विवेकहीनता व तानाशाही का परिचायक है धारा 18
माध्यमिक विद्यालयों में धारा 21 समाप्त कर धारा 1 ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, जौनपुर : माध्यमिक विद्यालयों में धारा 21 को समाप्त कर धारा 18 लागू किए जाने को लेकर शिक्षकों में आक्रोश व्याप्त हो गया है। इसको लेकर शिक्षकों द्वारा समय-समय पर बैठक कर विरोध किया जा रहा है। शिक्षकों ने कहा कि धारा 18 विवेकहीनता व तानाशाही का परिचायक है। इसकी सुनवाई न होने पर आगे बड़ा आंदोलन करके सरकार व प्रशासन को अपनी ताकत का अहसास कराएंगे। इसको लेकर शिक्षकों व शिक्षक संगठनों के पदाधिकारियों ने अपनी राय रखी।
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क्या कहते हैं पदाधिकारी
सदन में आठ शिक्षक व आठ स्नातक विधायकों के रहते हुए भी आएदिन सरकार द्वारा शिक्षकों की सेवा सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वाला कानून पारित करा लिया जा रहा है और ये लोग सदन में बैठक करके सरकार के सुर में सुर मिलाते हैं। अगर इन विधायकों के अंदर संघर्ष से प्राप्त उपलब्धियों की रक्षा करने का साहस नहीं तो तत्काल पद से हट जाना चाहिए। इन्हीं विधायकों की ही देन है कि वित्तविहीन व्यवस्था लागू हुई, इंटरमीडिएट शिक्षा संशोधन विधेयक 2007 में पारित कराकर यूपी बोर्ड से शिक्षकों का प्रतिनिधित्व समाप्त कर दिया गया। युवाओं के भविष्य से जुड़ी पेंशन योजना समाप्त हो गई।
-रमेश सिंह, प्रांतीय उपाध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षक संघ।
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धारा 21 को समाप्त करके सरकार ने शिक्षकों की पीठ में छुरा मारा है। धारा 21 शिक्षकों के उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता था। धारा 18 जुड़ने से किसी पूर्वानुमति की आवश्यकता को समाप्त करके सीधे प्रबंधक और डीआइओएस शिक्षक के विरुद्ध कार्रवाई कर सकेंगे। इससे उत्पीड़न और धन उगाही बढ़ेगी।
-संतोष कुमार सिंह, जिलाध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षक संघ शर्मा गुट।
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शिक्षक व शिक्षक संगठनों के लंबे संघर्ष के बाद प्रबंधकीय उत्पीड़न से निजात दिलाने के उद्देश्य से ही उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम 1982 की धारा 21 में प्रावधानिक किया गया कि प्रबंध तंत्र बोर्ड के पूर्वानुमोदन के सिवाय किसी अध्यापक को पदच्युत नहीं करेगा, न सेवा से हटाएगा, न हटाने की नोटिस देगा आदि। शिक्षक इसके विरोध में संघर्ष करेंगे और वापस कराएंगे।
-सरोज कुमार सिंह, जिलाध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षक संघ चेत नारायण गुट।
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सरकार शिक्षण संस्थाओं को भी निजी हाथों में सौंपकर अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ रही है जो लोकतंत्र की हत्या करने का कुत्सित प्रयास है। जिसे हम शिक्षक साथी कत्तई नहीं होने देंगे। सरकार द्वारा इस तरह के बिल पास करने में सदन में हमारे द्वारा चुने गए शिक्षक विधायकों की भी मिलीभगत है, अन्यथा शिक्षकों का मानसिक आर्थिक शोषण करने वाली धारा 18 पैदा ही नहीं होती।
-धर्मेंद्र यादव, जिलाध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षक संघ नवीन गुट।
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क्या है धारा 21, क्यों हुआ समाप्त
धारा 21 के तहत शिक्षकों को मिलने वाली परिलब्धियों में किसी प्रकार की कटौती, वेतन वृद्धि रोकना, निलंबन या सेवा से पृथक करने से पूर्व चयन बोर्ड की पूर्वानुमति अनिवार्य थी। बिना चयन बोर्ड की अनुमति के शिक्षकों के विरुद्ध की गई दंडात्मक कर्रवाई शून्य मानी जाती थी लेकिन वर्तमान सरकार ने धारा 21 को समाप्त कर धारा 18 लागू की है। धारा 18 में बिना चयन बोर्ड की अनुमति के शिक्षकों के खिलाफ किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई प्रबंधक स्वयं में कर लेगा। जिससे आएदिन प्रबंधकों द्वारा शिक्षकों का शोषण होगा और स्कूलों का शैक्षिक वातावरण बिगड़ेगा।
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क्या है धारा 18
यह सिर्फ उन माध्यमिक विद्यालयों के लिए है जो मैनेजमेंट से संचालित होते है। सरकार ने चयन बोर्ड को समाप्त कर वित्त पोषित उच्च प्राथमिक, माध्यमिक व महाविद्यालय सभी के लिए एक चयन बोर्ड बनाया है। इसके चलते धारा 21 समाप्त कर माध्यमिक के लिए धारा 18 अलग से लागू किया है।

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