मनरेगा लोकपाल ने नहीं किया मुआयना
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जागरण संवाददाता, हाथरस :
मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने मनरेगा लोकपाल की नियुक्ति करीब छह माह पहले की थी। इसके बावजूद व्यवस्था में सुधार नहीं हो सका है। हाथरस में मनरेगा लोकपाल ने कब और कहां मनरेगा कार्यो और भुगतान का पर्यवेक्षण किया, कोई नहीं जानता। इससे मनरेगा लोकपाल व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लग गया है।
मनरेगा के तहत जनपद में करीब 37 करोड़ रुपये का बजट होता है। करोड़ों का बजट होने के बाद भी मजदूरों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। न तो काम मिलता रहा है और न भुगतान। बसपा सरकार के दौरान यूपी के जिन 22 जनपदों में मनरेगा योजना में घोटाला हुआ, उनमें हाथरस भी शामिल है। घोटाला उजागर होने के बाद अब शासन ने जनपदों को सीधे धनराशि भेजने पर रोक लगा दी है। अब डिमांड के अनुसार मजदूरों और ठेकेदारों, निर्माण सामग्री विक्रेताओं के खातों में ही सीधे पैसा पहुंचेगा।
शासन ने करीब छह माह पहले मनरेगा के काम और मजदूरों के भुगतान पर नजर रखने, शिकायतें सुनने, पर्यवेक्षण करने और सुधार के लिए लोकपाल की नियुक्ति की। इन लोकपाल को सीधे मुख्य सचिव को अपनी रिपोर्ट भेजनी है।
शासन ने जनपद कासगंज के महेन्द्र पाल सिंह यादव को दो साल के लिए हाथरस का मनरेगा का लोकपाल बनाया। कहा जा रहा है कि नियुक्ति के बाद से वह आज तक जनपद में एक बार भी पर्यवेक्षण के लिए नहीं पहुंचे। उनके पास कासगंज का प्रभार भी है। सारा ध्यान अपने जिले कासगंज में ही रहता है।
डीआरडीए के पीडी उग्रसेन पांडेय का कहना है कि लोकपाल को उनके कार्य में पूर्ण सहयोग प्रदान किया जाएगा। मजदूरों के खाते में सीधे धनराशि आने से भी भ्रष्टाचार रुकेगा।
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