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    आल्हा-ऊदल का किला जमींदोज

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    Updated: Thu, 01 Sep 2016 06:37 PM (IST)

    कन्नौज, जागरण संवाददाता : उत्तर भारत के गांव-गांव तक आल्हा-ऊदल की वीरता की कहानियां अब तक गायी व सु

    कन्नौज, जागरण संवाददाता : उत्तर भारत के गांव-गांव तक आल्हा-ऊदल की वीरता की कहानियां अब तक गायी व सुनी जाती हैं। बुंदेलखंड के महोबा से निकाले जाने पर दोनों भाइयों ने कन्नौज राज्य में शरण ली थी। यहां के राजा जयचंद ने रिजगिर शहर में दोनों भाइयों को ठहराया और दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान से मोर्चा लिया। ऐतिहासिक धरोहर आल्हा-ऊदल का किला अब जमींदोज हो चुका है जबकि रिजगिर गांव बदहाल है। यहां के लोगों की स्मृतियों में अब तक दोनों वीर भाई ¨जदा हैं, लेकिन मिट्टी के ढेर में तब्दील किले को लेकर रहस्य बरकरार है। कोई यहां सांपों का डेरा बताता है तो कोई रात में आसपास से गुजरने तक से डरता है।

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    11वीं शताब्दी में आए थे आल्हा-ऊदल

    इतिहासकार बताते हैं, कन्नौज में आल्हा-ऊदल के आने के प्रमाण 11वीं शताब्दी में मिलते हैं। भादौं माह में महोबा के राजा परिमाल ने आल्हा-ऊदल को निकाल दिया था। इसके बाद ये लोग कन्नौज के राजा जयचंद के भतीजे लाखन के पास पहुंचे थे। लाखन ने इन्हें राज्य के रिजगिर शहर में ठिकाना दे दिया। यहां कई साल तक रहने के बाद ये महोबा पर पृथ्वीराज चौहान के आक्रमण के दौरान मनुहार पर वापस लौटे।

    आल्हा-ऊदल कनवज छाये..

    जगनिक के आल्हखंड में कन्नौज में इनके होने का प्रमाण भी मिलता है। उन्होंने लिखा है कि 'आल्हा-ऊदल कनवज छाये, सूनो पड़ो महोबा गांव', 'जागन जाय रहे कनवज को आल्हा-ऊदल लेहैं मनाय', संग मां अइहैं लाखन राना, जो हैं शूर कनौजी राय आदि। कन्नौज शहर व रिजगिर में अब भी लोग ये पंक्तियां गुनगुनाते हैं।

    मिट्टी के ढेर, जंगली पेड़

    जीटी रोड से चौधरियापुर, सलेमपुर होते हुए रिजगिर गांव के लिए आल्हा-ऊदल के किले के बगल से रास्ता है। गांव के लोगों में किले को लेकर अलग-अलग किवदंतियां हैं। राहगीर रामचंद ने बताया कि किले के चारों तरफ चहारदीवारी थी लेकिन वह जमींदोज हो गई। धीरे-धीरे अंदर के महल भी ध्वस्त हो गए। न तो जिला प्रशासन ने तवज्जो दी और न ही पर्यटन विभाग या भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने। शाम ढलने के बाद लोग किले के पास जाने से डरते हैं।

    बुंदेलखंड से कजरी वन तक साम्राज्य

    जगनिक के आल्हखंड के मुताबिक राजा परिमाल पर जान छिड़कने वाले आल्हा-ऊदल राजपूत थे। बुंदेलखंड, उरई, कन्नौज, कानपुर के जाजमऊ, कालपी, काबुल, कांगड़ा, चरखारी, जूनागढ़, झांसी, झारखंड, दिल्ली, मध्य प्रदेश के नाहरगढ़, राजस्थान के नैनागढ़, बूंदी, मांड़ौं, सिरसागढ़, ¨हगलाज, हरिद्वार, कजरीवन तक इन लोगों ने युद्ध लड़े और साम्राज्य स्थापित किया। आल्हा-ऊदल ने उत्तर भारत में 52 किले फतह किए थे। इनकी गाथाओं को सुनने के लिए गांवों की चौपाल में लोगों की भीड़ रहती है।

    इनका कहना है

    राजा जयचंद का किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में है। आल्हा-ऊदल के किले की स्थिति भी टीम के साथ देखी जाएगी। ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए पूरी कोशिश की जाएगी। सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत को सहेजना जिला प्रशासन की प्राथमिकता में है।

    -डॉ. अशोक चंद्र, जिलाधिकारी।

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