करशूलनाथ महादेव मंदिर
परम पावन सई नदी के उत्तरी तट पर स्थित सदियों पुराना बाबा करशूलनाथ धाम इस क्षेत्र का प्रमुख त
परम पावन सई नदी के उत्तरी तट पर स्थित सदियों पुराना बाबा करशूलनाथ धाम इस क्षेत्र का प्रमुख तीर्थ स्थल है। पवित्र श्रावण मास में इस ऐतिहासिक शिव मंदिर पर भक्तों का भारी रेला उमड़ता है। पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इस मंदिर की प्राचीनता के संबंध में पुरातत्व विभाग भी कोई अनुमान नहीं लगा पाया है।
पौराणिकता
प्राचीन शिव मंदिर की प्राचीनता के संबंध में केवल कहानियां ही सुनी जा सकती हैं। मंदिर के दक्षिण में स्थित कूप के भीतरी भाग में शिलालेख पर कुछ अंकित है लेकिन वह किस लिपि और भाषा में लिखा है यह आज तक स्पष्ट नहीं हो सका। पुरातत्व विभाग की टीम भी इस शिलालेख को पढ़ने में सफल नहीं हो सकी। मान्यता है कि सदियों पूर्व यहां जंगल में भरों की बस्ती थी। इसी स्थान पर सई नदी में मिर्जापुर के एक व्यापारी की सामानों से भरी नांव फंस गई। व्यापारी रात्रि विश्राम के लिए यहां रुका तो उसकी नाव चोरी हो गई। व्यापारी को रात में स्वप्न आया कि मैं यहां विराजमान हूं। तुम्हारे साथ अन्याय नहीं होगा। अगले दिन उसकी सामानों से भरी नाव उसे वापस मिल गई। व्यापारी ने जंगल में शिव को ढूंढना प्रारंभ किया तो उसे एक स्थान पर शिव¨लग मिला। उसने शिव¨लग को निकालकर अपने साथ ले जाने की योजना बनाई लेकिन शिव¨लग निकल नहीं पाया। ऐसी दशा में उसी स्थान पर एक शिव मंदिर और कूप का निर्माण कराया। कूप में शिलालेख पर संभावित मंदिर की निर्माण तिथि या महत्ता के संबंध में कुछ अंकित है जो आज तक अपठनीय है। सदियों से क्षेत्रवासी बाबा करशूलनाथ महादेव मंदिर में पूजन-अर्चन करते चले आ रहे हैं। 1956 में मंदिर पर बिजली गिरने से शिखर भाग ध्वस्त हो गया। उस पर लगा स्वर्ण त्रिशूल कहीं खो गया। भक्तों ने मरम्मत कराकर मार्बल लगा दिया। क्षेत्र में ऐसी मान्यता है कि बाबा के दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। पूरे श्रावण मास और सोमवार, शनिवार को यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है।
तैयारी:- सावन में यहां जलाभिषेक के लिए शिवभक्तों व कांवरियों का रेला उमड़ता है। भीड़ को देखते हुए पर्व शुरू होने से पहले ही तैयारी पूरी कर ली गई है। शिवालय प्रबंधन से जुड़े लोग माहभर श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो इस बात का ध्यान रखते हैं। सुरक्षा की भी मुकम्मल व्यवस्था है।
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मंदिर का पट सुबह चार बजे खोल दिया जाता है। दो बार आरती होती है। विशेष तिथियों पर पट 12 बजे ही खुल जाता है। विशेष दिनों में बीच में मंदिर बंद कर साफ-सफाई करने के बाद दर्शनार्थियों के लिए पट खोल दिया जाता है। महिलाओं और पुरुषों के अलग-अलग पंक्ति की व्यवस्था की गई है।
अशोक गिरी, पुजारी
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इस ऐतिहासिक मंदिर पर महिलाओं के लिए शौचालय की व्यवस्था न होने से उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ता है। श्रावण मास एवं मलमास में महिला श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ के कारण कभी-कभी चेन स्नै¨चग की घटनाएं हो जाती है। ऐसे में यहां महिला पुलिस बल की व्यवस्था आवश्यक है।
आशा ¨सह, व्यवस्थापक
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