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    पतित पावनी गंगा मैया को प्रदूषण से बचाएं

    By Edited By:
    Updated: Mon, 18 Nov 2013 11:24 PM (IST)

    अमरोहा। तिगरीधाम, उमंग, उत्साह, उत्सव और स्वागत जिस पतित पावनी गंगा मैया के घाट पर है। भक्तों की आस्था उसी मोक्षदायिनी के जल की अमृता पर संकट पैदा कर रही है। हाल यही रहा तो गंगा तेरा पानी अमृत.. महत्वहीन हो जाएगा।

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    मृत्यु लोक में जन्म के बाद जीवन की कई अवस्था में मनुष्य गंगा घाट पर सदियों पुरानी परंपराओं को निभाता है। कहते हैं मां गंगा का दिल बड़ा है। सबकुछ अपने भीतर समा लेती है। जीवन की अंतिम सांस लेने के बाद हर किसी की इच्छा मोक्षदायिनी मां के इसी अमृत जल में मिल जाने की होती है। सैकड़ों मील दूर रहने वाले भक्तों की अस्थियां तक इसी उम्मीद में उनके परिजन गंगा के पवित्र जल में विसर्जित करते हैं। मान्यता है कि जिसे गंगा मैया मिल गई। उसके पाप धुल गए। जीवन में मोक्ष प्राप्त हो गया किन्तु गंगा घाट पर भक्तों द्वारा फेंकी जा रही गंदगी, शौचालय, चढ़ाए जा रहे प्रसाद आदि ने गंगा मां को विचलित कर रखा है। गंगा तेरी पानी अमृत.. महत्वहीन होता जा रहा है। महात्माओं का गंगा बचाओ आंदोलन भी बड़ी पहुंच के सामने आज तक फीका पड़ता रहा है। हाल यह रहा तो भक्तों गंगे मां कैसे बच पायेंगी? कल कार्तिक पूर्णिमा का स्नान था। लाखों श्रद्धालुओं ले आस्था की डुबकी लगाई थी। मगर गंगा घाट व मेला स्थल पर गंदगी के अवार लग गये हैं।

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