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    पर्चे पर साल्ट नहीं दवा का नाम, तीन गुना दाम

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 24 Jun 2022 01:18 AM (IST)

    डाक्टर की ओर से लिखी गई कंपनियों की दवाएं नहीं मिलतीं जन औषधि केंद्रों पर साल्ट लिखें तो आसानी हो।

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    पर्चे पर साल्ट नहीं दवा का नाम, तीन गुना दाम

    संवाद सहयोगी, हाथरस : मरीजों को सस्ती दवाएं दिलाने के उद्देश्य से खोले गए जन औषधि केंद्र डाक्टरों के पर्चाें के फेर में फंसे हुए हैं। डाक्टर पर्चाें पर साल्ट न लिखकर ब्रांडेड दवाओं के नाम लिखते हैं, जो कि जन औषधि केद्रों पर नहीं मिलती। मजबूरन लोगों को बाहर से कई गुना महंगी दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। डाक्टर साल्ट लिखें तो सुविधाजनक हो।

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    जिला अस्पताल के डाक्टर हों या प्राइवेट डाक्टर, सभी पर्चाें पर साल्ट न लिखकर दवाओं के नाम ही लिखते हैं। जिला अस्पताल में भी कई डाक्टर बाहर की दवाएं लिख देते हैं। ज्यादातर प्राइवेट डाक्टरों के पर्चाें में तो लगभग सभी दवाओं के नाम ब्रांडेड कंपनियों के रहते हैं। जेनरिक दवाएं नाम मात्र की ही होती हैं। ऐसे में मरीजों के तीमारदार जिला अस्पताल और सादाबाद गेट स्थित जिले के दोनों जन औषधि केंद्रों पर पहुंचते हैं तो कुछ ही दवाओं के नाम और साल्ट के आधार पर उन्हें दी जाती हैं। शेष दवाएं वह बाहर के मेडिकल स्टोर से खरीदते हैं। कुछ लोग समझदारी दिखाते हैं और दवा की दुकानों से एक-एक पत्ते ही दवा लेते हैं, फिर उसी पत्ते को दिखाकर जेनरिक दवा सस्ते में ले जाते हैं। जेनरिक से तीन गुनी महंगी दवाएं

    निजी मेडिकल स्टोर पर ब्रांडेड कंपनियों की दवाओं के दाम जेनरिक दवाओं से तीन गुना अधिक होते हैं। बुखार की गोली का पत्ता जन औषधि केंद्र पर पांच रुपये का है, मगर वही पत्ता मेडिकल स्टोर पर 15 से 20 रुपये में मिल रहा है। लीवर का कैप्सूल जेनरिक स्टोर पर 14 रुपये का है जबकि मेडिकल स्टोर पर 35 रुपये तक है। डायबिटीज के लिए इंसुलिन के दाम जेनरिक स्टोर पर 72 रुपये का हैं, वहीं मेडिकल स्टोर पर 300 रुपये से अधिक में मिलती है। कमीशन का है खेल

    मेडिकल स्टोर पर महंगी दवाओं के पीछे कमीशन खोरी का खेल भी है। ब्रांडेड कंपनियां मोटा मुनाफा कमाने के लिए चिकित्सकों को दवा लिखने पर कमीशन देते हैं। इसीलिए चिकित्सक भी ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं। नियमानुसार डाक्टरों को दवाओं के नाम के बजाय साल्ट लिखने चाहिए। दवाओं के दाम में देखें अंतर

    दवा, जन औषधि केंद्र, निजी मेडिकल स्टोर

    मलेरिया किट, 12 रुपये, 50 रुपये

    लीवर का कैप्सूल, 14 रुपये, 35 रुपये

    डाइबिटीज कैप्सूल, 17 रुपये, 50 रुपये

    थायराइड टैबलेट की शीशी, 62 रुपये, 130 रुपये

    एसिडिटी का एक कैप्सूल, 1.5 रुपये, 7 रुपये

    पेट दर्द की दवा, 12 रुपये, 35 रुपये

    कैल्सियम सैसे, 9 रुपये, 30 रुपये

    मल्टीविटामिन एक टेबलेट, 3 रुपये, 10 रुपये

    दर्द का स्प्रे, 48 रुपये, 120 रुपये

    बीपी के टेबलेट, 5 रुपये, 15 रुपये

    इनका कहना है

    चिकित्सकों द्वारा पर्चे पर जो दवाएं लिखी जाती हैं उन पर साल्ट का नाम नहीं रहता है। इसीलिए पूरी दवाएं लोगों को उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। प्राइवेट मेडिकल स्टोर की अपेक्षा जन औषधि केंद्र की दवाओं के दाम तीन गुना कम हैं।

    -प्रवेंद्र सेंगर, जन औषधि केंद्र संचालक, जिला अस्पताल ग्राहक को पर्चे पर लिखी ब्रांडेड दवा से मिलते हुए साल्ट की दवा देते हैं तो वह लेते नहीं हैं। वह कंपनियों के नाम के आधार पर दवा मांगते हैं। इसलिए उन्हें दवा के लिए मना करना पड़ता है।

    - श्याम कुमार, जन औषधि केंद्र संचालक सादाबाद गेट साथी मरीज के हाथों में छाले की दवा लेने जिला अस्पताल आई थी। कुछ दवाएं अस्पताल की फार्मेसी में नहीं मिली। औषधि केंद्र पर भी नहीं है। साल्ट का नाम नहीं होने के कारण दवा बाहर से खरीदने जा रहे हैं।

    नीतू, ग्राहक पत्नी को दवा दिलाने आया था। जो दवाएं लिखीं वो न अस्पताल की फार्मेसी में हैं न ही जन औषधि केंद्र पर। जन औषधि केंद्र पर यह गोली चार रुपये की बताई थी, लेकिन मौजूद नहीं थी। वह बाहर की दुकान पर 30 रुपये की मिली है।

    - बसीर, ग्राहक

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