Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    लोक जागरण है डा. रामअवध के ललित निबंधों में

    By Edited By:
    Updated: Sun, 25 Mar 2012 11:57 PM (IST)

    ...और पढ़ें

    Hero Image

    अमरोहा(ज्योतिबाफुलेनगर)। डा. रामअवध शास्त्री 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक के सशक्त ललित निबंधकार, प्रबुद्ध आलोचक और जागरूक अध्यापक हैं। इनके ललित निबंधों की भाषा की गहरी बुनावट एक तरफ परम्परा और संस्कार को साथ रखती है तो दूसरी ओर वह अपनी मौलिक चिंताओं में आगे बढ़ते दिखाई देते हैं। यही कारण है कि इनके ललित निबंध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, विवेकी राय, विद्या निवास मिश्र और रमेशचंद्र शाह के ललित निबंधों की याद दिलाते हैं। उनके निबंधों में लोक जागरण व मेहनतकश लोगों की आवाज उठाने का प्रयास दिखता है। आपके निबंधों में भाषा की लोच, पकड़, साम‌र्थ्य, भावाभिव्यक्ति स्पष्ट देखी जा सकती है। शास्त्री जी को प्रदेश सरकार व हिन्दी संस्थान द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। इन्हीं संदर्भो में उनसे मुलाकात की हमारे संवाददाता रामराज मिश्र ने

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आपके मत में हिन्दी ललित निबंध एक आधुनिक विधा है अथवा उसका इतिहास पुराना है।

    जैसा कि मैंने पहले कहा है कि ललित निबंध बहुत व्यक्ति व्यंजक निबंध के रूप में हमारे सामने आता है और आज भी इसे बहुत से रचनाकार व्यक्ति व्यंजक निबंध ही मानते हैं। इस स्थिति में इसे नव्य विधा नहीं माना जा सकता। समय के साथ सभी विधाओं का रूप बदलता रहता है। निबंध इसका अपवाद नहीं है। व्यक्तिव्यंजक निबंध का बदला रूप ही ललित निबंध है।

    आप राष्ट्रीयता और राजनीति में क्या अंतर करते हैं।

    राष्ट्रीयता और राजनीति दोनों ही चीजें हैं। राष्ट्रीयता हमारी अस्मिता की पहचान है, इसलिए वह कुछ अधिक बारीक होती है। उसकी तुलना में राजनीति बाहरी आवरण है। इस कारण स्थूल होती है। राजनीति अपने आवाम की खिदमत करके उसे राष्ट्रीय गौरव से भरने का उपक्रम करती है। यही उसकी मुख्य भूमिका है। यदि वह ऐसा नहीं करती, विपरीत आचरण करती है तो राष्ट्रीयता कमजोर हो जाती है। कमजोर राष्ट्रीयता विभाजन के लिए प्रोत्साहित करती है।

    राष्ट्रीयता के प्रति आपका रुझान क्या है।

    मैं राष्ट्रीयता को वहीं तक महत्व देने का पक्षधर हूं, जहां तक वह मनुष्य जाति की सेवा में साधक होती है। यदि राष्ट्रीयता आये दिन मनुष्य जाति के सामने संकट उत्पन्न करती हो और मानव कल्याण में बाधा उत्पन्न करती हो तो मैं ऐसी राष्ट्रीयता को नकारने की सलाह देता हूं। मेरे लिए राष्ट्रीयता से अधिक महत्वपूर्ण मनुष्य है।

    आप निबंध की जिस धारा से जुड़े हुए हैं उसे ललित निबंध कहा जाता है। निबंध के लिए ललित विशेषण की क्या आवश्यकता पड़ी ।

    पहली बात तो निबंध का दायरा बहुत विस्तृत है। दर्जा तीन से लेकर स्नातकोत्तर कक्षाओं तक के विद्यार्थी इसे लिखते हैं। इस स्थिति में वे सभी निबंधकार हैं। अब बताइये विद्यार्थी और प्रतिबद्ध लेखकों के निबंध तो एक जैसे नहीं होंगे और न शुक्ल जी के निबंध हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे हैं। बड़ी भिन्नता है दोनों में। इन दोनों निबंधकारों में जो भिन्नता है वही भिन्नता निबंधों के स्वरूप की भिन्नता है। इस भिन्नता को इंगित करने के लिए अंग्रेजी में जिन निबंधों को पर्सनल एसे कहा गया, उन्हीं निबंधों को हिन्दी में व्यक्तिव्यंजक संज्ञा दी गई है।

    आपको निबंध लिखने की प्रेरणा कहां से मिली ।

    बहुतों की तरह मैं भी बचपन से निबंध पढ़ता और लिखता चला आ रहा हूं, विद्यार्थी जीवन में मुझे द्विवेदी जी के व्यक्तिव्यंजक निबंध बहुत प्रभावित करते थे, ढूंढ़ ढूंढ़कर उनके निबंधों को पढ़ा करता था, फिर बाद में निबंधों को पढ़ने का ऐसा चाव जागा कि कई निबंधकारों को जमकर पढ़ा। कईयों से प्रभावित हुआ और होता गया, पर द्विवेदी जी के बाद विद्या निवास जी के निबंधों से मेरा मन अधिक रमा। किस-किस का नाम लूं, पूरी निबंध परंपरा ने ही मुझे प्रभावित किया है और मेरे निबंधकार को गढ़ा।

    आपकी दृष्टि में साहित्य किसके लिए लिखा जाता है? जन सामान्य के लिए अथवा विशिष्ट किस्म के पाठकों के लिए?

    इस प्रश्न पर आचार्यो ने अधिक विचार किया है और गहराई से किया है, उतनी गहराई में मैंने नहीं सोचा है, पर सामान्य ढंग से ही यही सोचा है और वह यह कि साहित्य जनसामान्य के लिए नहीं, विशिष्ट लोगों के लिए लिखा जाता है, पर कहा जाता है कि जन सामान्य के लिए, जांच करने पर पता चल सकता है कि साहित्य पढ़ने वाले पाठक किस वर्ग के हैं और वे किस प्रकार का व्यवसाय करते हैं। साहित्य के पाठक विभिन्न वर्गो के होने के बाद भी अपने परिवेश के प्रति जागरूक तथा संवेदनशील व्यक्ति होते हैं। उन्हीं के लिए साहित्य लिखा जाता है। यही कारण है कि श्रेष्ठ साहित्य कुछ लोगों तक ही सीमित रह जाता है।

    आप राजनीति में छात्रों की भागीदारी से कहां तक सहमत हैं ।

    छात्र राजनीति के सिंद्धांतों को पढ़ें, उसे बारीकी से समझें तथा उसका निरीक्षण-परीक्षण करें तो यह ठीक है, किन्तु वे लिखना-पढ़ना छोड़कर दलगत राजनीति में हिस्सा लें, इसका मैं पक्षधर नहीं हूं।

    आपको कौन सा शहर सबसे पसंद है और क्यों ।

    मैं एक भारतीय हूं, मुझे इस बात का गर्व है कि मेरा जन्म भारत में हुआ है, उस भारत में जहां जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते रहते हैं। मुझे भारत की धरती के कण कण से लगाव है, इस स्थिति में यह कहना कि अमुख नगर मुझे अधिक प्रिय है, अनुचित होगा, फिर भी बच्चा जहां जन्म लेता है, जहां पलता है, जहां खेलता-कूदता है, वहां से उसका लगाव हो ही जाता है। इस दृष्टि से कहें तो कह सकता हूं कि मुझे वाराणसी अधिक प्रिय है।

    आपको सबसे ज्यादा कौन सा अभिनेता और अभिनेत्री पसंद है ?

    विद्यार्थी जीवन में अन्य विद्यार्थियों की तरह मुझे भी फिल्म देखने का शौक था, अब नहीं है। इस कारण मुझे जो अभिनेता अच्छे लगे थे वे सभी सातवें आठवें दशक के ही हैं। फिल्म अभिनेताओं में मेरी पहली पसंद के अभिनेता दिलीप कुमार हैं, इसी तरह अभिनेत्रियों में मेरी पहली पसंद की अभिनेत्री बैजयंती माला रही हैं। पर विचित्र संयोग है कि मुझे जो दो फिल्में सबसे अच्छी लगी हैं उनमें इनका कोई रोल नहीं हैं। मेरी पहली पसंद फिल्म गाइड और दूसरी पसंद की फिल्म तीसरी कसम रही है।

    डाक्टर राममनोहर लोहिया के साहित्यिक और सांस्कृतिक विचारों ने आपको क्या दिशा दी।

    यह सही है कि मेरे विचार जगत को राममनोहर लोहिया ने अधिक प्रभावित किया है, उन्हीं के कारण सामान्य मनुष्य मेरे चिंतन का विषय बना। मैं मनुष्य को उसकी परंपरा से अगल करके नहीं देखता। आम आदमी मेरा प्रिय विषय है, वह जीने के लिए कठिन संघर्ष करता है। ऐसे मनुष्य का सम्मान होना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे मनुष्यों की कमाई पर जीवनयापन करते हैं, सुख-सुविधाओं को भोगते हैं उनकी निंदा होनी चाहिए।

    ------------------------------------

    संक्षिप्त परिचय

    नाम : डा. राम अवध शास्त्री

    जन्म: 16 अगस्त 1947

    स्थान: टांडा (गाजीपुर) उत्तर प्रदेश

    शिक्षा : काशी विद्या पीठ से एमए तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी में पीएच-डी

    व्यवसाय : सन 1970 से 74 तक वाराणसी में पत्रकारिता, बाद में रुहेलखंड विश्वविद्यालय के जगदीश सरन हिन्दू कालेज अमरोहा के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में अध्यापन।

    प्रकाशित रचनाएं- कांस फूल गये (ललित निबंध ) 1998, बिखरी यादें (संस्मरण तथा रेखाचित्र)1995, बूझता स्याम कौन तू गोरी (ललित निबंध ) 1991 संदर्भ और समीक्षा (निबंध )1987, डायरी के उड़ते पृष्ठ (ललित निबंध ) 1982, चिंतन के आयाम (निबंध ) 1974, सरदार पूर्णसिंह (समीक्षा) 1973, निराला: व्यक्ति और कवि (समीक्षा) 1972, कामायनी सर्वेक्षण (समीक्षा) 1969, धरती की आस (नाटक) 1968 राजकुमार और भालू (बाल कहानियां ) आदि हैं।

    सम्मान व पुरस्कार : सरदार पूर्ण सिंह और चिंतन के आयाम नामक पुस्तकों पर उत्तर प्रदेश सरकार तथा डायरी के उड़ते पृष्ठ और संदर्भ और समीक्षा नामक पुस्तकों पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा सम्मानित। हिन्दी की उल्लेखनीय सेवा के लिए विद्यासागर (डी.लिट) साहित्य महामहोपाध्याय, भोजपुरी भास्कर, बीसवीं शताब्दी रत्‍‌न तथा अदबी संगम एवार्ड से सम्मानित।

    ----------------------

    वैचारिक दृष्टिकोण- हिन्दी केवल एक भाषा ही नहीं वह भारत की आत्मा है, उसी में भारतीय संस्कृति अभिव्यंजित होती है। डा. राम अवध शास्त्री जी कहते हैं कि आज अपने देश में हिन्दी की जो स्थिति है और उसकी प्रति सरकार, उच्चवर्गीय लोगों और व्यवसायियों का जो व्यवहार है, उसे देखकर विश्व स्तर पर चर्चा का विषय बनने वाली हिन्दी उतना उत्साहित नहीं कर पा रही है, जितना वह उत्साहित कर सकती थी। अपने घर में हिन्दी को प्रतिष्ठित करने तथा उसे व्यवहार में लाने का काम विदेशियों का नहीं, हम भारत वासियों का है। विदेशियों का काम तो हिन्दी के महत्व को स्वीकारना है, सो वे कर रहे हैं। देखना है कि क्या हम भारतवासी विश्व हिन्दी से कुछ सीख पा रहे हैं या नहीं, हमारी सीख पर भारत में हिन्दी का भविष्य निर्भर करता है।

    ------------------------

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर