Republic Day 2025: छत्रसिंह ने हिला दी थीं अंग्रेजी शासन की चूलें, मऊरानीपुर में दी गई थी फांसी
महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान के बाद चुनौती थी देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन को आगे बढ़ाने की। इसकी कमान संभाली छत्रसिंह बुन्देला ने। उन्होंने अपने साथियों की भारी फौज एकत्र कर मऊरानीपुर पर अधिकार कर लिया जो ब्रिटिश हुकूमत के लिए चुनौती थी। झांसी के कमिश्नर पिंकने को विद्रोहियों के वहां होने की सूचना मिल गयी। छत्र सिंह के आह्वान पर बुन्देला क्रान्तिकारी मऊरानीपुर में एकत्र तो होने लगे।

जागरण संवाददाता, झांसी। महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान के बाद चुनौती थी देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन को आगे बढ़ाने की। इसकी कमान संभाली छत्रसिंह बुन्देला ने। उन्होंने अपने साथियों की भारी फौज एकत्र कर मऊरानीपुर पर अधिकार कर लिया, जो ब्रिटिश हुकूमत के लिए चुनौती थी।
झांसी के कमिश्नर पिंकने को विद्रोहियों के वहां होने की सूचना मिल गयी। उन्होंने सेना के कमाण्डिंग ऑफिसर को लिखा “एक भेदिया मऊ में एकत्र विद्रोहियों के कैम्प में भेजा गया था। उसकी सूचना के अनुसार विद्रोहियों का पहला मोर्चा मगरवारा के पास है। यहां 1,500 लोग ककरबई के ठाकुर के साथ हैं। उनके पास तोप नहीं हैं।
गढ़ी में भी 500 लोगों के होने की थी खबर
एक मोर्चा मऊरानीपुर पर है। यहां 1 हजार विद्रोही हैं, जिनमें 50 घुड़सवार हैं। गढ़ी में भी 500 लोगों के होने की खबर है। अन्य नदी के किनारे मैदान में हैं। इनमें से एक भी सैनिक ब्रिटिश सेना का विद्रोही सैनिक नहीं है। सब बुन्देला हैं।’'
छत्र सिंह के आह्वान पर बुन्देला क्रान्तिकारी मऊरानीपुर में एकत्र तो होने लगे, लेकिन किसी को पता नहीं चल रहा था कि उनका लक्ष्य क्या है। टीकमगढ़ राज्य इसे अपने क्षेत्र में होने वाला आक्रमण समझ रहा था। वहीं, राठ (हमीरपुर) के अंग्रेज अधिकारी समझ रहे थे कि क्रान्तिकारियों का निशाना राठ है।
दोनों जगहों के जासूस प्रतिदिन अपने अधिकारियों को सूचनाएं भेज रहे थे। राठ के पुलिस अधिकारी मोहम्मद हादी ने हमीरपुर के कलेक्टर को 10 जुलाई, 1858 को सूचित किया कि मौजा मझगवां के रईस हरबंश राय ने सूचित किया है कि ठाकुर जगजीत सिंह भसनेह वाले मझगवां और सरगाव की डांग में डेरा डाले हुए था और वह 2-3 दिन पहले मऊरानीपुर चला गया है।
धसान नदी के किनारे जमा थे तमाम जागीरदार
14 जुलाई को उसने फिर सूचित किया कि पनवाड़ी के थानेदार ने खबर भेजी है कि छत्रसिंह, कथरा का लक्ष्मण सिंह, अलीपुरा का राव दलजीत सिंह, भसनेह का गनेशजू, देशपत बुन्देला एवं गरौठा व हरौठा के पास के तमाम जागीरदार धसान नदी के किनारे जमा हैं।
अभिलेखागार की फाइल नम्बर 12 में पिंकने का एक पत्र है, जिसमें उसने गवर्नर जनरल के एजेंट को सूचित किया कि बिलायां (जनपद जालौन) के बरजोर सिंह भी अपने 2 हजार साथियों के साथ मऊरानीपुर में छत्रसिंह की मदद में आ गया है। छत्रसिंह के साथियों ने अंग्रेजी मऊरानीपुर थाना पर धावा बोलकर थानेदार, चौकीदारों और तहसीलदार को कैद कर लिया।
विरोध करने पर थानेदार और चौकीदार को फांसी पर लटका दिया गया। वहां के धनी सेठों को बुलाकर धन की वसूली की गयी। रामलाल और उनके भाई गंगाराम को भी पकड़कर धन मांगा गया। उन्होंने पहले तो आनाकानी की, लेकिन बाद में मान गए। रामलाल बड़ी रकम देकर छूट गया, लेकिन गंगाराम ने धन नहीं दिया। उसे मार देने का आदेश हुआ।
क्रान्तिकारियों में अफरा-तफरी का माहौल
सिपाही उसे मारने के लिए नदी किनारे ले जा रहे थे, तभी अंग्रेजी फौज के आने का शोर हुआ, जिससे क्रान्तिकारियों में अफरा-तफरी मच गई। इसका फायदा उठाकर गंगाराम बचकर भाग निकला। बाद में गंगाराम की गवाही छत्रसिंह के मुकदमे में हुई। चश्मदीद गवाह होने के कारण वही इस मुकदमे का महत्वपूर्ण गवाह था।
समय से पहले दे दी गयी फांसी
अब गेन्द झांसी कमिश्नर के पाले में थी। वह छत्रसिंह से बहुत ही अधिक खफा था और नफ़रत करता था। वह चाहता था कि सजा ऐसे दी जाए कि अन्य क्रान्तिकारियों में दहशत हो। मऊरानीपुर में आमजन के सामने सजा देना तय किया और झांसी के डिप्टी कमिश्नर को इसके लिए पत्र लिखा ‘छत्रसिंह बी हैंग्ड एट मऊ द सींस ऑफ हिज ग्रेटेस्ट क्राइम्स, द सेण्टेंस बी कैरीड आउट ऑन आर बिफोर द 25 जनवरी 1861 सेण्ड छत्रसिंह अण्डर ए स्ट्रौंग मिलिट्री पुलिस टु एवाइड आर रेस्क्यू।’
डिप्टी कमिश्नर को डर था कि उसके साथी हमला करके छुड़ाने की कोशिश कर सकते हैं, अतः एक बड़ा-सा मजबूत लकड़ी का पिंजरा बनवाया गया। उसमें छत्रसिंह को बन्द करके बैलगाड़ी में रखा गया। बैलगाड़ी के चारों तरफ मिलिट्री पुलिस हथियारों से लैस होकर मऊरानीपुर के लिए चले। वहां समय से पहले 23 जनवरी 1861 को नदी के किनारे जनता के सामने उनको फांसी दे दी गई।
सैन्य टुकड़ियों को दी छत्रसिंह को पकड़ने की जिम्मेदारी
टीकमगढ़ राज्य के सहयोग से पकड़े गए छत्रसिंह पिंकने ने ब्रिगेडियर मुंशी, कैप्टन बिलियर्ड, ग्रिफिथ, सोबर्स, गरौठा के डिप्टी कलेक्टर नियाज अली, मद्रासी फौज के दस्ते, चरखारी, टीकमगढ़ और गुरसराय के राजा की सैन्य टुकड़ियों को छत्रसिंह को पकड़ने की जिम्मेदारी दी। जब इस फौज के मऊरानीपुर आने की सूचना क्रान्तिकारियों को हुई तो वह वहां से अन्यन्त्र चले गए।
वर्ष 1858-59 तक छत्रसिंह और उनका दल अंग्रेजों को चुनौती देता रहा। 19 जून 1858 को छत्रसिंह को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। धसान नदी के किनारे अलीपुरा से 5 मील दक्षिण-पश्चिम में डिवीजन के सैन्य कमाण्डर मेजर डेविस और 42वीं बाम्बे नेटिव इन्फेण्ट्रि के लेफ्टिनेण्ट हावथार्न ने सेना और रेगुलर ट्रुप्स के साथ छत्रसिंह को घेर लिया।
छत्रसिंह तो बच कर निकल गए, लेकिन उनके 12 प्रमुख साथियों को बलिदान होना पड़ा। छत्रसिंह किसी तरह छिपकर टीकमगढ़ क्षेत्र में पहुंच गए, लेकिन टीकमगढ़ राज्य के सहयोग से बुन्देलखण्ड में पॉलिटिकल एजेण्ट जेपी स्ट्राटन ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
हत्या के जुर्म में चला मुकदमा
कमिश्नर पिंकने ने स्ट्राटन को भेजे बधाई पत्र में लिखा- ‘छत्रसिंह वॉज द मोस्ट इण्टरप्राइजिंग रिबेल लीडर इन झांसी डिस्ट्रिक्ट।’ छत्रसिंह को कैद करके झांसी लाया गया और पिंकने की अदालत में राजद्रोह तथा हत्या के जुर्म में मुकदमा चला। उसको फांसी की सजा सुनाई गई। सजा की पुष्टि के लिए फाइल एनडब्लू पीके लेफ्टिनेण्ट गवर्नर के पास 26 दिसम्बर 1860 को भेजी गई।
लेफ्टिनेण्ट गवर्नर ने सजा को बहुत जल्दी मंजूर करके 9 जनवरी 1861 को कमिश्नर के पास लौटा दिया। सजा के मंजूरी पत्र के ऑपरेटिव पैरा नम्बर 13 में लिखा गया “देयर एपिअर्स टु बी नाइदर जुडिशल नॉट पॉलिटिकल रीजन व्हाई छत्रसिंह शुड सफर द लास्ट पेनल्टि ऑफ द लॉ विच हैज बीन एडजूडेड अंगेस्ट हिम, ऐण्ड द लेफ्टिनेण्ट गवर्नर डायरेक्ट्स एकारडिंगली दैट द सेण्टेंस ऑफ डेथ पास्ड अपॉन हिम शुड बी कैरीड आउट।’
इतिहास के पन्ने पर दर्ज है वर्ष 1857 की क्रान्ति
वर्ष 1857 की क्रान्ति इतिहास के पन्ने पर दर्ज है। इसी क्रान्ति ने देश को स्वतन्त्र कराने की मुहिम को बल दिया था। स्वतन्त्रता संग्राम में बुन्देलों की सहभागिता महारानी लक्ष्मीबाई के साथ सक्रिय रूप से थी। उनके बलिदान के बाद यह ज्वाला कम नहीं हुई, और धधक उठी।
बाद में झांसी की रानी की शक्ति और ऊर्जा का इस्तेमाल कर ब्रिटिश सत्ता को बुन्देलखण्ड से उखाड़ फेंकने के लिए झांसी जनपद के ककरबई के छत्रसिंह बुन्देला ने क्रान्ति का नेतृत्व किया, जिन्हें 23 जनवरी 1861 को मऊरानीपुर में फांसी दे दी गयी।
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