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    पहले शीतला चौकियां फिर विन्ध्याचल धाम

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    Updated: Sat, 05 Oct 2013 08:54 PM (IST)

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    जौनपुर: मां शीतला का दर्शन-पूजन चौकियां धाम में करने के बाद ही विन्ध्यवासिनी देवी का दर्शन करने पूर्वाचल के अधिसंख्य लोग जाते हैं। मान्यता है कि यहां के बाद ही वहां जाने पर लोगों की मनौती पूर्ण होती है। नवरात्र में गोरखपुर, देवरिया, बलिया, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, फैजाबाद, अंबेडकरनगर समेत कई जनपदों के श्रद्धालुओं का यहां तांता लगा रहता है।

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    जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर पूर्वोत्तर की दिशा में मां शीतला चौकियां धाम है। मार्कण्डेय पुराण में उल्लिखित 'शीतले तू जगन्नमाता, शीतले तू जगत्पिता, शीतले तू जगत्धात्री, शीतलाय नमो नम:' से शीतला देवी की पौराणिकता का पता चलता है। यह पावन स्थल स्थानीय व दूर-दराज से प्रतिवर्ष आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था एवं विश्वास का केंद्र बिन्दु बना हुआ है।

    यहां आने वाला हर श्रद्धालु मनवांछित कामना करके आता है। कोई मनौती मानने आता है तो कोई मनौती पूर्ण होने पर सोहारी और लप्सी चढ़ाता है। यहां वर्ष पर्यन्त शादी-विवाह, मुंडन और जनेऊ संस्कार भी होते रहते हैं। शारदीय और चैत्र नवरात्र में इतनी ज्यादा भीड़ हो जाती है कि स्थल कम पड़ जाता है।

    कथानक के अनुसार जब इब्राहिम शाह शर्की ने गोमती नदी के किनारे प्रेमराजपुर स्थित विजय मंदिर जो शीतला देवी का मंदिर था, को ढहवाने लगा तो कुछ हिन्दू भक्त शीतला देवी की मूर्ति उठा ले गए। उसे देवचन्दपुर में स्थापित कर दिया। वहीं शीतला देवी मंदिर धार्मिक स्थल के रूप में विख्यात हो गया। यहां समय-समय पर सौन्दर्यीकरण भी कराया जाता रहा है। प्रसिद्ध सरोवर, लक्ष्मी नारायण मंदिर इस देवी स्थल की रौनकता को बढ़ाते हैं। इस शक्ति पीठ पर पूजा तथा दर्शन करने के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, पं.कमलापति त्रिपाठी, श्रीप्रकाश जी, जय प्रकाश नारायण समेत कई दिग्गज राजनीतिज्ञ भी आ चुके हैं। हालांकि शासन और प्रशासन यहां की व्यवस्था पर ध्यान उतना नहीं दे रहा है जितना देना चाहिए।

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