सात समंदर पार महक रही हाथरस की चकोरी
जागरण विशेष सब हेड -कम लागत में अधिक पैदावार कर रहे हैं किसान गेहूं धान व आलू से हटकर कर रहे खेती बदलाव -तेजी से बढ़ रहा है रुझान 40 से अधिक गांव में हो रही पैदावार एटा की कंपनी खरीद कर भेज रही दूसरे देशों में
विनय चतुर्वेदी, सिकंदराराऊ : कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी भाव के कारण आलू, धान और गेहूं से घाटे उठाने वाले किसानों का रुझान अब चकोरी की खेती की ओर बढ़ रहा है। जिससे कम लागत में अधिक मुनाफा हो रहा है। चकोरी का निर्यात रूस, जापान, अमेरिका व दक्षिणी अफ्रीकी जैसे देशों में हो रहा है।
14 साल में 2300 बीघा बढ़ी
यही वजह है कि चकोरी का रकबा चार गुना से अधिक बढ़ा है। 2005 में इसकी शुरुआत हुई थी। तब पांच सौ बीघा में हुई थी जो 2019 में बढ़कर 2800 बीघा हो गई है।
इन गांवों में हो रही पैदावार
ग्राम खेड़ा सुल्तानपुर, कोड़रा, नगला मांधाती, बरसामई, गुदमई, बाड़ी, गोपालपुर, हसायन, रामपुर, महमूदपुरा, हरचंदपुर, कचौरा, जिरौली, गुरैठा सुल्तानपुर, शंकरपुर, किशनपुर आदि 40 से अधिक गांवों में चकोरी की खेती हो रही है। इसका बीज मुरली कृष्णा प्राइवेट लिमिटेड की ओर से उपलब्ध कराते समय ही कच्ची फसल का भाव भी तय कर दिया जाता है। वर्तमान में 435 रुपये प्रति कुंतल पर तय किया है। चकोरी की खेती को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। बोआई अक्टूबर-नवंबर में होती है और अप्रैल-मई तक फसल तैयार हो जाती है।
खर्च, लागत व मुनाफा
इसकी खेती में बीज खरीदने से लेकर खोदाई तक प्रति बीघा करीब आठ हजार रुपये आता है। एक बीघा में करीब 35 से 40 कुंतल पैदावार होती है। 435 रुपये प्रति कुंतल से लगभग 18 हजार रुपये बीघा की फसल बैठती हैं। आठ हजार रुपये खर्च निकालने पर 10 हजार रुपये प्रति बीघा की बचत हो जाती है।
लागत व आय में अंतर
गेहूं की फसल पर प्रति बीघा 2500 रुपये और चकोरी पर 8000 रुपये प्रति बीघा आती है। गेहूं की एक बीघा फसल 6800 रुपये व चकोरी की 18000 रुपये होती है।
मार्केटिंग की समस्या नहीं
फसल को हाथरस रोड स्थित मुरली कृष्णा चकोरी प्लांट पर आसानी से खरीद लिया जाता है। कंपनी के एटा स्थित कारखाने से नेस्ले इंडिया के अलावा साउथ अफ्रीका, रूस, जापान, अमेरिका, थाईलैंड आदि देशों में भी निर्यात भी करती है।
किसान बोले
पहली बार कम मात्रा में चकोरी बोई थी। अच्छा फायदा हुआ तो दायरा बढ़ता गया। पिछले कई वर्षों से चकोरी की खेती कर रहा हूं।
सत्यवीर सिंह, किसान अच्छी बात ये है कि बोआई के समय फसल का मूल्य पता चल जाता है। उसके बाद मूल्य बढ़ा तो देते हैं, लेकिन घटाते नहीं हैं। इस बार 435 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित किया था।
महेंद्र सिंह, किसान
वर्जन
चकोरी में किसानों को किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती है। फसलों की बोआई कम कर चकोरी की खेती कर रहे हैं। इसमें किसानों को आíथक नुकसान नहीं उठाना पड़ता।
अमन वाष्र्णेय, संचालक
मुरली कृष्णा प्राइवेट लिमिटेड सिकंदराराऊ वर्जन
चकोरी की खेती पूरे जिले में नहीं बल्कि सिकंदराराऊ क्षेत्र और पड़ोसी जनपद एटा में ज्यादा होती है। इसकी पैदावार से किसान को अच्छा मुनाफा मिलता है।
डिपिन कुमार, जिला कृषि अधिकारी, हाथरस
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।