आजादी का मतलब नहीं जानते गरीब बच्चे
छिबरामऊ, संवाद सहयोगी : देश को आजाद करने में न जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुतियां ...और पढ़ें

छिबरामऊ, संवाद सहयोगी : देश को आजाद करने में न जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुतियां दे दी, लेकिन सैकड़ों यातनाएं सहने के बाद देश को मिली उस स्वतंत्रता के बारे में नौनिहाल जानते तक नहीं हैं। वह दो वक्त की रोजी जोड़ने में ही दिनभर मशगूल बने रहे हैं।
भारत देश 15 अगस्त सन् 1947 को देश में चले क्रांतिकारी आंदोलनों के बाद स्वतंत्र हो गया। उसके बाद से आज तक देश के नागरिकों सहित सभी सरकारी संस्थानों, विद्यालयों में स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। विद्यालयों में तो इसकी तैयारियों एक पखवारा पहले से ही शुरू हो जाती हैं। वहीं इन सबके बीच नौनिहालों का एक हिस्सा ऐसा भी है, जो इस स्वतंत्रता से अनजान है। दिनभर सड़क पर रहकर हाड़तोड़ मेहनत करने वाले नौनिहालों से इस स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर वार्ता की गई, तो उन्होंने इसके बारे में जानकारी न होने की बात कही। सौरिख तिराहा पर कबाड़ा बीन रहे दो बच्चों से बात की गई, तो उन्होंने अपना नाम देवा व सनी निवासी कांशीराम कालोनी बताया। उन्होंने कहा कि यह क्या होता है। वह दोनों मित्र हैं और रिक्शा चलाकर दो वक्त की रोटी के लिए धनराशि जोड़ते हैं। वह स्कूल भी नहीं जाते हैं। वहीं गाड़ियों की दुकान पर रिपेय¨रग कार्य में मदद करने वाले मुहल्ला बिरतिया निवासी उस्मान व रिहान मिल गए। वह दोनों एक कार में जैक लगा रहे थे। उन्होंने कहा कि उनको कोई जानकारी नहीं है। कुछ भी हो, उन दोनों को तो रोटी के लिए ऐसे ही मेहनत करनी पड़ेगी। इसके बाद बाईपास स्थित एक ढाबा पर काम करता हुआ कांशीराम कालोनी निवासी विकास मिल गया। उससे स्वतंत्रता दिवस के बारे में पूछा, तो उसने कहा कि वह इस बारे में नहीं जानता है। परिवार की स्थित ठीक न होने की वजह से वह मेहनत मजदूरी कर रहा है। यदि पढ़ने चला गया, तो उसकी मां भूखी रह जाएगी। उनके लिए रोटी की जुगाड़ नहीं हो सकेगी। इस बीच तालग्राम तिराहा पर सब्जी बेचता एक किशोर मिल गया। उसने बताया कि वह दीपकपुर से सब्जी बेचने आया है। कभी कभार ही वह विद्यालय जाता है। सोमवार को विशेष दिवस के बारे में पूछने पर उसने बूंदी बंटने वाला गणतंत्र दिवस होने की बात कही। यह केवल इन चार स्थानों पर मौजूद नौनिहालों की बात नहीं है, बल्कि ऐसे सैकड़ों बच्चे हैं जो वास्तव में स्वतंत्रा दिवस का अर्थ ही नहीं जानते हैं। सरकार को ऐसे बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था करनी चाहिए।

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