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    इतिहास समेटे है केराकत का प्रसिद्ध काली मंदिर

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    Updated: Mon, 07 Apr 2014 01:00 AM (IST)

    केराकत (जौनपुर) : नगर के मध्य घनी आबादी के बीच स्थित मां काली मंदिर का इतिहास 146 साल पुराना है। इस मंदिर में दर्शन-पूजन हेतु क्षेत्र के आस-पास के अलावा दूर-दराज से भारी तादाद में श्रद्धालु आते हैं।

    बताते हैं कि केराकत नगर के राय साहब परिवार के सदस्य दयाकृष्ण मां काली के अनन्य भक्त थे। वह सदैव उनकी पूजा अर्चना में लीन रहा करते थे। वर्ष 1867 में एक रात को स्वप्न में मां काली ने उन्हें अपना दर्शन दिया और एक भव्य मंदिर निर्माण करने की प्रेरणा दी। बाबू दयाकृष्ण स्वयं जमींदार थे। उन्हें धन की कोई कमी नहीं थी। इसलिए उन्होंने अपने मकान के बगल में मां काली का मंदिर बनाने का दृढ़ निश्चय किया।

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    उन्होंने स्वप्न में मां काली के जिस शांत रूप को देखा था, ठीक वैसी ही मूर्ति बनवाने का निश्चय किया। वह खुद मूर्तिकार व संगीतकार थे। इसलिए अपने साथ दस साथियों को लेकर जयपुर जाने का निश्चय किया। जयपुर में मां काली की मूर्ति के लिए कसौटी पत्थर की खोज के साथ ही जयपुर में सबसे अच्छे मूर्तिकार को मां काली की शांत मूर्ति का स्वरूप प्रदान करवाया, जो उनकी स्वप्न कल्पना में था।

    मां काली की प्रतिमा के साथ 39 देवी-देवताओं की मूर्ति बनवाई। जिसमें भगवान हनुमान व श्री चित्रगुप्त की मूर्तियां थीं। चूंकि जयपुर से इन मूर्तियों को उस समय लाने का कोई साधन नहीं था, इसलिए उन्होंने दो बैलगाड़ी खरीदी और उन पर मूर्तियों को लेकर सड़क के रास्ते छह माह में केराकत पहुंचे। मंदिर का निर्माण पहले से ही प्रारंभ था।

    मंदिर की विशेषताओं में एक यह भी प्रमुख है कि मंदिर की ऊंचाई जितनी ऊपर है उतनी ही जमीन के नीचे गहराई तक है। वर्ष 1868 के चैत्र की नवमी में मां काली की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा बड़े ही भव्य समारोह के साथ सम्पन्न हुई थी। राय परिवार ने वर्ष 1968 में मंदिर के सौ वर्ष पूरे होने पर शताब्दी समारोह का आयोजन किया था।