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    PCS Success Story: मां का सपना पूरा करने को शिक्षक की नौकरी छोड़ी, 13 साल की मेहनत के बाद अच्छेलाल बने पीसीएस

    Updated: Sat, 10 Aug 2024 05:05 PM (IST)

    शिक्षक की नौकरी पाने के बाद मां ने अच्छेलाल शर्मा से कहा था कि ये भी भला कोई नौकरी है। रुतबे वाली नौकरी तो वो होती है जब दो चार पुलिस वाले साथ चलते दिखाई दें। 13 साल की कडी मेहनत के बाद उन्होंने पीसीएस क्वालीफाई कर लिया और अब हाथरस में बतौर आबकारी इंस्पेक्टर हैं। उन्होंने मां का सपना पूरा करके दिखाया।

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    अच्छेलाल मिश्रा , इंस्पेक्टर आबकारी विभाग ।

    जागरण संवाददाता, हाथरस। ऐसा कम ही होता है कि यथा नाम और तथा गुण जैसा बन जाना। जी, हम बात कर रहे हैं हाथरस जिले के आबकारी विभाग में बतौर इंस्पेक्टर तैनात अच्छेलाल मिश्रा की। जिन्होंने मां का सपना पूरा करने को न सिर्फ शिक्षक की नौकरी छोड़ दी बल्कि लगातार 13 वर्ष तक मेहनत करके पीसीएस क्वालिटी फाई किया। मगर अफसर जिस मां का सपना अच्छेलाल मिश्रा ने सपना पूरा किया वह दुनियां छोड़कर चली गईं।

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    हालांकि, मां बेटे को अफसर बनने के लिए प्रेरित न करतीं तो वह पीसीएस नहीं शिक्षक ही रह जाते। आज के दौर में हर कोई सरकारी नौकरी की तरफ भाग रहा है। मगर एक ऐसा शख्स भी है जिसने मां के सपने को पूरा करने के लिए सरकारी नौकरी को ठोकर मार दी। शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

    मां ने बेटे से क्या कहा था? 

    दरअसल, शिक्षक की नौकरी पाने के बाद मां ने बेटे से कहा, ये भी भला कोई नौकरी है। रुतबे वाली नौकरी तो वो होती है जब दो,चार पुलिस वाले साथ चलते दिखाई दें। इस नौकरी को छोड़ दिल्ली जाकर पीसीएस की तैयारी कर ताकि रुतबे वाली नौकरी मिले।  मूलत: प्रतापगढ़ के गांव बिरौती, गांव पट्टी के रहने वाले अच्छेलाल मिश्रा ने गांव से प्राइमरी की पढ़ाई और फिर इंटरमीडएट गांव से 10 किलोमीटर दूर पृथ्वीपाल सिंह इंटर कालेज से की।

    इसके बाद बीए और एमए इलाहाबाद यूनिर्विटी से की। बीएड करने के बाद जब अच्छेलाल मिश्रा की नौकरी बतौर शिक्षक प्राइमरी स्कूल में लगी और खबर मां दुर्गावती मिश्रा को हुई वह बेटे से अवधी भाषा में बोलीं, बिटिवा नौकरी उन ठीक होत है जैम्हे रुतवा होत है। दरअसल, उस नौकरी को रुतवा वाली नौकरी माना जाता है जिस अधिकारी के साथ दो, चार पुलिस वाले साथ चल रहे होते हें।

    इस बात को सुनने और मां के इसी सपने को साकार करने के बाद अच्छेलाल मिश्रा ने ठान ली कि नौकरी ऐसी ही करेंगे। प्राइमरी स्कूल में डेढ़ वर्ष नौकरी की और फिर छोड़ दी। इसके बाद टीजीटी करने के बाद कुछ साल हिंदी लेक्चर की नौकरी की साथ में पीएसएस की तैयारी भी जारी रखी। हिंदी लेक्चर नौकरी केंद्रीय विद्यालय की उनको कई शहर भी बदलने पड़े। उनकी तैनाती असम, झांसी,राजस्था और डूगरपुर और पठानकोट में भी रही।

    13 साल की कडी मेहनत के बाद उन्होंने पीसीएस क्वालीफाई कर लिया और अब हाथरस में बतौर आबकारी इंस्पेक्टर हैं। उन्होंने मां का सपना पूरा करके दिखाया। अब जब वह भी कहीं दबिश देने जाते हैं तो दो,चार पुलिस वाले साथ में होते हैं।

    चार भाइयों में एक और भाई सशस्त्र सीमा बल में है। इस सपने को साकार होने से पहले मां ने दुनिया को अलविदा कह दिया। मां के चरणों में समर्पित कर चुके नौकरी के पूरे संघर्ष की कहानी को बयां करते अच्छेलाल मिश्रा की आंखें भर आती हैं। वाकई वह आज के समाज उदाहरण है। मां के प्रति उनके सेवाभाव को जिला आबकारी अधिकारी कृष्ण मोहन और साथी इंस्पेक्टर क्षितिज कुमार और कुलदीप चौहान ने एक मिसाल बताया है।

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