Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इस सीट पर मुलायम परिवार का 21 साल तक रहा कब्जा, सुब्रत पाठक ने डिंपल को हरा दर्ज की थी जीत; फिर रोमांचक हुआ मुकाबला

    इटावा के सैफई से तकरीबन 114 किलोमीटर दूर कन्नौज लोकसभा सीट पर मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार का 21 साल तक कब्जा रहा। इसके बाद पांच साल से भाजपा के हाथ में ये सीट है। अब फिर से मुलायम परिवार के मुख्य सदस्य और उनके बेटे सपा प्रमुख अखिलेश यादव मैदान में हैं। इससे इस सीट पर आसपास जिलों के लोगों की निगाहें भी टिक गई हैं।

    By amit kuswaha Edited By: Abhishek Pandey Updated: Mon, 29 Apr 2024 08:09 AM (IST)
    Hero Image
    मुलायम परिवार का रहा 21 साल कब्जा, पांच साल बाद फिर मैदान में

    राहुल सक्सेना,  कन्नौज। (Kannauj Lok Sabha Election) इटावा के सैफई से तकरीबन 114 किलोमीटर दूर कन्नौज लोकसभा सीट पर मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार का 21 साल तक कब्जा रहा। इसके बाद पांच साल से भाजपा के हाथ में ये सीट है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अब फिर से मुलायम परिवार के मुख्य सदस्य और उनके बेटे सपा प्रमुख अखिलेश यादव मैदान में हैं। इससे इस सीट पर आसपास जिलों के लोगों की निगाहें भी टिक गई हैं। हर कोई यहां के पल-पल के घटनाक्रम को जानने के लिए उत्सुक है।

    1967 को हुआ था कन्नौज सीट का गठन

    कन्नौज संसदीय सीट का गठन 1967 में हुआ था। सीट पर पहले आम चुनाव में समाजवादी विचारधारा के पुरोधा डॉ. राम मनोहर लोहिया संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से मैदान में उतरे। उनका मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता सत्य नारायण मिश्र से हुआ था।

    लोहिया ने उन्हें 472 मतों से पराजित कर जीत हासिल की थी। इसके बाद से समाजवादी विचारधारा के मुलायम सिंह यादव का इस सीट से लगाव बढ़ा। 1984 में मुलायम सिंह ने अपने करीबी छोटे सिंह यादव को इस सीट पर मैदान में उतारा, लेकिन कांग्रेस लहर में शीला दीक्षित दीक्षित ने जीत दर्ज की।

    इसके बाद 1989 में एक बार फिर छोटे सिंह यादव का इस सीट पर मुकाबला शीला दीक्षित से हुआ। इस चुनाव में मुलायम स्वयं प्रचार में उतरे और शीला दीक्षित को हार मिली। छोटे सिंह यादव दिल्ली पहुंच गए। इतना ही नहीं मुलायम सिंह के प्रभाव में छोटे सिंह यादव ने 1991 में भी इस सीट पर दोबारा जीत दर्ज की। इसके बाद वर्ष 1998 में मुलायम सिंह ने सपा का टिकट देकर प्रदीप यादव को कन्नौज संसदीय सीट के मैदान में उतारा, तो प्रदीप यादव ने जीत पाई।

    एक साल बाद ही 1999 में फिर लोकसभा का चुनाव हुआ, तो मुलायम के शिष्य अरविंद प्रताप सिंह बगावत कर लोकतांत्रिक पार्टी के टिकट से चुनाव मैदान में आ गए। मुलायम को अहसास हुआ कि प्रदीप यादव चुनाव हार सकते हैं। इससे उन्होंने संभल के अलावा कन्नौज संसदीय सीट से भी पर्चा भर दिया।

    अखिलेश ने पहली बार दर्ज की थी जीत

    दोनों सीटों से चुनाव जीतने के बाद कन्नौज से इस्तीफा देकर 2000 में हुए उपचुनाव में बेटे अखिलेश यादव को यहां से चुनाव जिताकर दिल्ली भेजा। अखिलेश ने पिता की विरासत वाली सीट पर 2004 और 2009 में लगातार जीत दर्ज कर हैट्रिक लगाई।

    वर्ष 2012 में प्रदेश में सपा पूर्ण बहुमत से विधानसभा चुनाव जीती, तो मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। इससे सीट खाली हुई। अखिलेश ने कन्नौज लोकसभा सीट से इस्तीफा देकर वर्ष 2012 में उपचुनाव में पत्नी डिंपल यादव को निर्विरोध सांसद बनवाया।

    वर्ष 2014 में भी डिंपल ने जीत दर्ज की, लेकिन 2019 में भाजपा के सुब्रत पाठक ने डिंपल को चुनाव हराकर इस सीट पर कमल खिलाया। पांच साल से ये सीट भाजपा के कब्जे में है। अब इस सीट पर फिर अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं, जबकि पहले उन्होंने तेज प्रताप यादव को टिकट देने की घोषणा की थी। इसके बाद अचानक निर्णय को बदला।

    इसे भी पढ़ें: अमित शाह ने चौथे चरण की 13 लोकसभा सीटों के लिए दिया जीत का मंत्र, बोले- गुजरात मॉडल पर करें काम