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छात्रों में वैज्ञानिक सोच से होगा राष्ट्र का विकास

विज्ञान और मानव का आदिकाल से संबंध रहा है। जब से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है तब से नित नए अन्

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 08:23 PM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 08:23 PM (IST)
छात्रों में वैज्ञानिक सोच से होगा राष्ट्र का विकास
छात्रों में वैज्ञानिक सोच से होगा राष्ट्र का विकास

विज्ञान और मानव का आदिकाल से संबंध रहा है। जब से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है, तब से नित नए अन्वेषण और अनुसंधान हो रहे हैं। वैज्ञानिक सोच ही राष्ट्र के विकास का आधार होती है। ऐसी सोच को छात्रों में विकसित करना एक विज्ञान शिक्षक का मूल कर्तव्य है। बच्चे में अपने आसपास की दुनिया (प्राकृतिक वातावरण, शिल्प तथ्यों एवं लोगों) के प्रति उत्सुकता को परिपोषित करना, उसे खोजी कार्यो की ओर अग्रसर करने के साथ-साथ उनको ऐसे कार्यकलापों में संलग्न करना,जो अवलोकन, वर्गीकरण, निष्कर्ष आदि के द्वारा मूलभूत संज्ञानात्मक क्षमताएं, मन:प्रेरक कौशल, तर्कशीलता आदि गुणों के विकास में सहायक होता है। वैज्ञानिक ²ष्टिकोण मूलत: एक ऐसी मनोवृत्ति या सोच है जिसका मूल आधार किसी भी घटना की पृष्ठभूमि में उपस्थित कार्य-करण को जानने की प्रवृत्ति है। वैज्ञानिक ²ष्टिकोण हमारे अंदर अन्वेषण की प्रवृत्ति विकसित करती है तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करती है। वैज्ञानिक ²ष्टिकोण की शर्त है बिना किसी प्रमाण के किसी भी बात पर विश्वास न करना या उपस्थित प्रमाण के अनुसार ही किसी बात पर विश्वास करना।

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वैज्ञानिक ²ष्टिकोण से तात्पर्य है कि हम तार्किक रूप से सोचें और उसे सिद्ध करके दिखाएं। छात्रों में वैज्ञानिक ²ष्टिकोण का विकास करना हमारे संविधान के अनुच्छेद 51ए के अंतर्गत मौलिक कर्तव्यों में से एक है। इसलिए प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वैज्ञानिक ²ष्टिकोण के विकास के लिए प्रयास करें। -डा. अरशद अली, विज्ञान शिक्षक एआरपी, विकास खंड- कन्नौज ------------------------------------------------------- वैज्ञानिक ²ष्टिकोण समाज निर्माण में भी सहायक हमारे संविधान निर्माताओं ने यही सोचकर वैज्ञानिक ²ष्टिकोण को मौलिक कर्तव्यों की सूची में शामिल किया था कि भविष्य में वैज्ञानिक सूचना एवं ज्ञान में वृद्धि से वैज्ञानिक ²ष्टिकोण युक्त चेतनासम्पन्न समाज का निर्माण होगा, परंतु वर्तमान सत्य इससे परे है। जब अपने कार्यक्षेत्र में विज्ञान की आराधना करने वाले वैज्ञानिकों का प्रत्यक्ष सामाजिक व्यवहार ही वैज्ञानिक ²ष्टिकोण के विपरीत हो, तो बाकी बुद्धिजीवियों तथा आम शिक्षित-अशिक्षित लोगों के बारे में क्या अपेक्षा कर सकते हैं!

वैज्ञानिक ²ष्टिकोण का संबंध तर्कशीलता से है। वैज्ञानिक ²ष्टिकोण के अनुसार वही बात ग्रहण के योग्य है जो प्रयोग और परिणाम से सिद्ध की जा सके, जिसमें कार्य-कारण संबंध स्थापित किये जा सकें। चर्चा, तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक ²ष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण अंग है। गौरतलब है कि निष्पक्षता, मानवता, लोकतंत्र, समानता और स्वतंत्रता आदि के निर्माण में भी वैज्ञानिक ²ष्टिकोण कारगर सिद्ध होता है। -अनुपम अवस्थी, विज्ञान शिक्षक एआरपी, विकास खंड - छिबरामऊ

------------------------------------------- अंधविश्वास को दूर रखती वैज्ञानिक सोच वैज्ञानिक मनोवृत्ति किसी भी जानकारी परिस्थिति घटना या परिणाम के कारणों को तार्किक रूप से जानने में मदद करती है तथा पाखंड और अंधविश्वास से दूर रखती है। बाल्यकाल से ही विद्यार्थियों में यह गुण विकसित करना न केवल विद्यालय की बल्कि उनके माता-पिता और समाज की अहम जिम्मेदारी है। वैज्ञानिक मनोवृत्ति किसी भी जानकारी, परिस्थिति, घटना या परिणाम के कारणों को तार्किक रूप से जानने में मदद करती है तथा पाखंड और अंधविश्वास से दूर रखती है। बाल्यकाल से ही विद्यार्थियों में यह गुण विकसित करना न केवल विद्यालय की बल्कि उनके माता-पिता और समाज की अहम जिम्मेदारी है। प्रश्न आता है कि किस तरह से बच्चों में वैज्ञानिक सोच को उत्पन्न किया जाए। आधुनिक इंटरनेट युग में जब बच्चों के सम्मुख ज्ञान और विज्ञान की जानकारी की उपलब्धता की कोई कमी नहीं है तो ऐसी परिस्थिति में अध्यापक और वरिष्ठजनों का केवल यह दायित्व रह जाता है कि वह बच्चों में जिज्ञासा उत्पन्न करें। -प्रवीण यादव, विज्ञान शिक्षक एआरपी, विकास खंड-सौरिख ---------------------------------------------------- इंटरनेट का करें भरपूर सदुपयोग करें विद्यार्थी बच्चों में प्रश्न करने की आदत विकसित करने और उत्सुकता जागृत करने के साथ-साथ उन्हें इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी का सम्यक उपयोग सिखाना और उपयुक्त संसाधन मुहैया कराना विद्यालय संचालन का महत्वपूर्ण दायित्व है। किसी भी संस्थान की व्याख्या और विश्लेषण स्कूली पाठ्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण आयाम है। प्रत्येक स्मार्ट कक्षा में स्मार्ट बोर्ड और मल्टीमीडिया का उपयोग करते हुए सभी विषयों को इस प्रकार पढ़ाया जाना चाहिए ताकि बच्चे उस विषय को समझकर अपनी जीवन शैली में आत्मसात कर सकें। यदि हमें भारत को फिर से विश्वगुरु के रूप में पहुंचाना है तो शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री प्राप्त करना ही न हो बल्कि बच्चों का तार्किक ²ष्टिकोण विकसित करना अनिवार्य है। हमारी नई शिक्षा नीति भी इसी दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है। -नितेश प्रताप सिंह, विज्ञान शिक्षक एआरपी, विकास खंड -उमर्दा ------------------------------------------ मानव व्यवहार में परिवर्तन लाती है वैज्ञानिक सोच वैज्ञानिक मनोवृत्ति रोजमर्रा का विज्ञान करते रहने से प्रभावित नहीं होती है बल्कि इसके लिए अपने मूल्यों और नैतिकता के ढांचे में बदलाव की जरूरत होती है। इसका मतलब होता है प्राकृतिक विज्ञान के अलावा अन्य क्षेत्रों सामाजिक और नैतिक मामलों में वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करना। वैज्ञानिक सोच मानव व्यवहार में परिवर्तन लाती है। इसलिए यह प्राकृतिक विज्ञान का हिस्सा नहीं है। यह प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन करने से नहीं बल्कि वैज्ञानिक तरीकों को मानव व्यवहार में अमल करने से मजबूत होता है। सभी छात्रों में वैज्ञानिक सोच को मजबूत करने के लिए उनके पाठ्यक्रम में सामाजिक विज्ञान और मानविकी को शामिल करने की आवश्यकता है। यह दावा सही नहीं है कि विज्ञान का अध्ययन अंधविश्वास को कम करता है और वैज्ञानिक ²ष्टिकोण को बढ़ावा देता है। आपको सिर्फ वैज्ञानिकों के निजी जीवन और संस्थानों को देखना है, जिनमें अंधविश्वास, जातिवाद, लिंगवाद और अन्य अवांछनीय गुण काफी पाए जाते हैं। भारत में यह अभी भी काफी हद तक परिवार और समाज द्वारा तय किया जाता है। यह कई व्यक्तियों, वैज्ञानिक और गैर-वैज्ञानिक दोनों, का अवलोकन है। पिछले 60 वर्षों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के कारण जीवन और पर्यावरण में बड़े स्तर पर हुए बदलावों ने अंधविश्वासों की साख को कम कर दिया है। -भोलेशंकर चतुर्वेदी, विज्ञान शिक्षक एआरपी, विकास खंड- जलालाबाद --------------------------------------------------- विज्ञान में सभी समस्याओं का समाधान आज विज्ञान के समय में सबकुछ प्रायोगिक है, मनुष्य आज के समय में मनगढ़ंत ,काल्पनिक जीवन से बाहर निकल कर उन्ही बातों, चीजों को मानता है जिसे विज्ञान साबित कर चुका है। विश्वास की अवधारणा नगण्य हो चुकी है। विज्ञान ही आज के समाज की दिशा और दशा तय कर रही है। सवाल यह है कि आज के वैज्ञानिक युग में हमारे स्कूलों में आने बाले बच्चे क्या सोचते हैं, तो उन्हें परियों ,भूत-बेताल की कहानियों से बाहर लाकर सामाजिक समस्याओं, आवश्यकताओं व ग्रह नक्षत्रों की परिक्रमा( सोच विकसित) करनी होगी जिससे बच्चों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास संभव होगा। प्रारंभिक कक्षाओं से ही बच्चों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति व जिज्ञासा पैदा की जानी चाहिए, बच्चों को वर्तमान समस्याओं पर अपनी राय बनाकर समाधान सुझाने प्रेरित ,प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। शिक्षक को यथासम्भव बच्चों की मदद करनी चाहिए क्योंकि वर्तमान व भविष्य में जो भी मानव जीवन के लिए चुनौतियां हैं उनका सम्पूर्ण समाधान विज्ञान में ही निहित है। -सुरेंद्र सिंह, विज्ञान शिक्षक एआरपी, विकास खंड - गुगरापुर


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