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    कालपी में बनी थी अंग्रेजों से लोहा लेने की रणनीति

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 15 Aug 2017 03:00 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, उरई : 1857 की आजादी की लड़ाई की रणनीति कालपी में यमुना के किनारे ि

    कालपी में बनी थी अंग्रेजों से लोहा लेने की रणनीति

    जागरण संवाददाता, उरई : 1857 की आजादी की लड़ाई की रणनीति कालपी में यमुना के किनारे स्थित भवन में बनी थी। 1857 की लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया। अंग्रेजों की भारी पलटन झांसी की ओर कूच हुई तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बिठूर के नाना साहब, तात्या टोपे व अन्य जांबाजों के साथ कालपी में यमुना के किनारे इस विशाल भवन में बैठकर सेना को मजबूत करने और अंग्रेजों से लोहा लेने की रणनीति बनाई थी।

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    कालपी में यमुना के किनारे उस स्थान पर लगा शिलालेख गवाही दे रहा है, जहां पर मंत्रणा का पूरा ब्यौरा दिया गया। इतिहासकार बताते हैं कि सामरिक व युद्ध के लिहाज से कालपी को सबसे बेहतर केंद्र माना गया था, क्योंकि नवाब बांदा, बिठूर के नाना साहब व तात्या टोपे की रणनीति यह थी कि यमुना पर ही अंग्रेजों की फौज से लोहा लिया जाए। यहीं पर प्रथम आजादी की जंग की योजना बनाई गई थी। फिलहाल आजादी के बाद यह ऐतिहासिक धरोहर दरक रही है। इसकी गुंबद टेढ़ी हो चुकी है। जिला प्रशासन रख रखाव के नाम पर सीमेंट की लीपापोती कर दायित्व निभाने की खानापूर्ति कर रही है। इतिहास खंगालने में जुटे अयोध्या प्रसाद गुप्त 'कुमुद' और डीके ¨सह बताते हैं कि जिले में ऐसे कई स्थान हैं जहां पर देश की आजादी के लिए यहां के वीरों ने प्राणों की आहुति दी थी लेकिन वे गुमनामी में खो गए हैं।

    संग्रहालय से गायब हो गया रानी का बक्शा

    कालपी में जब रानी लक्ष्मीबाई शहीद हो गईं तो अंग्रेजों ने उनके उस स्थल पर छापामारी की, जहां वह ठहरी थीं। उस समय एक बक्शा मिला था जिसमें रानी की दो तलवारें और साड़ियां मिली थीं। इसकी बाकायदा फर्द बनी थी और एक संग्रहालय में बक्शा को रखा गया था । लेकिन, आज उस बक्शा का कोई अता-पता नहीं है। अंग्रेजों ने तो उसे संभाले रखा, लेकिन जब देश आजाद हो गया और अंग्रेज भारत छोड़कर भाग गए । तब हमारी सरकार उस धरोहर को सहेज कर न रख सकी।

    बिलाया में अंग्रेजों से बरजोर ¨सह ने लिया था लोहा

    सन 1857 की क्रांति में बिलाया भी युद्ध का मैदान रहा। यहां पर अंग्रेजों ने देश को आजाद कराने वाले वीर सपूतों के साथ युद्ध किया था। इस युद्ध स्थल पर कुछ भी नहीं बन सका, लेकिन यहां के क्रांतिकारी बरजोर ¨सह ने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे। हालांकि यहां से क्रांतिकारियों को हटना पड़ा था, लेकिन अंग्रेज बरजोर को गिरफ्तार नहीं कर सके थे। एक वर्ष तक अंग्रेजों को बरजोर ¨सह छकाते रहे और जब वह अस्वस्थ हो गए, तब अंग्रेजों के हाथ आए थे।

    भदेख किला को तोप से उड़ाया था अंग्रेजों ने

    रानी लक्ष्मीबाई के शहीद होने की खबर भदेख के राजा पारीक्षत को हुई तो उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था और जब उन्हें लगा कि वह अंग्रेजों से पार नहीं पा पाएंगे तो उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद उनकी रानी चंदोलन देव ने अंग्रेजों से युद्ध किया था। हालांकि इसके बाद अंग्रेजों ने तोप से भदेख का किला उड़ा दिया था।

    1857 की आजादी की क्रांति में सहाव में भी एक युद्ध हुआ था जिसमें क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को अपनी ताकत का एहसास कराया था। यह युद्ध एक माह तक चला था। बताते चलें कि सहाव में क्रांतिकारी एकत्रित होकर जब मंत्रणा कर रहे थे तो इसकी भनक अंग्रेजों को हो गई थी और उनकी फौज ने सहाव में आकर क्रांतिकारियों को ललकारा था । क्रांतिकारियों ने भी अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी थी। यहां पतराही के 22 जवान थे जिसमें कुछ शहीद हो गए थे । समय बीतने के साथ वे गुमनामी में खो गए।