हुआ तो घंटों एटीएम व बैंकों के आगे लाइन लगाने वालों की लॉटरी खुल गई। एटीएम फुल और बैंक सेहतमंद हो गए। काश, आगे भी ऐसा ही सब कुछ चलता रहे?

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    उधर दक्षिण के लोग जो सड़कों पर गड्ढों, फुटपाथों पर कब्जों और यातायात की अराजकता से परेशान थे, उन्हें कई दिनों तक चैन की बंसी बजाने का मौका मिल गया। सड़कें सफाचट, यातायात सरपट। अवैध कब्जे साफ, फुटपाथ खूबसूरत। स्ट्रीट लाइट चमाचम, चौराहे टमाटम हो गए। मैदान का जंगल गायब हो गया। शाम को रोशनी इतनी कि अमेरिका की बाजारें मात खा जाएं। साज सज्जा ऐसी कि अपना ही शहर पहचान में न आए। पुलिस इतनी मुस्तैद की क्या मजाल कोई फुटपाथ पर या सड़क किनारे गाड़ियां खड़ी कर दे। काश, यही वातावरण हर रोज रहे तो हम धन्य-धन्य हो जाएं।

    इसके पहले शहर में सीएम आए थे तो भी शहर को कई गिफ्ट मिले। हालांकि जनता को उन गिफ्ट पैक योजनाओं में किसी एक का भी रैपर उतारने का मौका नहीं मिला है। फिर भी हम अपने शहर को मेट्रो सिटी व स्मार्ट सिटी कह सकते हैं। बेरोजगारी बढ़ रही है पर हम स्वप्न तो देख ही सकते हैं।

    वीआइपी रोज आएं-जाएं पर काश ऐसा हो कि सीओडी व गोविंदनगर ओवरब्रिज जिनका बजट और समय कई बार ओवर हो चुका है, मिल जाएं। हमने इतिहास में पढ़ा था पर पहली बार लगा कि देश वाकई सोने की चिड़िया हो रहा है। देश सोने का होगा जो शहर तो होगा ही। सवाल है कैसे? जवाब है ऐसे..

    देश में नि:शुल्क बंट रही हैं

    इंद्रधनुषी स्वप्नों की कल्पनाएं

    लाखों करोड़ की

    विकास वाली योजनाएं

    गिनती करें तो जोड़

    अंगुलियों से फिसलता है

    जांच दल जहां भी पांव मारते हैं

    नोट और सोना निकलता है।

    आम आदमी

    मीठे सपनों में खो गया है

    लगता है देश फिर से

    सोने की चिड़िया हो गया है।

    -नागरिक