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समाज में बदलाव का आइना बने स्वच्छता स्लोगन

स्वच्छ भारत मिशन के तहत ओडीएफ घोषित हुए चुके जनपद में बीते दो वर्षों के सामाजिक बदलाव को केंद्रित योजना के तहत बनाए गए स्लोगन समाज का आइना बन चुके हैं। इन स्लोगन में न सिर्फ दो वर्ष पहले की स्थिति की झलक मिलती है बल्कि आज की जरूरत को शब्दों के माध्यम से करीने से उकेरा जा रहा है। अब तक जिले में करीब 1127 सरकारी प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों के लिए इस तरह के स्लोगन गढ़े जा चुके हैं। जो प्रेरणा भी देते हैं और आइना भी दिखाते हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Nov 2018 05:57 PM (IST)Updated: Wed, 07 Nov 2018 05:57 PM (IST)
समाज में बदलाव का आइना बने स्वच्छता स्लोगन
समाज में बदलाव का आइना बने स्वच्छता स्लोगन

मनोज द्विवेदी, मीरजापुर :

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स्वच्छ भारत मिशन के तहत ओडीएफ घोषित हुए चुके जनपद में बीते दो वर्षों के सामाजिक बदलाव की केंद्रित योजना के तहत बनाए गए स्लोगन समाज का आइना बन चुके हैं। इन स्लोगनों में न सिर्फ दो वर्ष पहले की स्थिति की झलक मिलती है बल्कि आज की जरूरत को शब्दों के माध्यम से करीने से उकेरा जा रहा है। अब तक जिले में करीब 1127 सरकारी प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों के लिए इस तरह के स्लोगन गढ़े जा चुके हैं। जो न सिर्फ प्रेरणा देते हैं बल्कि इस हकीकत की गवाही भी दे रहे हैं।

दिल्ली स्थित कंसलटेंसी द्वारा बनाई गई योजना के तहत बि¨ल्डग एज ए लर्निंग एड (बीएएलए) यानि बाला के नाम से भी जाना जाता है। यह योजना पूरे प्रदेश के 40 जिलों में चलाई जा रही है। इसके तहत जनपद के करीब 2210 स्कूलों को चयनित किया गया है। इनमें से 1127 स्कूलों में स्लोगन लिखने, अत्याधुनिक शौचालय निर्माण और हाथ धोने की पूरी प्रक्रिया वाले वास बेसिन का निर्माण किया जा चुका है। शेष स्थानों पर भी जल्द ही योजना के तहत कार्य कराया जाएगा।

स्वच्छ भारत मिशन के प्रोजेक्ट आफिसर विनोद श्रीवास्तव ने बताया कि इस योजना के तहत बीते दो वर्षों में बड़े ही सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं। पहले जहां हमें स्वच्छता या शौचालय की आवश्यकता के बारे में जागरूक करना पड़ता था, वहीं अब लोग स्वत: आकर शौचालय के इस्तेमाल के लाभ गिनाते हैं। जिन स्कूलों में यह स्लोगन लिखे गए हैं, वहां के बच्चे भी हमारे कैंपेनर बन गए हैं, वे बिना किसी प्रशिक्षण के ही स्वच्छता की अलख भी जगा रहे हैं।

ऐसे-ऐसे लिखे स्लोगन

मझवां ब्लाक का रामचंदर पुर गांव इसका उदाहरण हैं। बीते दो अक्टूबर को यहां पहुंची यूनिसेफ की टीम ने भी इस बदलाव को अद्भुत कहा। इतना ही नही विश्वपटल पर गांव की चर्चा हुई। यहां के स्कूल की दीवार पर एक चित्र बना है, जिसमें व्यक्ति झाड़ियों के पास खुले में शौच करने बैठा है। बगल में एक सांप भी छिपा है। स्लोगन लिखा गया- श्रीमान खतरों के खिलाड़ी, चलो शौचालय छोड़ो झाड़ी। इसी तरह एक स्लोगन है कि- कोई मुझे चाहे छूना या करना चाहे प्यार, मां तुम देखती रहना, वह साबुन से हाथ धोए बार-बार। इसी तरह के प्रेरणादायी व आइना दिखाने वाले स्लोगन सभी चयनित स्कूलों की दीवार पर लिखे जा रहे हैं। जो सामाजिक बदलाव की कहानी को शब्द चित्रों के जरिए जनमानस के सामने रखते हैं।

इसलिए बनी यह योजना

कंसलटेंसी का मानना है कि गांव के प्राथमिक स्कूल जो बच्चों की पहली पाठशाला होते हैं, उन्हें चाइल्ड फ्रेंडली बनाया जाए। दैनिक जरूरतों व रोज की आदतों को स्कूल में विभिन्न तरह के क्रियाकलाप व खेल गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को समझाया जाए। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बाला योजना चलाई जा रही है।

वर्जन

'जिले को स्वच्छता की श्रेणी में अव्वल बनाने में प्राथमिक, माध्यमिक स्कूलों का बड़ा योगदान होता है। यह अभियान समाज के बदलाव को दर्शाता है, जिसे पूरी तन्मयता से पूरा किया जा रहा है।'

प्रियंका निरंजन, मुख्य विकास अधिकारी, मीरजापुर


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