भारत में हींग का हब यूपी का हाथरस, जिसको मिला है GI टैग... जानें अंग्रेज इसको 'शैतान का गोबर' क्यों कहते थे?
Hathras भारतीय व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने वाली हींग को अब विश्व स्तर पर पहचान मिल चुकी है। 31 मार्च 2023 को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) रजिस्ट्री द्वारा प्रदेश के दस उत्पादों की एक सूची जारी की गई है जिनमें से एक हाथरस की हींग को भी यह उपलब्धि हासिल हुई है।

निर्मल पारीक, नई दिल्ली: भारत के करोड़ों लोगों के रसोई की महक और भारतीय व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने वाली हींग को अब विश्व स्तर पर पहचान मिल चुकी है। 31 मार्च, 2023 को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) रजिस्ट्री द्वारा प्रदेश के दस उत्पादों की एक सूची जारी की गई है, जिनमें से एक हाथरस की हींग को भी यह उपलब्धि हासिल हुई है। बता दें, इस उपलब्धि से हाथरस में लगभग 100 करोड़ से भी ज्यादा के हींग कारोबार को रफ्तार मिलेगी। जीआई टैग मिलने से देश-दुनियां में हाथरस के हींग की मांग बढ़ेगी, जिससे इसका कारोबार करने वालों लोगों को फायदा होगा। वहीं, यूपी सरकार ने हाथरस के हींग को 'एक जिला, एक उत्पाद' योजना में भी शामिल किया है।
जानकारी के लिए बता दें कि जिले में हींग की लगभग 100 फैक्ट्रियां हैं, जिनमें हींग तैयार किया जाता है। अकेले हाथरस जिले में 15 हजार से अधिक लोग सीधे इस कारोबार से जुड़े हुए हैं। यहां की हींग की क्वालिटी और शुद्धता के चर्चे पूरी दुनिया में है। इस मसाले की महक इतनी तीखी है कि जब अंग्रेजों ने इसके बारे में जाना तो इसे "Devil's Dung" यानी "शैतान का गोबर" कहा। हाथरस में यह कारोबार 150 वर्षों से किया जा रहा है।
दुनिया में कहां पाया जाता है हींग?
दुनिया में हींग का पौधा प्रमुख रूप से ठंडे प्रदेशों में पाया जाता है। इसके अलावा कुछ-कुछ यह औसतन कम ठंडे प्रदेशों में भी पाया जाता है। जैसे ईरान-सूडान। वैसे तो यह प्रमुख रूप से अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान में होता है। यहां यह बर्फ के पहाड़ों पर प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। यह एक प्रकार का पौधा होता है, जिसकी जड़ों से मिलने वाली राल के जरिए हींग बनाया जाता है। हींग की एक तेज महक होती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें, अंग्रेजी में हींग को 'Asafoetida' कहते हैं, जो पारसी के शब्द Asa (मतलब गोंद) और लैटिन के Foetida (मतलब तेज गंध) से मिलकर बना है। हींग की महक या गंध इतनी तेज होती है कि अगर हाथ में लग जाए तो चाहे जितना धो लें, यह लंबे समय तक बनी रहती है। इसके अलावा एक रोचक जानकारी यह भी है कि हींग हम जैसा खाते हैं उस रूप में नहीं होता है। शुद्ध हींग को अगर हम जीभ पर रख लें तो जलन शुरू हो जाएगी। इसलिए आम इंसान प्रोसेस्ड हींग ही खा सकते हैं।
हींग भारत में कैसे आई?
हींग 2500 ईसा पूर्व की प्राचीन मिस्र की कब्रों में पाया गया है, जो दर्शाता है कि यह तीखा, रालयुक्त पदार्थ तब तक अच्छी तरह से स्थापित हो चुका था। हिंग 600 ईसा पूर्व में अफगानिस्तान से भारत आया था और उस समय के हिंदू और बौद्ध ग्रंथों में इसका उल्लेख है। इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, जिसे लगभग 300 ईसा पूर्व लिखा गया था। वहीं, उत्तर प्रदेश के जिले हाथरस में हींग का इतिहास 150 साल पुराना है।
भारत में हींग की किस्में
भारत में हींग की दो किस्में उपयोग की जाती हैं: लाल और सफेद। सफेद हींग अफगानिस्तान में उगाई जाती है और पानी में घुलनशील होती है, जबकि अन्य जगहों पर उगाई जाने वाली लाल हींग तेल में घुलनशील होती है। कुछ समय पहले तक भारत में लगभग 90 हींग का आयात अफगानिस्तान से होता था। लकिन, अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद से इसके आयात पर भी प्रभाव पड़ा है, वहीं इसकी कीमतें भी दुगनी हो गयी हैं।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा हींग उपभोक्ता है
दुनिया का सबसे बड़ा हींग उपभोक्ता भारत ही है, लेकिन आज तक इस देश में कभी हींग नहीं उगायी गई। लगभग दो साल पहले, हिमालय क्षेत्र के ठंडे रेगिस्तानी हिस्से में, किसानों ने घोषणा की कि वे अपने स्वयं के लिए हींग की खेती करेंगे। हींग उगाने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है। अगर भारत अपनी खुद की खेती करने का प्रबंधन करता है, तो इसका मतलब हो सकता है कि प्रति वर्ष लगभग 100 मिलियन डॉलर की बचत होगी।
भारतीय खाने में हींग का इस्तेमाल प्रमुखता से किया जाता हैं जो कि भोजन में महक लाने के साथ ही इसके पाचन के लिए सही रहता हैं। आयुर्वेद में भी हींग को बहुत उपयोगी माना हैं, जो सेहत से जुड़ी कई तरह की परेशानियों को दूर कर सकता हैं। लेकिन अगर आप नकली हींग का इस्तेमाल कर रहे हैं तो फायदे की जगह शरीर को नुकसान हो सकता है।
क्या होता है जीआई (GI Tag) टैग?
आपकी जानकारी के लिए बता दें, यह एक भौगोलिक संकेत (जीआई) उन उत्पादों पर उपयोग किया जाने वाला एक संकेत है जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति होती है और उस मूल के कारण गुणवत्ता या प्रसिद्धि होती है। यह किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडिकेशन कहते हैं। एक तरह से देखा जाए तो जीआई टैग अपने आप में किसी भी उत्पाद और स्थान विशेष के लिए बड़ी उपलब्धि है।
यह अधिनियम 1999 में पारित हुआ
भारत की संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया। जिसे Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999 कहा जाता है। बता दें, इसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ। इसके लिए राज्य सरकारों की ओर से उत्पाद की समस्त जानकारी और विशेषताओं के साथ आवेदन किया जाता है। यदि उत्पाद स्थान विशेष का उत्पाद के लिए विशेष महत्व होता है तो जीआई प्रमाणन जारी कर दिया जाता है।
'एक जिला एक उत्पाद' (ODOP) योजना क्या है?
यूपी सरकार ने हाथरस के हींग को 'एक जिला एक उत्पाद' योजना में भी शामिल किया है। 24 जनवरी, 2018 के दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा 'एक जिला एक उत्पाद योजना' लॉन्च की गयी थी। अंग्रेजी भाषा में इस योजना को 'One District One Product' योजना भी कहा जाता है। इस योजना के तहत जिसके द्वारा उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का अपना एक प्रोडक्ट होगा, जो उस जिले की पहचान बनेगा। यह बिजनेस सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) के श्रेणी में रखा गया है। इस योजना का उद्देश्य जिले के छोटे, मध्यम और परंपरागत उद्योगो का विकास करना है।
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