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    दादा कुंज बिहारी थे आजादी आंदोलन के महानायक

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 14 Aug 2018 10:58 PM (IST)

    स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दादा कुंज बिहारी ¨सह को आजादी आंदोलन के महानायक के रूप में भी जाना जाता था। इस जाबांज ने अपने बहादुरी से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए थे। आजादी के पूर्व बाबतपुर व बनारस ट्रेन डकैती कांड का नेतृत्व इन्होंने बखूबी निभाया। जिनके नाम से ही गोरी सरकार में दहशत व्याप्त था। वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करते हुए कई बार जेल गए।

    दादा कुंज बिहारी थे आजादी आंदोलन के महानायक

    जागरण संवाददाता, जौनपुर : स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दादा कुंज बिहारी ¨सह को आजादी आंदोलन के महानायक के रूप में भी जाना जाता था। इस जाबांज ने अपने बहादुरी से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए थे। आजादी के पूर्व बाबतपुर व बनारस ट्रेन डकैती कांड का नेतृत्व इन्होंने बखूबी निभाया। जिनके नाम से ही गोरी सरकार में दहशत व्याप्त था। वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करते हुए कई बार जेल गए।

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    दादा के नाम मशहूर कुंज बिहारी का जन्म वर्ष 1906 में जिले के खुटहन विकास खंड के बड़नपुर गांव में एक प्रतिष्ठित क्षत्रिय परिवार में हुआ था। यह भी एक अजीब इत्तिफाक था कि जिस दिन दादा का जन्म हुआ था, उसी दिन उनके पिता ठाकुर बासदेव ¨सह की तेरही थी। किसको मालूम था कि वह नवजात शिशु आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन का महानायक बनेगा। बचपन में ही भारतीयों पर हो रहे जुल्मों-सितम को देखकर उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत भरने लगा।

    सन 1923 में ¨हदुस्तान प्रजातंत्र संघ एचएसआरए-1 के नाम से एक राजनीतिक संस्था स्थापित हुई, जो एक गुप्त क्रांतिकारी दल था और ये लोग उनके सदस्य होते थे। इसकी स्थापना बनारस षडयंत्र कांड के मुख्य क्रांतिकारी सान्याल ने की थी। दादा कुंज बिहारी भी इनके सक्रिय सदस्य थे। दादा की बहुचर्चित काकोरी कांड नौ अगस्त 1928 व बनारस षडयंत्र कांड में प्रमुख भूमिका थी। बहुचर्चित बाबतपुर ट्रेन डकैती कांड के ये नायक व संघटक थे। महात्मा गांधी के संपर्क में आने के फलस्वरूप 1930 में इन्हें नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल भी जाना पड़ा और वे नासिक जेल में छह माह तक रहे। वर्ष 1935 में यह तय हुआ कि जनता पर ओजस्वी क्रांतिकारी भाषण के विप्लवी प्रभाव का आंकलन किया जाए, जिसे सन 1942 की क्रांति का दादा दल की ओर से पूर्वाभ्यास कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगा। सन 1935 में गोमती तट से लगे खुटहन क्षेत्र के गजइनपुर-वीरमपुर के कटाव के प्रश्न को लेकर यह मामला अपना रंग दिखा गया। उपस्थित जनसमूह के नौ बहादुर शहीद हो गए तो 80 छत विक्षत हो गए।

    1930 से लेकर सन 1948 तक वे जौनपुर जिला परिषद के सदस्य भी रहे। क्रांति के नायक दादा कुंज बिहारी को 1941 में भी 18 महीने की सजा हुई तथा अर्थदंड न भरने पर यह सजा दो माह और बढ़ा दी गई। अंतिम समय तक वे स्वतंत्रता संग्राम समिति भवन के सदस्य रहे। 25 अक्टूबर सन 1973 को उन्होंने अंतिम सांस अपने आवास पर दिन में 11 बजे ली।

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