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    Jhansi Medical College : आसान नहीं रहता प्री मैच्योर डिलिवरी से जन्मे बच्चे का जीवन

    Maharani Laxmi Bhai Jhansi Medical College समयपूर्व प्रसव वाले बच्चों में युवावस्था में मृत्यु दर सामान्य बच्चों की तुलना में 30 से 50 प्रतिशत अधिक पाई गई है। जीवित बचे बच्चों में मेटाबॉलिक सिण्ड्रोम (हृदय सम्बन्धी बीमारी) उच्च रक्तचाप मधुमेह और अन्य गैर-संक्रामक बीमारियों का खतरा भी अधिक होता है।

    By surendra singhEdited By: Dharmendra Pandey Updated: Thu, 12 Jun 2025 05:18 PM (IST)
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    महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज झांसी किया गया शोध

    जागरण संवाददाता, झांसी। समय से पहले प्रसव (37 सप्ताह से पहले) बड़ी समस्या बनता जा रहा है। प्री मैच्योर डिलिवरी शिशु मृत्यु दर में एक बड़ा कारण है। यदि उस समय यदि किसी तरह इन बच्चों को बचा भी लिया जाता है तो उम्र के साथ ही उन्हें कई तरह की बीमारियां घेर लेती हैं।

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    महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में विभागाध्यक्ष, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग डॉ. हेमा जे. शोभने ने बताया कि समयपूर्व प्रसव को गम्भीरता से लें। नियमित जांच, समय पर परामर्श और वैज्ञानिक जानकारी के साथ ही मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम कर सकते हैं। समाज, परिवार और स्वास्थ्य प्रणाली को एक साथ आकर गर्भवती महिलाओं को भावनात्मक और चिकित्सीय समर्थन देना चाहिए। स्वस्थ माँ ही स्वस्थ भारत की नींव है।

    समयपूर्व प्रसव वाले बच्चों में युवावस्था में मृत्यु दर सामान्य बच्चों की तुलना में 30 से 50 प्रतिशत अधिक पाई गई है। जीवित बचे बच्चों में मेटाबॉलिक सिण्ड्रोम (हृदय सम्बन्धी बीमारी), उच्च रक्तचाप, मधुमेह और अन्य गैर-संक्रामक बीमारियों का खतरा भी अधिक होता है। एक रिसर्च के अनुसार दुनियाभर में हर वर्ष लगभग 1.5 करोड़ बच्चों का जन्म समय से पहले (प्रीटर्म) हो जाता है, जो कुल जन्मों का लगभग 10.6 प्रतिशत है। इसमें 25 प्रतिशत अकेले भारत प्रीटर्म जन्म लेने वाले बच्चे हैं।

    इन हालातों में मेडिकल कॉलेज के स्त्री एवं प्रसूति विभाग ने समय से पहले प्रसव (प्रीटर्म बर्थ) से जुड़े जोखिम कारकों का मूल्यांकन करना और मातृ इतिहास, सर्वाइकल लम्बाई (गर्भाशय ग्रीवा की लम्बाई) के आधार पर एक पूर्वानुमान मॉडल बनाना है, जिससे जोखिम वाली गर्भावस्थाओं की पहचान पहले ही की जा सके, पर शोध किया।

    इन पर किया गया शोध

    इस अध्ययन में 15 महीने (जुलाई 2023 से सितम्बर 2024) के दौरान 162 गर्भवती महिलाएं (20 से 36 सप्ताह की गर्भावस्था अवधि) जो समयपूर्व प्रसव के लक्षणों के साथ आई थीं, उन्हें शामिल किया गया। इसमें मातृ आयु, चिकित्सा इतिहास, बॉडी मास इण्डेक्स (सबसे अच्छे वजन का एक अनुमानित माप), धूम्रपान की स्थिति, बहुप्रसूता होने की जानकारी, ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउण्ड से मापी गई सर्वाइकल लम्बाई और फीटल फाइब्रोनेक्टिन स्तर शामिल किए गए। सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए लॉजिस्टिक रिग्रेशन और मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म का उपयोग किया गया।

    शोध में यह पाया गया

    अध्ययन में यह पाया गया कि 20-25 वर्ष की उम्र की महिलाएं सर्वाधिक (30.2 प्रतिशत) थीं। जिन महिलाओं की गर्भाशय ग्रीवा की लम्बाई 25 मिमी से कम थी, उनकी संख्या 36.4 प्रतिशत थी और यह समय से पहले प्रसव से काफी जुड़ा पाया गया। वहीं, 50.6 प्रतिशत महिलाओं में फीटल फाइब्रोनेक्टिन स्तर 100 एनजी/एमएल से अधिक पाया गया, जो इसे एक प्रभावशाली संकेतक बनाता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह शोध बताता है कि समयपूर्व प्रसव का जोखिम पहचानने में मील का पत्थर है। भविष्य में अन्य बायोमार्करों (सामान्य या असामान्य जैविक प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं), उन्नत मशीन लर्निंग तकनीक और व्यक्तिगत जोखिम मूल्यांकन विधियों के माध्यम से मॉडल की सटीकता बढ़ाई जा सकती है।