राजा जयचंद के साथ डूब गया कन्नौज की समृद्धि का सूरज
कन्नौज वर्तमान में जिस इत्र की महक से समूची दुनिया सुगंधित हो रही है। कभी वह कन्नौज विद्या वैभव भारतीय संस्कृति वैदिक बौद्ध और जैन संप्रदाय का केंद्र रहा है। उसका अपना अलग ही समृद्ध और वैभव शाली इतिहास रहा है। कन्नौज इतना संपन्न था कि इसे राजा हर्ष नागभट्ट द्वितीय जैसे राजाओं ने राजधानी बनाया। टूटते-बनते बिखरने-संवरने के बाद भी यह आज महक रहा है।

जागरण संवाददाता, कन्नौज: वर्तमान में जिस इत्र की महक से समूची दुनिया सुगंधित हो रही है। कभी वह कन्नौज विद्या, वैभव, भारतीय संस्कृति, वैदिक, बौद्ध और जैन संप्रदाय का केंद्र रहा है। उसका अपना अलग ही समृद्ध और वैभव शाली इतिहास रहा है। कन्नौज इतना संपन्न था कि इसे राजा हर्ष, नागभट्ट द्वितीय जैसे राजाओं ने राजधानी बनाया। टूटते-बनते, बिखरने-संवरने के बाद भी यह आज महक रहा है।
यूं तो राजा हर्ष के बाद यहां कई राजाओं ने राज किया। सभी ने उसके वैभव को बढ़ाया। इसमें से एक राजा ऐसा भी था, जिससे लोग खौफ खाते थे। मगर उनकी मौत के बाद सजा-संवरा कन्नौज बिखर गया। इसकी धन-संपदा को आक्रमणकारियों ने न सिर्फ लूटा, बल्कि उसके गौरवशाली इतिहास को भी नष्ट करने का प्रयास किया। संस्कृति मिटाने की कोशिश की। लेखक महेंद्रनाथ मिश्र अपनी किताब 'कन्नौज अतीत के झरोखे' में लिखते हैं कि हर ग्रंथ में कन्नौज का नाम दर्ज है। 554 में यह मौखरी वंश की राजधानी बना। छठी सदी में सम्राट हर्ष ने राजधानी बनाया। 647 में इसकी संपन्नता को धक्का लगा। मगर 715 ई. में यशोवर्मन काल में फिर से कन्नौज में संपन्नता का उदय हुआ। 815 में गुर्जर-प्रतिहारों ने इसे चमकाया। 200 साल तक कन्नौज सूरज की तरह चमकता रहा। 1080 गहरवारों के शासन में इसकी समृद्धि बढ़ती गई। मगर 1194 ई. में यहां के वीर राजा जयचंद्र की पराजय के बाद इसकी समृद्धि का सूरज अस्त हो गया। जयचंद्र के समय कन्नौज में धर्म-संस्कृति कैसी थी, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बंगाल के राजा को धर्म और सभयता के प्रचार-प्रसार के लिए कन्नौज से ब्राह्मणों को बुलाना पड़ा था। प्रजा सुखी थी, हर धर्म के लोगों में भाई चारा था। लूटेरों का कोई डर नहीं था। मगर जयचंद की मौत के बाद कन्नौज गुलाम वंश के अधीन हो गया। तेहरवीं शताब्दी में मोहम्मद तुगलक ने कन्नौज से रायबरेली तक का प्रदेश उजाड़ दिया। लुटेरों का बोलबाला हो गया। मंदिरों को नष्ट कर दिया गया।
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कौन थे राजा जयचंद
जयचंद गहरवार/ राठौड़ राजवंश से थे। उनका राज्याभिषेक 1226 आषाढ़ शुक्ल को हुआ। वह पराक्रमी शासक थे । उनकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उन्हें 'दल-पंगुल' भी कहा जाता है। इसका गुणगान पृथ्वीराज रासो में भी हुआ है। राजशेखर सूरी ने अपने प्रबन्ध-कोश में कहा है कि काशीराज जयचन्द्र विजेता था। कवि नयनचन्द्र ने रम्भामंजरी में जयचन्द को यवनों का नाश करने वाला कहा है। जयचंद्र ने सिधु नदी पर मुसलमानों से घोर संग्राम किया। जिससे रक्त के प्रवाह से नदी का नील जल लाल हो गया था। जयचंद्र जब तक राजा थे यवन प्रवेश नहीं कर सके थे। राजा जयचंद को गद्दार कहा जाता है, मगर इसका कोई प्रमाण नहीं है। समकालीन फारसी ग्रन्थों में भी इस बात का कोई संकेत नहीं है। आज होगा स्मृति समारोह
महाराजा जयचंद शोध संस्थान के तत्वावधान में गुरुवार को महाराजा जयचंद्र स्मृति समारोह का आयोजन होगा। इसमें मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय कवि डॉ. नरेश कात्यायन रहेंगे। कार्यक्रम में राजा जयचंद्र के बारे में बताया जाएगा। संयोजक पूर्व ब्लाक प्रमुख नवाब सिंह यादव ने बताया कि 16 साल पहले महाशिवरात्रि के दिन किले के पास राजा जयचंद्र की प्रतिमा स्थापित की गई थी। तब से यह समारोह मनाने की परपरा चली आ रही है। अब चूंकि राजा जयचंद की निश्चित तिथि पता नहीं, इसलिए उन्हें याद करने के लिए यह कार्यक्रम हर साल होता है।
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