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    महारानी ने बनवायी थी गंगाधर राव की समाधि

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 06 Apr 2021 06:31 PM (IST)

    लोगो : बुन्देली वैभव - विकास वैभव ::: फोटो : 5 जेएचएस 3 ::: महाराजा गंगाधर राव की समाधि। ...और पढ़ें

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    महारानी ने बनवायी थी गंगाधर राव की समाधि

    लोगो : बुन्देली वैभव

    - विकास वैभव

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    फोटो : 5 जेएचएस 3

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    महाराजा गंगाधर राव की समाधि।

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    महाराजा छत्रसाल ने जब बुन्देलखण्ड के वृहत भाग को 3 भागों में बाँटकर पेशवा बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र मानते हुए झाँसी का सम्भाग दे दिया, तब से सन् 1804 ई. तक झाँसी दुर्ग पूना के पेशवा नियन्त्रण में रहा। वर्ष 1804 में मराठा सरदार शिवराव भाऊ ने अंग्रे़जों से सन्धि करके झाँसी को पूना के पेशवा से मुक्त करा लिया और स्वतन्त्र रूप से शासन करने लगे। सन् 1817 में शिवराव भाऊ के पश्चात उनके पौत्र रामचन्द्र राव (1817-35) राजा बने, क्योंकि भाऊ के ज्येष्ठ पुत्र कृष्णराव की मृत्यु उनके समय में ही हो गई थी। अत: ज्येष्ठ पुत्र का पुत्र होने के नाते अंग्रे़जों ने रामचन्द्र राव को ही मान्यता दी। रामचन्द्र राव की मृत्यु के पश्चात उनके चाचा रघुनाथ राव (1835-38) एवं गंगाधर राव (1838-53)राजा बने। झाँसी शहर के पूर्व दिशा में लक्ष्मी ताल के पश्चिमी किनारे पर यह छतरी दुर्ग शैली के प्रागण में एक कक्षीय निर्मित है। सन 1853 ई. में झाँसी के महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु उपरान्त महारानी लक्ष्मीबाई ने उनकी स्मृति में इस समाधि का निर्माण करवाया था। प्रागण के चारों कोनों पर एक-एक भव्य अष्टकोणीय गुम्बज से आवृत बुर्ज है। प्रागण की प्राचीर पर प्रत्येक दिशा में कमल पंखुड़ियों से आवृत धनुषाकार वितान बनाये गये है। उत्तर दिशा के वितान पर दो सिंहों के मध्य महाराजा गंगाधर राव की प्रतिमा चूने से बनाई गयी है। झाँसी में किसी राजपुरुष की यह एकमात्र प्रतिमा है अत: अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मुगल शैली में ईट निर्मित यह समाधि चाहर दीवारी के मध्य उद्यान में एक बारादरी के रूप में बनाई गई है। यह बलुये पत्थर की बारादरीनुमा लघु छतरी है, इसमें प्रवेश हेतु चारों तरफ 3-3 द्वार हैं। इन द्वारों के मेहराब तथा बहुकोणीय स्तम्भों पर लता, पुष्पों एवं कमल पंखुड़ियों को सुन्दरता से उत्कीर्ण किया गया है। इसकी छत सपाट है तथा चारों ओर अलंकृत छज्जा लगा है। छज्जे के टूड़ों के मध्य बने लघु चित्र अब समाप्त हो गये है। स्मारक में कौड़ी तथा चूने के मसाले से बनी विभिन्न आकृतियाँ देखने योग्य है। यह छतरी झाँसी की उत्कृष्ट स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है। वर्तमान समय में यह स्मारक पुरातत्व के अधीन है तथा महाराजा गंगाधर राव की पुण्यतिथि पर यहाँ कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

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    फोटो : 5 जेएचएस 4

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    बरुआसागर का किला (झाँसी)

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    बुन्देलखण्ड का कश्मीर है बरुआसागर

    सागर की भाँति लगभग 180 वर्ग किलामीटर क्षेत्र में विस्तृत विशाल झील के पश्चिमी दक्षिणी तट पर विद्यमान लघु पहाड़ी पर बरुआसागर का किला निर्मित है। झाँसी-खजुराहो मार्ग (नैशनल हाइवे-75) पर झाँसी से 23 किमी. दूर बरुआसागर में स्थित है यह दुर्ग। वर्तमान समय में यह किला पुरातत्व विभाग के अधीन एक संरक्षित स्मारक है। इसके पहले इस किले में बीटीसी प्रशिक्षण विद्यालय संचालित था। इस किले का निर्माण ओरछा नरेश उद्वेत सिंह (1689-1736ई.) ने करवाया था। बरुआसागर प्राकृतिक सुषमा की दुष्टि से 'बुन्देलखण्ड का कश्मीर' कहलाता है। बरुआसागर का नाम 'बरुआ' नामक एक बड़ी झील के नाम पर रखा गया है। यह झील इतनी विशाल है कि इसका दूसरा छोर भी दिखाई नहीं देता है। इस झील का एक तटबन्ध भी राजा उद्वेत सिंह ने करवाया था। तटबन्ध की संरचना वास्तुकला और एंजिनियरिग का एक अनूठा उदाहरण है। झील के किनारे बैठकर किले को देखना एक सुखद अनुभव है, वहाँ से वह बहुत ही खूबसूरत लगता है। महाराजा गंगाधर राव एवं महारानी लक्ष्मीबाई द्वारा ग्रीष्म ऋतु प्रवास-स्थल के रूप में प्रयोग किये जाने वाले इस किले के विशाल परकोटे में 9 बुर्ज बने हैं। किला 2.5 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। किले में प्रवेश हेतु 3 प्रवेश द्वार है, मुख्य प्रवेश द्वारा के सम्मुख गणेश की मूर्ति स्थापित है। किले के मध्य में 64X64 मीटर क्षेत्र में 30 मीटर ऊँचा राममहल विद्यमान है, जिसे 'पंचमहल' कहा जाता है। पंचमहल के भू-तल पर 16 कक्ष, प्रथम तल पर 16 कक्ष, द्वितीय तल पर 22 कक्ष, तृतीय तल पर 5 कक्ष, चतुर्थ एवं पंचम तल पर 1-1 कक्ष निर्मित है। महल की मोटी-मोटी दीवारों के कारण कक्षों में वातानुकूलित मौसम आज भी विद्यमान रहता है। महल के द्वितीय तल पर 2 आँगन का निर्माण हुआ, जिसमें बड़े आँगन में 500 से अधिक व्यक्ति बैठ सकते है। किले में तीन कुयें भी मौजूद हैं। ग्रेनाइट से बने दो प्राचीन चन्देलकालीन मन्दिरों के खण्डहर झील के उत्तर-पूर्व में हैं। इन्हे 'घुघुआ मठ' कहा जाता है।