ऋषि परंपरा के संवाहक हैं उड़िया बाबा त्रिभुवन दास
धृ धातु से बना धर्म शब्द केवल प्रवचन या उपदेश ही नहीं बल्कि धारण करने का विषय है। धर्म को अपने आचरण में धारण करने वाले देवरिया कुटी नियार आश्रम के परम संत श्री त्रिभुवनदास जी महराज धर्म की साक्षात प्रतिमूर्ति नजर आते हैं।
जागरण संवाददाता, जौनपुर: धृ धातु से बना धर्म शब्द केवल प्रवचन या उपदेश ही नहीं, बल्कि धारण करने का विषय है। धर्म को अपने आचरण में धारण करने वाले देवरिया कुटी नियार आश्रम के परम संत श्री त्रिभुवनदास महराज धर्म की साक्षात प्रतिमूर्ति नजर आते हैं। जन सहयोग से जन कल्याण के लिए प्रति वर्ष पूर्वाचल के किसी न किसी जनपद में महायज्ञ का आयोजन करके वह सृष्टि के संतुलन व आदर्श समाज के निर्माण के प्रयासों में लगे हुए हैं। इनके सानिध्य में आयोजित होने वाले महायज्ञों की छटा देखते ही बनती है। वहां पहुंचकर किसी के भी मुंह से यह सहज ही निकल जाता है कि सही मायने में उड़िया बाबा ऋषि परंपरा के सच्चे संवाहक हैं।
मड़ियाहूं में वसंत पंचमी के दिन से 51 कुंडीय श्री महालक्ष्मी नारायण यज्ञ इन दिनों इन्हीं के सानिध्य में चल रहा है। इसके पूर्व चंदवक, जलालपुर, नगर के अचला घाट, सिरकोनी के नरईबीर, रामदयालगंज, गौराबादशाहपुर के जिउली आदि स्थानों पर इनके सानिध्य में महायज्ञों का आयोजन सफलतापूर्वक किया जा चुका है। नियार कुटी के परमसंत रहे उड़िया बाबा दयादास महराज के शिष्य के रूप में अपनी धर्म यात्रा शुरू करने वाले श्री त्रिभुवन दास महराज अब तक वाराणसी, आजमगढ़, गाजीपुर, मेहनाजपुर, दौलताबाद, पल्हना आदि स्थानों पर महायज्ञ का आयोजन कर समाज की दशा व दिशा बदलने का प्रयास कर चुके हैं। दैनिक जागरण से संक्षिप्त वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि मानव सेवा सबसे बड़ा धर्म है। लोग सदाचारी बनें, नैतिकता से परिपूर्ण जीवन जीएं व शास्त्रानुकूल आचरण करें, वातावरण का प्रदूषण दूर हो, यही सब इस प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों का उद्देश्य होता है। उन्होंने कहा कि सत्संग बिना ईश्वर की कृपा के नहीं मिल सकती। भौतिक सुख सुविधा, संसाधन मिलना भाग्य की बात है, लेकिन सत्संग मिलना ईश्वर की कृपा के बिना संभव नहीं है। इस महायज्ञ से सुबह पांच बजे से सात बजे तक नित्य वेद पाठ, इसके पश्चात मंडपस्थ देवी-देवताओं की पूजा व शाम पांच बजे तक हवन आदि होता है। आरती के बाद नित्य सायंकाल सात बजे से रात 10 बजे तक राम कथा होती है। पर्ण कुटियों को देख होती है सुखद अनुभूति
यज्ञ स्थल पर बड़ी संख्या में यजमानों व विद्वान आचार्यो के निवास के लिए बनाई गई पर्ण कुटियों का अलग ही आनंद है। इसे देखकर लोगों को न केवल सुखद अनुभूति होती है, बल्कि ऋषि परंपरा की याद अनायास ही ताजा हो जाती है। अलग-अलग कुटियों में यजमान पूरे बारहों दिन निवास करते हैं।
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