काल भैरव की आराधना से शनिदेव होते हैं शांत
जागरण संवाददाता मछलीशहर (जौनपुर) कालभैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है। मान्

जागरण संवाददाता, मछलीशहर (जौनपुर): कालभैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है। मान्यता है कि काल भैरव की पूजा से रोगों से मुक्ति व दुखों से निजात मिलती है। इसके अलावा इनकी पूजा करने से मृत्यु का भय दूर होता है और कष्टों से मुक्ति मिलती है। काल भैरव जयंती हर साल मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है।
शास्त्रों के अनुसार भगवान काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इस साल यह तिथि सात दिसंबर को पड़ रही है। काल भैरव यानि जो भय से रक्षा करता है। माना जाता है कि अगर आपके भीतर किसी बात का भय है तो काल भैरव का नाम लेते ही डर गायब हो जाएगा। हिदू धर्म में काल भैरव की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव के ही स्वरूप माने जाते हैं। इस दिन इनकी पूजा से न केवल इनकी बल्कि भगवान शिव की कृपा भी प्राप्त की जा सकती है। वास्तु एवं ज्योतिष विशेषज्ञ पंडित टीपी त्रिपाठी के अनुसार अष्टमी तिथि का प्रारंभ सात दिसंबर की शाम तीन बजकर 13 मिनट पर लगेगी और अष्टमी तिथि की समाप्ति अगले दिन आठ दिसंबर को दोपहर एक बजकर 34 मिनट पर होगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। यह भगवान का साहसिक युवा रूप है। इस रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है। व्यक्ति में साहस का संचार होता है। सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। काल भैरव को शंकर का रूद्रावतार माना जाता है।
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