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    सूखे की दस्तक.. खून के आंसू

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    Updated: Sat, 05 Jul 2014 12:30 AM (IST)

    संवाद सहयोगी, हाथरस : सिकंदराराऊ तहसील क्षेत्र में पूरी तरह से सूखे के आसार दिख रहे हैं। किसानों को खून के आंसू रोने के लिए विवश होना पड़ रहा है। किसान के पास धान की फसल बोने के लिए समुचित साधन नहीं है, जो साधन है भी वह इतने महंगे साबित हो रहे हैं कि आम किसान के लिए धान की फसल पैदा करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। यही नहीं जिन किसानों ने पहले मक्का, बाजरा की फसल बोई थी वह भी सूखती चली जा रही है। जल स्तर नीचे गिरता चला जा रहा है। जिन नलों में पानी अभी तक आ रहा था वह भी जवाब देने लगे हैं। जिला प्रशासन री बोर के हैंडपंप ठीक कराने की बात तो कर रहा है, लेकिन यथार्थ में होता नजर नहीं आ रहा है पशुओं के लिए भी चारे का संकट होने लगा है। पशु पक्षी भी पानी के लिए भटकते नजर आ रहे हैं।

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    अभी तक जून और जुलाई माह में प्राय: बरसात होती रही है लेकिन इस वर्ष जून का माह पूरा सूखा ही बीत गया। जुलाई भी आरंभ हो गया है। काले बादल घुमड़ घुमड़ कर लौट जाते हैं लेकिन किसानों के आंसुओं पर कोई तरस नहीं खा रहा है। आलम यह है कि बरसात के इंतजार में अब बड़े बुजुर्ग और महिलाएं भी तप पर बैठ गई हैं फिर भी इन्द्र देवता तरस नहीं खा रहे हैं। इसके अलावा सूखा से निपटने के लिए बच्चे भी पूरा प्रयास कर रहे हैं टोलियों के साथ काले डंडा पीले डंडा भी निकालने की कोशिश की जा रही है लेकिन सभी प्रयास निरर्थक साबित हो रहे हैं आलम यह है कि गेहूं के बाद खाली पड़े खेतों में किसान धान की फसल के लिए काफी इंतजार कर रहा था। उसने धान की रोपाई के लिए पौध भी बो दी जो पानी के अभाव में पीली पड़ गई है। कुछ सम्पन्न किसानों ने कीटनाशक दवाओं एवं खेतों में नमी रखने के लिए दवा का भी उपयोग किया लेकिन सभी प्रयास इस सूखे के सामने बेकार चले गये हैं। प्रदेश के प्रमुख सचिव आलोक रंजन ने जिलाधिकारी से गुरुवार को वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से तैयारियों की समीक्षा की इसमें जिलाधिकारी और तहसील स्तर के अधिकारियों ने कोई खास बात शासन के सामने नहीं रखी। शासन भी जिलाधिकारी को सूखा के लिए जिम्मेदार बताकर अपना पल्लू झाड़ चुका है। आसमान छूते डीजल के दाम किसान की कमर तोड़ रहे हैं। किसान को अपने खेतों में धान की रोपाई करने के लिए कई घंटों पानी चलाना पड़ रहा है। इसके बाद भी जमीन इतनी सूखी हुई है कि घंटों का पानी खेतों में मालूम ही नहीं पड़ता है आलम यह है कि डीजल पम्प सैट से छोड़ा गया पानी एक दो घंटे तो खेत तक पहुंचने में ही लगा देता है ऐसी स्थिति में धान की फसल जीवित रख पाना किसान के लिए टेड़ी खीर साबित होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि तहसील क्षेत्र में जमीन दरकने लगी है जो पूरी तरह से सूखा के आने के संकेत दे रही है। यहां पर बरसा नाम मात्र को भी नहीं हुई है जब कि पड़ोसी जनपदों में बूंदा बांदी के साथ कभी कभी झमाझम बारिश भी हुई है लेकिन यहां एक दो बूंद के अलावा कभी भी इन्द्र देवता प्रसन्न नजर नहीं आए। यदि एक सप्ताह के अंदर बरसात नहीं हुई तो किसान के सामने रोजी रोटी के संकट के साथ साथ पशु चारे की भी व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जायेगी। जब इस सम्बंध में उपजिलाधिकारी सतीश पाल से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि सूखा का आंकलन करने के लिए लेखपालों को निर्देश जारी कर दिए गये हैं सूखा के लक्षण तो दिखाई दे रहे हैं लेकिन एक दो दिन में बरसात भी हो सकती है।

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