जौनपुर के वृद्धाश्रम में मां ने तोड़ा दम, बेटे ने शव लेने से किया इन्कार
जौनपुर में एक दुखद घटना घटी। वृद्धाश्रम में एक माँ ने अंतिम सांस ली, पर बेटे ने शव लेने से मना कर दिया। वृद्धाश्रम के कर्मचारियों और स्थानीय लोगों ने मिलकर अंतिम संस्कार किया। इस घटना ने रिश्तों की बदलती परिभाषा पर सवाल उठाया है।

शोभा की मौत से भी बड़ा दर्द देने वाला था उनके बेटों का व्यवहार।
जागरण संवाददाता जौनपुर। मानवता को झकझोर देने वाला एक मामला सामने आया है। इसने रिश्तों, संस्कारों और मानवीय संवेदनाओं की असलियत को बेनकाब कर दिया। गोरखपुर की 65 वर्षीया शोभा देवी जीवन के अंतिम पड़ाव में जौनपुर के एक वृद्धाश्रम में सहारा ढूंढ रहीं थीं। उन्हें मौत के बाद भी वह सम्मान नहीं मिला, जिसकी हकदार हर मां होती हैं।
बीमारी के चलते शोभा देवी 20 नवंबर को चल बसीं। शोभा की मौत से भी बड़ा दर्द देने वाला था उनके बेटों का व्यवहार। घर में शादी का हवाला देकर अपशकुन बताते हुए बेटों ने मां के शव को ले जाने से इन्कार कर दिया। जब आश्रम प्रबंधन ने बड़े बेटे को मां के निधन की सूचना दी तो उसने जो जवाब दिया वह मानवता के गाल पर तमाचा था। कहा कि घर में शादी है, लाश अभी भेजोगे तो अपशकुन होगा।
चार दिन डीप फ्रीजर में रख दो। इसके बाद ले जाऊंगा। केयर टेकर रवि चौबे व रिश्तेदारों के प्रयास से किसी तरह शव गोरखपुर भेजा गया। वहां बड़े बेटे ने अंतिम संस्कार के बजाय मां के शव को दफना दिया। कहा कि चार दिन बाद मिट्टी से निकालकर संस्कार करेंगे। पति भुआल गुप्ता का कहना था कि चार दिन में शव कीड़े खा जाएंगे, फिर कौन-सा संस्कार होगा। क्या इसी दिन के लिए हमने बच्चों को पाला था।
घरेलू विवाद के चलते बड़े बेटे ने माता-पिता को करीब दो साल पहले घर से निकाल दिया था। बेघर हुए भुआल आत्महत्या करने राजघाट पहुंचे थे। किसी ने समझाया तो जौनपुर के वृद्धाश्रम में शरण मिली। यही आश्रम शोभा देवी का अंतिम पनाहगाह बन गया। रिश्तेदारों का दवाब पड़ा तो पति भुआल बयान बदलने लगे। बताया कि शादी के बाद शव के बजाय पुतला जलाकर अंतिम संस्कार की रस्म पूरी की जाएगी। ऐसा बेटों ने भरोसा दिया है।

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