Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हरदोई की सावित्री देवी बनीं 38 लाख महिलाओं की प्रेरणा, जंगली घास से ब्रांडेड उत्पाद बनाने तक का रोचक सफर

    Updated: Sun, 23 Nov 2025 06:08 PM (IST)

    हरदोई की सावित्री देवी ने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और जंगली घास से हस्तशिल्प बनाकर स्वयं सहायता समूह बनाया। एचसीएल के सहयोग से उन्होंने लाखों महिलाओं को प्रेरणा दी और रोजगार दिलाया। उनके बनाए उत्पाद ऑनलाइन खूब बिकते हैं, जिससे महिलाओं को अच्छी आय होती है। सावित्री देवी आज महिला उद्यमिता की मिसाल हैं।

    Hero Image

    पंकज मिश्र, हरदोई। गांव के छोटे से घर की तंगहाली से जूझती सावित्री देवी आज लाखों महिलाओं के लिए उम्मीद, हिम्मत और संघर्ष का दूसरा नाम बन चुकी हैं। मजदूर पति की कमाई से मुश्किल से चलने वाली गृहस्थी के बीच उन्होंने हार मानने के बजाय अपने जीवन को नई दिशा देने का फैसला किया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जंगली घास, मूंज, कांस से शिल्पकारी सीखकर उन्होंने न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि स्वयं सहायता समूह की शक्ति से पूरे समुदाय की महिलाओं को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।

    एचसीएल की मदद से जब उनके सपनों को पंख मिले, तो इसी साधारण महिला ने असाधारण उपलब्धि हासिल करते हुए प्रदेश के 3.5 लाख स्वयं सहायता समूहों की 38 लाख महिलाओं के लिए प्रेरणा का दीप जला दिया। सावित्री देवी एक ऐसी मिसाल हैं, जो बताती है कि सशक्त नारी केवल अपना नहीं, पूरी दुनिया का भविष्य बदल देती है।

    उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के संडीला तहसील क्षेत्र में कछौना ब्लाक का एक छोटा सा गांव है मढोरा। इस गांव में अन्य परिवारों की तरह सावित्री देवी का भी परिवार रहता है। सावित्री के पति विजय कुमार के पास इतनी खेती-बाड़ी नहीं थी, जिससे परिवार का सही से गुजारा हो सके।

    युवतियों को मूझ से ढलिया बनाना सीखाती सावित्री। जागरण

    तंगहाली में परिवार का सही से गुजारा नहीं हो पा रहा था। सावित्री देवी परिवार संवारने के लिए आगे आईं। जब उन्होंने घर की दहलीज लांघी तो पहले घरवालों ने भी उनका विरोध किया, लेकिन सावित्री देवी आगे बढ़तीं रहीं। केवल कक्षा आठ तक पढ़ीं सावित्री देवी ने सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए उन्होंने वर्ष 2017 में एचसीएल से प्रशिक्षण लेकर 2018 में तुलसी महिला स्वयं सहायता समूह बनाया और फिर आगे बढ़ीं।

    सवित्री देवी ने हस्तशिल्प उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त किया, जो उनके पेशेवर जीवन की नींव बना। 2021 में सावित्री देवी ने समुदाय क्राफ्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई और उसमें अन्य महिलाओं को जोड़ा। मूंज, कांश जैसी स्थानीय जंगली घांसों, गेंहू की बाली के साथ-साथ पुराने सीमेंट और जूट बैग जैसी पुनर्चक्रित सामग्रियों का प्रयोग कर  ये महिलाएं अपनी निपुण कढ़ाई और सृजनशीलता के माध्यम से पर्यावरण-हितैषी और आकर्षक हस्तशिल्प उत्पाद तैयार करने लगीं।

    उनके उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला में लान्ड्री बास्केट, शापिंग और टोट बैग, ट्रैवल पाउच, कास्मेटिक बैग, फाइल फोल्डर, आईपैड स्लीव, मिनी ब्रीफकेस, वेस्ट पेपर बास्केट, गिफ्ट बाक्स, वाल प्लेट्स, कोस्टर, फाइल ट्रे, शिबोरी स्टोल, सिल्क दुपट्टे, ब्लाक प्रिंटेड काटन दुपट्टे, टी-शर्ट्स और रनिंग फैब्रिक शामिल हैं।

    ये उत्पाद लाइफस्टाइल ब्रांड्स द्वारा खूब पसंद किए जाते हैं और आनलाइन शापिंग साइट्स व एलीट होम स्टोर्स पर उपलब्ध हैं। चार घंटे दैनिक काम से औसतन 3,000 - 4000 रुपये मासिक कमाई होती है, जिससे महिलाएं वित्तीय स्वतंत्र बनीं। सावित्री देवी की लगन और मेहनत से प्रभावित होकर एचसीएल ग्रुप ने उन्हें आगे बढ़ाया।

    अब सावित्री नियमित रूप से महिलाओं को प्रशिक्षण देती हैं। एचसीएल ग्रुप आपरेशन हेड अनूप नारायण के निर्देशन में चल रही यह मुहिम महिलाओं की नेतृत्व क्षमता, वित्तीय स्वतंत्रता और सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा दे रही है। फील्ड डेवलपमेंट आफिसर संजू कुमारी के अनुसार यह पहल उत्तर प्रदेश के 3.5 लाख स्वयं सहायता समूहों में 38.5 लाख महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

    सावित्री देवी का जीवन दर्शाता है कि सच्चा सशक्तिकरण डिग्री से नहीं, बल्कि मेहनत, आत्मविश्वास और बदलाव की इच्छा से आता है। वे आज सतत आजीविका, महिला उद्यमिता और भारतीय पारंपरिक कलाओं के संरक्षण की अग्रदूत के रूप में कार्य कर रही हैं।

    संडीला में महिलाओं को जंगली घास व मूझ से उत्पादन बनाना सीखाती सावित्री। जागरण

    धैर्य पूर्वक किया काम और पाया मुकाम

    सवित्री देवी का सफर छोटे स्तर के प्रशिक्षण से शुरू हुआ। वह धैर्यपूर्वक ग्रामीण महिलाओं को उत्पादन, फिनिशिंग तकनीक और गुणवत्ता नियंत्रण का प्रशिक्षण देती थीं। धीरे-धीरे वे एक मास्टर ट्रेनर बनीं और गांवों तथा ब्लाकों में कौशल विकास व डिजाइन नवाचार कार्यशालाओं का संचालन करने लगीं।

    आज वह समुदाय क्राफ्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की निदेशक के रूप में 500 से अधिक महिला शिल्पकारों के केंद्रों का संचालन करती हैं। जहां वह उत्पादन, गुणवत्ता और महिलाओं के कल्याण की पूरी जिम्मेदारी निभाती हैं।

    एचसीएल फाउंडेशन के साथ जुड़ाव उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ लाया। इस सहयोग के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षण, कार्यशालाओं और प्रदर्शनियों में भाग लेने के अवसर मिले। उन्होंने पहली बार हवाई यात्रा कर बेंगलुरु में एक कार्यशाला और प्रदर्शनी में हिस्सा लिया, जहां उन्होंने खरीदारों और विक्रेताओं से सीधे मुलाकात की।

    यह उनके लिए गर्व और उपलब्धि का पल था। सवित्री की सबसे बड़ी पहचान उनकी गुणवत्ता के प्रति प्रतिबद्धता है। उनके मार्गदर्शन में तैयार किए गए उत्पाद आज बेहद आकर्षक, उच्च गुणवत्ता वाले और विश्व स्तर पर बिकने वाले हैं, जिन्होंने न केवल उनकी पहचान बनाई बल्कि ग्रामीण महिलाओं के आत्मसम्मान को भी ऊंचाई दी।

    एक नेता के रूप में सावित्री देवी आज सतत आजीविका, महिला उद्यमिता और भारतीय पारंपरिक कलाओं के संरक्षण के लिए कार्यरत हैं। वे इस बात की मिसाल हैं कि सच्ची शिक्षा डिग्री से नहीं, बल्कि मेहनत, आत्मविश्वास और परिवर्तन की इच्छा से मिलती है।

    डीएम अनुनय झा।

    सावित्री की राह में आईं सामाजिक परेशानियां

    सावित्री देवी का यह सफर आसान नहीं था। शुरुआत में गांव और समाज ने उनका मजाक उड़ाया कि वह घर से बाहर काम करने जाती हैं। पहले तो परिवार में पति विजय कुमार और ससुर का साथ नहीं मिला, और उनके विचारों की कोई अहमियत नहीं थी। लेकिन सवित्री ने हार नहीं मानी।

    आज वही लोग उनसे प्रेरणा लेकर काम में जुड़ना चाहते हैं, और उनका परिवार गर्व से उनका साथ देता है। पति और ससुर स्वयं उन्हें कार्यालय तक छोड़ने जाते हैं। अब घर के बड़े फैसलों में उनकी राय सबसे महत्वपूर्ण होती है।

    पति को भी रोजगार दिलाया

    सावित्री कहतीं कि उन्हें लगा कि कहीं पति के मन में यह न आए कि वह पत्नी की मेहनत की कमाई पर घर चला रहे हैं, इसके लिए उन्होंने पति को एक दुकान करवा दी है। पति दुकान कर रहे हैं।

    “सावित्री देवी ने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से न केवल अपने जीवन को बदला है, बल्कि समाज की अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है। सरकार की मंशा भी स्वदेशी उत्पादों और महिला स्वावलंबन को बढ़ावा देने की है।

    इसी उद्देश्य से ऐसे सभी स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित किया जा रहा है और हर संभव सहयोग उपलब्ध कराया जा रहा है। जिले में 20 हजार स्वयं सहायता समूह हैं, जिसमें से कई समूहों ने राष्ट्रीय फलक पर अपना परचम लहराया है। प्रशासन की तरफ से समूहों का पूरा उत्साह बर्धन किया जाता है।”
    --अनुनय झा, जिलाधिकारी, हरदोई (उत्तर प्रदेश)