विदेश में महकेगी हाथरस की हींग, GI टैग मिलने से चहके कारोबारी, सौ करोड़ सालाना कारोबार, 150 साल पुराना व्यापार
हींग को भी मिला सहारा हाथरस की पहचान हींग से है। करीब पचास फैक्ट्री में इसे तैयार किया जाता है। सौ करोड़ से अधिक का वार्षिक कारोबार है। इस उत्पाद को भी जीआइ टैग में शामिल किया गया है। हाथरस के गुलाब जल को जीआइ टैग मिल सकता है।

हाथरस, जागरण टीम। हाथरस जिले प्रमुख उत्पाद हींग को जीआइ टैग मिलने से हींग कारोबारियों में खुशी की लहर दौड़ गई है। ‘एक जिला एक उत्पाद’ से हींग को पहले ही विशेष पहचान मिल चुकी है। जीआइ टैग मिलने से इस उद्योग को पंख लगेंगे। उद्योग नगरी के रूप में हाथरस की पहचान कई दशक से है। शहर की पहचान हींग, रंग, गुलाल से रही है। इसे हींग नगरी व रंग नगरी के नाम से जाना जाता रहा है।
हींग का कारोबार है 150 साल पुराना
हींग का कारोबार यहां 150 साल से भी पुराना है। सरकार ने इसे वरीयता देते हुए ओडीओपी में शामिल किया। 60 से अधिक हींग की फैक्ट्रियों से 100 करोड़ रुपये से अधिक का सालाना कारोबार है। इस उद्योग से दो हजार से अधिक लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। एक साल से हींग को जीआइ टैग दिलाने के आवेदन लंबित थे। अब जीआइ टैग मिलने से हींग कारोबारियों में खुशी की लहर दौड़ गई है।
क्या होता है जीआई टैग
किसी भी क्षेत्रीय उत्पाद की वहां खास पहचान हो। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया को जीआइ टैग यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन कहते हैं।
जीआई टैग मिलने से देश-विदेश में महकेगी हाथरस की हींग
हींग को जीआइ टैग मिलने से इसकी पहचान देश विदेश में होगी। अब सभी जगह हाथरस ही हींग उत्पाद के लिए पहचाना जाएगा। इससे इस कारोबार को प्रगति मिलेगी। बांकेविहारी अग्रवाल, हींग कारोबारी
हींग को जीआइ टैग दिलाने के लिए काफी समय से प्रयास चल रहा था। कई बार आवेदन किए गए। एक साल से इसके लिए आवेदन पर विचार चल रहा था। मनोज अग्रवाल, हींग कारोबारी
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