त्याग, बलिदान की मशाल जलाया उमानाथ ने
जौनपुर : अमर शहीद उमानाथ सिंह की 18वीं पुण्यतिथि गुरुवार को है। आज जबकि समूची राजनीति व्यापक जनहित की दृष्टि से संवेदनशून्य हो गई है, जनप्रतिनिधि त्याग, बलिदान और उत्सर्ग भाव त्याग कर भ्रष्टाचार व शोषण के पर्याय बन गए हैं, ऐसे में अपने जीवन की आहुति देकर उन्होंने बलिदान की कभी न बुझने वाली मशाल जलाई।
13 अगस्त 1938 को जौनपुर नगर से 6 किमी. दूर महरूपुर गांव में एक संस्कारवान एवं धर्म परायण सम्पन्न परिवार में जन्में शहीद उमानाथ सिंह बाल्यकाल से ही धीर, गंभीर एवं उत्तरदायित्व की भावना से पूर्ण थे। वर्ष 1957 में राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित होकर भारतीय जनसंघ के निष्ठावान कार्यकर्ता के रूप में आपने राष्ट्रसेवा के कण्टकाकीर्ण पथ पर अपने पांव बढ़ा दिए। सदाचार को प्रोत्साहित करना उनका स्वभाव था, अनाचार से जूझना उनकी प्रवृत्ति थी। व्यापक जनहित एवं राष्ट्रहित में उन्हें 1957, 1975 एवं 1990 में क्रमश: खाद्य आन्दोलन, आपातकाल एवं राम जन्मभूमि आंदोलन में जेल की यात्रा करनी पड़ी।
वर्ष 1969 में वे पहली बार जौनपुर जनपद के बयालसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। पुन: 1974, 1989 एवं 1991 में भी इसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए। 24 जून 1991 को तत्कालीन प्रदेश सरकार में मंत्री के रूप में सम्मिलित किए गए। कारागार एवं पेंशन तत्पश्चात पशुधन विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में प्रदेश एवं जनपद के विकास की दृष्टि से एक मंत्री के रूप में आपका अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान रहा।
अमर शहीद उमानाथ सिंह का व्यक्तित्व बहुमुखी एवं संवेदनाओं से भरा था। 13 सितम्बर 1994 को लोकतंत्र पर हमला बोलने वाली आततायी शक्तियों से सामान्य जन की रक्षा हेतु यह महान योद्धा जूझ पड़ा और अंतिम दम तक जूझते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
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