सपा फिर खा रही ताव, खाता खोलने को हो रही बेताव... हाथरस की जंग फतह करने के लिए अखिलेश यादव का मास्टर प्लान
समाजवादी पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए हाथरस में सियासी जमीन तलाशनी शुरू कर दी है। अखिलेश यादव ने हाथरस आगरा और मथुरा के लिए अलग घोषणापत्र बनाने की बात कही है। सपा को 2012 के बाद हाथरस में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है। पार्टी अब जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश में है और इसके लिए कार्यकर्ताओं को सक्रिय रहने के निर्देश दिए गए हैं।

योगेश शर्मा, जागरण, हाथरस। भले ही विधानसभा चुनाव 2027 में हों, मगर मगर समाजवादी पार्टी हाथरस समेत कुछ जनपदों में अपना सियासी भविष्य तलाशने में जरूर जुट गई है। सपा मुखिया अखिलेश यादव का ये बयान कि हाथरस और आगरा एवं मथुरा के लिए अलग से घोषणापत्र बनाया जाएगा।
सपा हाथरस में सादाबाद की सीट 2012 में तब जीती जब प्रदेश में सरकार में थी उसके बाद जिले की तीनों सीटों पर खाता खोलने को बेताव रही है। हैरानी की बात ये है कि हाथरस में सपा लोकसभा क्षेत्र की सीट कभी नहीं जीत पाई।
एमवाई का फार्मूला भी जिले के प्रत्याशियों के लिए काम नहीं आ सका और हर बार हार को भी गले लगाना पड़ा।पार्टी मुखिया ने इन जिलों में जीत पक्की करने के लिए कार्यकर्ताओं के साथ मंथन किया है।
2012 में जिले से सादाबाद सीट ही जीत पाई थी सपा
उप्र में सपा का दबदबा रहा है। कई बार मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री रहे और फिर अखिलेश यादव 2012 में मुख्यमंत्री रहे थे। इस दौरान ही हाथरस के खाते में सादाबाद की सीट आई थी बाकी सिकंदराराऊ और हाथरस की सीट हार गई।
सादाबाद में 2012 में देवेंद्र अग्रवाल ने पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय के बहनोई सतेंद्र शर्मा को हराया था।ये जीत पूर्व मंत्री स्व. रामवीर उपाध्याय की प्रतिष्ठा से जुड़ी थी, लेकिन ठीक अगला चुनाव 2017 में समाजवादी पार्टी के देवेंद्र अग्रवाल को मात्र 29,060 मत मिले और वह चौथे नंबर पर आए।
एमवाई फार्मूला लाने के बाद प्रत्याशियों के लिए खेवनहार नहीं बन पाई सपा
दरअसल, इस सीट पर पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय का दबदबा रहा है। अतीत में मथुरा और अब हाथरस जनपद की विधानसभा सीट सादाबाद जाटलैंड या मिनी छपरौली के नाम से जानी जाती है। यहां पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी खाता खोल चुकी हैं।
जाट व ब्राह्मण बहुल इस सीट पर लगभग हर विधानसभा चुनाव में सियासी समीकरण बदलते रहे हैं। 1984 में बसपा का उदय होने के बाद बहुजन समाज पार्टी लगातार अपने प्रत्याशी उतारती रही है, लेकिन उसको सफलता 2017 के चुनाव में पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय की जीत रूप में मिली।
हाथरस और सिकंदराराऊ में भी नहीं खुला कभी खाता
शुरू से ही हाथरस की सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है। कई बार भाजपा चुनाव जीतती आ रही है। हालांकि 2022 में हुए चुनाव में सपा ने खूब जोर मारा मगर दूसरे नंबर पर आना तो दूर तीसरे नंबर पर आई और दूसरे नंबर पर बहुजन समाज वादी के प्रत्याशी रहे थे। भाजपा सदर से अंजुला माहौर ने जीत पाकर भाजपा की बादशाहत को कायम रखा था।
यही हाल सिकंदराराऊ विधानसभा क्षेत्र का रहा है। यहां मुस्लिम और यादव के साथ बघेल समाज की तादाद खूब है। सिकंदराराऊ विधानसभा सीट को जिताने के पहले तो सपा के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव जनसभा करने आते रहे और विगत चुनाव में सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने मोर्चा संभाल लिया था।
सांसद का चुनाव भी नहीं जीत सकी सपा
देश में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था। उसके हर पांच साल बाद लोकसभा चुनाव होता है। हालांकि समाजवादी पार्टी का उदय 1992 में हुआ था। मगर तब से लेकर आज तक एक भी सांसद का हाथरस से चुनाव नहीं जीत सकी। इस दौरान यूपी में मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की सरकार रही मगर दोनों के कार्यकाल में भी सांसद का एक भी चुनाव सपा के खाते में नहीं गया।
अखिलेश के बयान के बाद सुगबुगाहट तेज
बीते गुरुवार को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि, सपा अब उन सीटों और उन जिलों को लेकर विशेष तैयारी कर रही है जहां पार्टी कभी जीत नहीं सकी। इन जनपदों में उन्होंने आगरा, हाथरस और मथुरा का नाम लिया है। उन्होंने ये भी कहा है कि इन जनपदों के लिए पार्टी अलग-अलग घोषणापत्र बनाएगी। उन्होंने पार्टी कार्यालय पर बैठक बुलाकर कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया है कि प्रत्येक कार्यकर्ता को सतर्क और सक्रिय एवं सावधान भी रहना होगा। वोट बनवाने और वोट डलवाने की पूरी रणनीति तैयार करनी होगी।
दावेदार बहुत, मगर जिताऊ कम
जनपद में तीन विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें सादाबाद, हाथरस और सिकंदराराऊ विधानसभा क्षेत्र हैं। इन तीनों में से हाथरस आरक्षित है। भले ही विधानसभा चुनाव में देरी हो मगर दावेदारी को लेकर सकि्रयता विधानसभा क्षेत्रों में शुरू हो गई है। अब तक आए दावेदारों में हवा हवाई ज्यादा और जमीन से जुड़े और सकि्रय होने के साथ हर वर्ग में पकड़ रखने वाले कम दिख रहे हैं।
ऐसे में सपा हाइकमान को जिताऊ उम्मीदवार को तलाशना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। हालांकि सपा मुखिया अखिलेश यादव कह चुके हैं कि सपा उसी दावेदार को टिकट देगी जो जिताऊ और पार्टी में सक्रिय रूप से काम कर रहा होगा। उसे बताना होगा कि उसकी जीत का आधार क्या होगा? आने वाले आवेदकों के बारे में पार्टी हाईकमान सर्वे कराएगी। ये सर्वे त्रिस्तरीय होगा। तीन टीमें दावेदारों की कुंडली सपा मुखिया को बताएंगी।
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