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    गौरैया का एक घर ले लो बाबूजी!

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 25 May 2020 01:03 AM (IST)

    फोटो :: 24 एसएच 28 व 34 लोगो : हमें नाज है - डॉ. अचल सिंह चिरार झाँसी : गाँव के घरों में, आगन

    गौरैया का एक घर ले लो बाबूजी!

    फोटो :: 24 एसएच 28 व 34

    लोगो : हमें नाज है

    - डॉ. अचल सिंह चिरार

    झाँसी : गाँव के घरों में, आगन में फुदक-फुदक कर चलने वाली नन्ही-सी चिड़िया गौरैया का शहरों में अस्तित्व ख़्ातरे में पड़ता जा रहा है। आधुनिक शहरों में न तो गौरैया के कद्रदान हैं और न ही उनके घरौंदों के लिए प्राकृतिक वातावरण। तिनका-तिनका चुन कर बड़े परिश्रम से वह किसी के घर के एक कोने में बड़ी मुश्किल से घरौंदा तैयार भी कर लेती है तो लोगों को यह घास-फूस के टुकड़ों का ढेर फूटी आँख नहीं भाता। एक झटके में घरौंदा बिखेर देते हैं। जब घोंसला ही सलामत नहीं है तो नई पीढ़ी का जन्म कैसे होगा, किसी स्थायी ठौर की तलाश में इधर-उधर चीं-चीं कर उड़ती नन्ही सी चिड़िया को क्या हम घर का कोई फालतू कोना भी नहीं दे सकते? एक ओर घोंसलों के लिए संघर्ष है तो दूसरी ओर आधुनिक संचार यन्त्रों की तरंगें भी इन पर जुल्म ढाने लगी हैं। इनका जीवन ख़्ातरे में है। गौरैया के अस्तित्व को बचाने के लिए प्रतिवर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया संरक्षण दिवस मनाया जाता है, पर सच तो यह है कि जब तक हम इन परिन्दों को घरों में, दिलों में नहीं बसाएंगे, उनका संरक्षण नहीं कर पाएंगे। गौरैया के संरक्षण के लिए शहर का एक शख्स धर्मेन्द्र सिंह नमन तन, मन और धन से समर्पित है। वह गौरैया के कृत्रिम घोंसलों का निर्माण करते हैं और उन्हें नि:शुल्क घरों में लगाते हैं। उनकी इस मुहिम में आपकी सहभागिता भी हो सकती है बस, गौरैया का एक घर तो ले लो बाबूजी।

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    एक घटना ने बदल दी दिशा

    गोविन्द चौराहे से बिपिन बिहारी इण्टर कॉलिज मार्ग पर मोहनी बाबा निवासी धर्मेन्द्र सिंह नमन बबीना छावनी परिषद में माली के पद पर कार्यरत हैं। वह बताते हैं कि माता जी को देखकर मैंने भी छत पर चिड़ियों के लिए दाना और पानी रखना शुरु कर दिया था। छत पर कई चिड़िया आतीं और दाना-पानी लेकर चली जातीं। एक दिन शाम के समय छत पर पंखा चल रहा था। एक गौरैया दाना चुग कर पानी पीने के बाद जैसे ही उड़ी, वह पंखे की चपेट में आ गई। वहीं, उसकी मृत्यु हो गयी। इस घटना ने मुझे विचलित कर दिया। मैंने चिड़िया को उठाया और जमीन में गढ्डा खोदकर गाड़ दिया। उसके बाद उस पंखे को हटा दिया और आज तक नहीं लगाया। बस उसी दिन से गौरैया से अजीब-सा रिश्ता जुड़ गया। उनकी निगरानी प्रारम्भ कर दी। गौरैया कहाँ रहती है, कैसे रहती है, उसे कहाँ सुरक्षित महसूस होता है आदि जानने में जुट गया।

    पहले घास-फूस का बनाया घोंसला

    धर्मेन्द्र ने सबसे पहले घास-फूस का घोंसला बनाकर तैयार किया और पेड़ पर लगा दिया, पर इसमें गौरैया नहीं आयीं। कई अन्य तरह के घोंसले बनाये तो आखिरकार सफलता मिली। इनमें गौरैया ने आना प्रारम्भ कर दिया। उसने इनमें अण्डे भी दिये मगर मुश्किल यह थी कि दूसरे पक्षी जैसे कौए ने सारे अण्डे नष्ट कर दिये।

    फिर घोंसले की डि़जाइन में परिवर्तन कर दिया। उसमें थोड़ी सफलता मिली किन्तु कई बार गौरैया के नन्हे बच्चे इनसे गिरकर मर गये, जिससे सारे प्रयास विफल हो गये। फिर काफी खोजबीन के बाद कम लागत और कम समय में नालीदार, गहरा, साफ, हवादार गौरैया आवास तैयार करने में सफलता मिली।

    पहला गौरैया आवास घर के बाहर लगाया

    धर्मेन्द्र कहते हैं कि काफी मेहनत के बाद जब पहला गौरैया आवास बनाया तो मैंने उसे अपने घर के बाहर लगा दिया। दाना-पानी रख दिया और फिर निगरानी शुरु की तो देखा कि नर एवं मादा गौरैया ने पहले घोंसले का निरीक्षण किया। कई बार अन्दर-बाहर आकर देखा फिर तिनका लाना शुरू कर दिया। यह देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। प्रयास सफल होता देख मैंने और घोंसले बनाना शुरु कर दिया। पहले तो लोगों को बेचता था, पर ग्राहकों की संख्या कम होने के कारण मैंने घोंसले नि:शुल्क देने प्रारम्भ कर दिये। अब तो घरों में भी जाकर लगा देता हूँ।

    जागरूक नहीं हैं आमजन

    गौरैया के प्रति आम जनमानस में जागरूकता का अभाव है। धर्मेन्द्र सिंह का कहना है कि कई लोग शौक में गौरैया आवास ले गये, मगर उन्हें लगाया नहीं। फिर मैंने अपने ही मोहल्ले के घरों के बाहर गौरैया आवास लगा दिये, इसके सकारात्मक परिणाम मिले। मोहल्ले में गौरैया की संख्या में वृद्धि हो रही है। धर्मेन्द्र का कहना है कि आमजन भी घर में बेकार पड़े कबाड़ से गौरैया आवास बनाकर उनकी जनसंख्या वृद्धि में योगदान दे सकते हैं।

    पेड़ों के कटने से हुआ है नु़कसान

    पेड़ों के निरन्तर कटने से गौरैया जैसे पक्षियों के आशियाने उजड़ गए हैं। कच्चे घरों का स्थान पक्के मकानों ने ले लिया है। पर्यावरण की अनदेखी गौरैया के जीवन पर भारी पड़ रही है। वहीं, मोबाइल टावरों की बढ़ती संख्या ने भी इस घरेलू चिड़िया को बहुत क्षति पहुँचायी है। धर्मेन्द्र का कहना है कि हम अभी नहीं चेते तो कुछ वर्षो में यह चिड़िया केवल किताबों के पन्नों में ही ऩजर आएगी। सरकार को नये भवनों के निर्माण में एक स्थायी गौरैया आवास लगाना अनिवार्य करना चाहिए।

    बीच में बॉक्स ::

    धर्मेन्द्र सिंह नमन ने गौरैया पर कविता भी लिखी है। 'गौरैया की व्यथा' नामक उनकी यह कविता एक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है। इसके अलावा उनकी कई अन्य रचनाएं भी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।

    गौरैया की व्यथा

    बचा ले मानव मेरी ़िजन्दगानी,

    छत पर रख ले दाना पानी।

    भूख प्यास बिन मर हम जाते,

    व्यथा किसी से कह न पाते।

    पेड़ काट कर मकान बनाये,

    घरौंदा तुमने ही हमारे हटाये।

    चीं-चीं सुन अम्मा उठ जातीं,

    दाना पानी रोटी झट ले आतीं।

    फुदक-फुदक हम दाना खाते,

    मीठा-मीठा गीत सुनाते।

    अम्मा रही ना पेड़ रहे,

    हम जीवन को झेल रहे।

    प्रदूषण हम पर भारी,

    घट रही जनसंख्या हमारी।

    तुमको ही पड़ेगा हमको बचाना,

    किताबों पर हमको पड़ेगा पढ़ाना।

    हे मानव! तुम होश में आओ,

    हमारी ़िजन्दगी आप बचाओ।

    - धर्मेन्द्र सिंह नमन, मोहिनी बाबा, बीआइसी रोड, झाँसी

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