संस्कारशाला -कर्तव्य के निर्वहन से संवरता है जीवन
मानव को यथाशक्ति और आवश्यकतानुसार कार्य करना ही उसका कर्तव्य पालन कहलाता है। मानव जीवन कर्तव्यों का भंडार है उसके कर्तव्य उसकी अवस्थानुसार छोटे और बड़े होते हैं।
मानव को यथाशक्ति और आवश्यकतानुसार कार्य करना ही उसका कर्तव्य पालन कहलाता है। मानव जीवन कर्तव्यों का भंडार है उसके कर्तव्य उसकी अवस्थानुसार छोटे और बड़े होते हैं। इनको पूर्ण करने से जीवन में उल्लास, आत्मिक शांति और यश मिलता है। विद्यार्थी जीवन में गुरु की आज्ञा ही उसका कर्तव्य बन जाता है। युवावस्था में उसके कर्तव्य परिजनों, पड़ोसियों के अतिरिक्त राष्ट्र के प्रति भी हो जाते हैं। उसके कंधों पर समाज और राष्ट्र की उन्नति का भार आ पड़ता है।
जो लोग अपने कर्तव्य का निर्वाहन सही तरह से नहीं करते, उनके पास जीवनभर दुखी होने के अलावा कुछ नहीं होता। इसलिए इंसान को हमेशा अपने कर्तव्य कभी नहीं भूलने चाहिए। क्योंकि कर्तव्यों के जरिए ही वे अपनी पहचान समाज में बना सकते हैं। जिस प्रकार प्रत्येक शासक का कर्तव्य अपने शासितों की रक्षा करना है, उसी प्रकार उनका कर्तव्य भी उसकी मंगल कामना करना है। शिक्षक का कर्तव्य अपने छात्रों से अज्ञानता का आवरण हटाकर उन्हें आदर्शवादी बनाना है। यही सब मानव के कर्तव्य हैं। इनको पूर्ण करने के लिए उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उसको प्राकृतिक शक्तियां कर्तव्य का पालन से पूर्ण सहयोगी देती हैं।
मनुष्य अपने कर्मों से ही महान बनता है। कर्महीन मनुष्य जीवन में कुछ नहीं कर पाता। कर्तव्य परायणता मनुष्य को महान बनाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने कर्तव्य कभी नहीं भूले। अपने कर्तव्य और आज्ञा पालन के लिए वे जंगल में दर-दर भटकते रहे, कितु अपने पिता के वचनों का सम्मान किया। राम जैसा चरित्र दुनिया में दूसरा देखने में नहीं आता। राम का त्याग और बलिदान सबसे श्रेष्ठ है।
कर्तव्य पालन ही एक ऐसी वस्तु है जिसके द्वारा हम अवर्णनीय आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं। इसके आनन्द से मस्त मानव मातृभूमि की रक्षा हेतु हर्षित मन से फाँसी के तख्ते पर लटक जाता है। उसकी अमरगाथा पुष्प- पराग के समान सर्वत्र फैल जाती है। अत: प्रत्येक मानव को कर्तव्य के पालन में हमेशा दृढ़ रहना चाहिए।
-नीरू गुप्ता, प्रधानाचार्य, एमएलडीवी पब्लिक इंटर कॉलेज, हाथरस।
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