काली नदी का काला सफर बन रहा काल
जागरण टीम : गंगा से निकली और गंगा में ही समा गई। मेरे किनारे कई सभ्यताएं जन्मी। मगर आज
जागरण टीम : गंगा से निकली और गंगा में ही समा गई। मेरे किनारे कई सभ्यताएं जन्मी। मगर आज मेरा अस्तित्व खतरे में है। मैं गंगा की सहायक और कन्नौज की जीवनदायिनी काली नदी हूं। मुजफ्फर नगर से कन्नौज तक करीब 300 किमी तक फैला मेरा साम्राज्य आज खत्म होने की कगार पर पहुंच गया। मेरे यातक पुत्र मनुष्य की करतूत की वजह से आज मैं अपने नाम के अनुरूप काली हो गई हूं। मेरी कोख में पलने वाले जीव-जंतु अब जिंदा नहीं हैं। मेरे जल से कभी खेत सोना उगलते थे, पशु-पक्षी और मानव प्यास बुझाते थे, लेकिन वर्तमान में मेरा यह जल लोगों के लिए काल बन गया। उनकी जान जा रही है। मेरा पानी विषैला हो गया है। हां मैं काली नदी हूं.. मुजफ्फरनगर से कन्नौज तक काली नदी में शुगर मिल, मीट फैक्ट्री, चमड़ा उद्योगों का रासायनिक कचरा और गंदे नाले गिर रहे हैं। इस कारण से काली नदी में ऑक्सीजन खत्म हो गई और पानी विषैला और काला हो गया। लिहाजा नदी के प्रदूषण के कारण आस-पास बसे गांवों का भूजल भी प्रदूषित हो गया है। इन गांवों के हैंडपंप
से निकलने वाले पानी में वही भारी तत्व मौजूद हैं । ग्रामीण चर्म रोग, कैंसर जैसी घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। पानी पीने से कई जानवरों की जान चली गई। वहीं कई अभी भी बीमार हैं। किसानों ने खेती की ¨सचाई करना भी बंद कर दिया है। ऐसा है सफर
मुजफ्फरनगर जनपद की जानसठ तहसील के अंतवाड़ा गांव से शुरू होकर मेरठ, गाजियाबाद, बुलन्दशहर, अलीगढ़, एटा व फर्रूखाबाद के बीच से होते हुए कन्नौज में जाकर गंगा में मिल जाती है। कुछ लोग इसका उद्गम अंतवाड़ा के एक किलोमीटर ऊपर चितौड़ा गांव से मानते हैं। यह नदी उद्गम स्त्रोत से मेरठ तक एक छोटे नाले के रूप में बहती है। जबकि आगे चलकर नदी का रूप ले लेती है। हमेशा टेढी-मेढी व लहराकर बहने वाली इस नदी को नागिन के नाम से भी जाना जाता है, जबकि कन्नौज में यह कालिन्दी के नाम से मशहूर है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार इस नदी के पानी में अत्यधिक मात्रा में सीसा, मैग्नीज व लोहा जैसे भारी तत्व व प्रतिबंधित कीटनाशक अत्यधिक मात्रा में घुल चुके हैं। उद्गम स्थल से लेकर गंगा में मिलने तक की दूरी में काली नदी के किनारे करीब 1200 गांव, बड़े शहर व कस्बे बसे हुए हैं। मवेशियों में भी पनप रहे रोग
नदी के आसपास बसे गांवों के मवेशी नदी के पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं। पानी विषैला होने के कारण पशुओं में बांझपन, गला घोटू, खुरपका जैसी बीमारियां पनप रहीं हैं। इसकी वजह से अब ग्रामीण मवेशियों को भी नदी के पानी से दूर रखने का प्रयास करते हैं। भू-जल भी हो रहा प्रदूषित
काली नदी के प्रदूषण का प्रभाव तटवर्ती गांवों के भू-जल पर भी पड़ रहा है। हैंडपपों से निकलने वाला पानी बदबू देता है। इसकी वजह से इन गांवों में रहने वाले ग्रामीण भी प्रभावित हो रहे हैं। अधिकांश लोग चर्म रोग, लीवर, गुर्दा व विकलांगता जैसे रोगों का शिकार हो रहे हैं। यह गांव हो रहे प्रभावित
डालूपुर, फरीदपुर, मानपुर, दीनपुर, दलीपपुर, ब्राहिमपुर, गढि़या, कुंदन नगला, पंथरा, नगला धनी, टीका नगला, करनौली, खुबरियापुर, पृथ्वीपुर, मनिकापुर, उधरनपुर, बरबटापुर, कुंवरपुर जनूं, जसुआमई आदि गांव प्रभावित हो रहे हैं। लोगों ने बयां किया दर्द
-कुछ वर्षों पहले तक काली नदी का पानी मवेशियों को पिलाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। किसी प्रकार के रोग नहीं फैलते थे। मगर अब पानी प्रदूषित हो गया है। जिस कारण
अब तो इसको छूते हुए भी डर लगता है। आम जनता के हित में इसे प्रदूषण मुक्त कराया जाना आवश्यक है।
-गिरंद ¨सह राजपूत -जाने अनजाने जब भी मवेशी इस पानी को पी लेते है तो वह बीमार पड़ जाते हैं। इन दिनों खुरपका व मुंहपका जैसे रोगों की चपेट में हैं। अब तक कई किसानों के मवेशी मौत के आगोश में भी समा चुके हैं।
-भोला यादव -पानी जहरीला हो जाने की वजह से फसलों की ¨सचाई पूरी तरह से बंद हो गई है। पहले इस नदी के पानी से ¨सचाई कर लेते थे तो नलकूप की महंगी ¨सचाई से निजात मिल जाती थी। अब यदि इस पानी का प्रयोग करते हैं तो फसल बढ़ने के स्थान पर नष्ट हो जाती है। इससे किसान का बीज व खाद का रुपया भी डूब जाता है। इसलिए इसके पानी का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया गया है।
-आंनद कुमार -घरों में लगे हैंडपंप भी नदी के दूषित पानी को आम आदमी तक पहुंचा रहे हैं। ऐसे में जब घरेलू कार्यो में इस पानी का प्रयोग किया जा रहा है तो ग्रामीण भी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। बेवजह हजारों रुपये दवा आदि पर खर्च करने पड़ रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए और नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए ठोस पहल करनी चाहिए।
-रामसेवक वर्मा क्या कहते हैं विशेषज्ञ
काली नदी में कई उद्योगों का रासायनिक कचरा आदि गिरता है। जिसके कारण वह प्रदूषित हो गई। शुगर मिलों से निकलने वाला शीरा भी इसमें आता है। शीरा ऑक्सीजन को सोख लेता है। इस कारण से काली नदी में ऑक्सीजन की मात्रा खत्म हो चुकी है। जीव-जंतु मर रहे हैं। किसी भी भी जीव जंतु को जीवित रहने के लिए 4 मिलीग्राम प्रति लीटर ऑक्सीजन चाहिए होता है।
-कुलदीप मिश्रा, क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड।
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जागरण संवाददाता कन्नौज: नदियां.. जिनके किनारे मानव सभ्यता ने जन्म लिया, हर जीव-जंतु और मानव के लिए जीवनदायिनी बनीं। तालाब और कुएं हमारी संस्कृति के वाहक रहे हैं। मगर आज ये सब विलुप्त होने की कगार पर हैं। जीवन देने वाले ये जल स्त्रोत मिट रहे हैं। बारहमासी नदियां अब मौसमी हो गईं हैं। इसकी वजह सिर्फ हम यानि मानव जाति है। हमने अपने स्वार्थ के लिए इन्हें पाट कर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए। सात नदियों के गोद में बसे कन्नौज का इतिहास कभी बुलंद और समृद्ध रहा है। यहां फसलें सोना उगलती थीं, उद्योग धंधे भी फल फूल रहे थे। मगर अब ऐसा नहीं है। इसका कारण सभ्यता और समृद्धि की परिचायक नदी, तालाबों का विलुप्त होना है।
लेकिन आज यहां सप्त् नदियां-गंगा, रामगंगा, ईशन नदी, काली नदी, पांडु नदी, अरिंद नदी और चित्रा नदी, अपना अस्मिम्व खोने की कगार पर हैं। चित्रा नदी तो नाले में तब्दील हो गई हैं, वहां गंगा ने कन्नौज को छोड़ दिया है। यह सब हमारे स्वार्थीपन का नतीजा है। हमने अपनी नासमझी में यह सोच कर कि जमीन के नीचे बहुत पानी है, जमकर जल दोहन किया। आज हर मौसम में हमे हैंडपंप, नलकूप पर पानी के लिए लाइन लगानी पड़ रही है। अभी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा है, हम अभी भी अपनी इन गलितयों का सुधार कर सकते हैं। जरूरत है बस इच्छाशक्ति की, जागरूकता की। हम प्रण लें, इस अनमोल जल संपदा को बचाएंगे, तालाबों, पोखरों, नदियों को पाट कब्जा नहीं करेंगे। पानी की बेवजह बर्बादी नहीं करेंगे। जल स्त्रोतों में गंदगी कूड़ा आदि नहीं डालेंगे। दैनिक जागरण जलसंरक्षण को लेकर आज से एक सीरीज चला रहा है। आप इससे जुड़ इस अभियान को गतिमान और सफल बनाने के साथ इन नदियों का जीवन लौटाने के गवाह भी बनें। तो कन्नौज के लोगों उठो, जागो और संकल्प लो अपनी सभ्यता को बचाने का।
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