Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मुहावरे बने 'ठंडा ठंडा, कूल कूल' व 'ये दिल मांगे मोर'

    By Edited By:
    Updated: Sat, 12 Sep 2015 01:00 AM (IST)

    कानपुर, जागरण संवाददाता : 'जैसा बोलो, वैसा लिखो' ¨हदी वर्तनी के इस वैज्ञानिक शक्ति के परिणाम स्वरूप

    कानपुर, जागरण संवाददाता : 'जैसा बोलो, वैसा लिखो' ¨हदी वर्तनी के इस वैज्ञानिक शक्ति के परिणाम स्वरूप ¨हदी को भारतीय भाषाओं, बोलियों (लोक भाषाओं) व दूसरी भाषाओं के अर्थवान शब्दों को स्वीकर करने में कोई गुरेज नहीं होता है। यह ¨हदी की सबसे बड़ी ताकत है इसीलिए ¨हदी में नये-नये शब्द आ रहे हैं। उसकी शब्द संख्या लगातार बढ़ रही है जो उसे दूसरी भाषाओं के मुकाबले और अधिक शक्तिशाली बनाता है। विज्ञापन में प्रयोग किए गए 'ठंडा ठंडा, कूल कूल' व 'ये दिल मांगे मोर' जैसे वाक्य मुहावरे का स्वरूप ले रहे हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ये कथन उन ¨हदी विद्वानों का है जिन्होंने अपने साहित्य रचना व संभाषण प्रक्रिया से नये मुहावरे व शब्द गढ़े हैं। दूसरी भाषाओं व बोलियों से आए शब्दों को सहज स्वीकार किया है तथा उनकी उपयोगिता बढ़ाई है। उनका मानना है कि जिस भाषा के पास ये गुण होगा उसकी अभिव्यक्ति क्षमता का लगातार विस्तार होता रहता है। ¨हदी को यह विशेषज्ञता प्राप्त है।

    -----

    अपनी ताकत से बढ़ रही ¨हदी

    ¨हदी भाषा का विकास व स्वीकार्यता जिस गति हो रही है, वह उसकी अपनी ताकत है। 21 भाषाएं उसे सहज और शक्तिमान बना रही हैं। देवनागरी लिपि में किसी भी भाषा के प्रचलित शब्द को पूरी अर्थवत्ता के साथ स्वीकार करके अपना बना लेने की ताकत ¨हदी में है। कहानी उपन्यास लिखते-लिखते कई बार नए शब्दों का जन्म हो जाता है। ¨हदी के पाठक उन्हें सहज स्वीकार करते हैं। हर रोज नई सूक्तियां निकल रही हैं। उदाहरण के लिए पिछले दिनों उनकी कलम से एक सूक्ति 'अहंकार वह काई है जो तालाब की निर्मलता खा जाती है' जिसे मुहावरे की शक्ल भी दी जा सकती है, निकली तो लोगों ने सहज ही स्वीकार कर लिया। राजस्थानी बोली की बींदड़ी (बहू), रार (झगड़ा) को 'राड़' दंड को 'दांड़' के रूप में सहज स्वीकृति मिल गई है। 'छलात्कारी' जैसे तमाम नए शब्द भी ¨हदी में आ रहे हैं। भाषा तेजी से विस्तार ले रही है। - पद्मश्री गिरिराज किशोर, भाषाविद् एवं वरिष्ठ कथाकार

    -----

    विस्तार ले रही ¨हदी

    ¨हदी केवल भूभाग में ही नहीं अपनी शब्द संपदा तथा अभिव्यक्ति क्षमता में भी लगातार विस्तार ले रही है। विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में उसकी मान्यता बढ़ रही है। संस्कृतनिष्ठ ¨हदी का स्वरूप जनभाषा में परिवर्तित होने से उसकी लोगों तक व लोगों की उस तक पहुंच बढ़ी है। आंचलिक भाषाओं के वे शब्द जो लोक जीवन का हिस्सा हैं, ¨हदी ने सहजता से अपनाए हैं। गड़बड़झाला, कनकैया, कुढ़न्दा, जलनखोर, भुलभुली जैसे सैकड़ों शब्द हैं जो क्षेत्र विशेष ¨हदी की अभिव्यक्ति की तीव्रता को शक्तिशाली बनाते हैं। - पद्मश्री (डॉ.) श्याम नारायण पांडेय, पूर्व विभागाध्यक्ष ¨हदी डीबीएस कालेज

    -----

    ¨हदी की सहोदरी हैं लोकभाषाएं

    लोक अभिव्यक्ति साहित्य की भाषा स्वीकार नहीं करती है इसलिए शुद्ध ¨हदी के पैरोकारों को ¨हदी में आ रहे लोक भाषाओं व दूसरी भाषाओं के शब्दों के प्रति दुराग्रह नहीं होना चाहिए। ये ¨हदी की सबसे बड़ी ताकत हैं। लोक व्यवहार के चलते किसी भी भाषा की व्याकरण शिथिल हो जाती है, तो बोली बन जाती है। इसी से नई भाषाएं निकलती हैं। लोक जीवन में हर रोज नए मुहावरे आ रहे हैं। 'विहारी हो जाओ' , 'फूटो यहां से', 'कम बोलने का क्या लोगे', 'ठंडा ठंडा कूल कूल' जैसे वाक्य जो मुहावरे बनते जा रहे हैं, लोक जीवन से ही आए हैं और भी आ रहे हैं। अंग्रेजी के 'लुल' शब्द से ही ¨हदी में 'लुल्ल' (अस्थिर निर्णय वाला) आया। ऐसे कितने शब्द हैं जो भाषा को लगातार शक्तिशाली बना रहे हैं।- डॉ. शिवकुमार दीक्षित, भाषाविद् ललित निबंधकार