मखाने की खेती ने बदली किस्मत, रामजीवन मालामाल
समिति बनाकर दो दर्जन से अधिक लोगों को दे रहे रोजगार - रोजगार पाकर लोगों की आर्थिक स्थिति में हो रहा सुधार

कछौना(हरदोई) : मखाने की खेती ने कछौना विकास खंड के गांव सेमराखुर्द के रामजीवन की किस्मत बदल दी। कभी आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे रामजीवन आज मालामाल हैं। दो दर्जन से अधिक लोगों की आर्थिक स्थिति को भी सुधार रहे हैं।
रामजीवन बताते हैं कि 12 वर्ष पहले आम लोगों की तरह जीवन जी रहे थे। अचानक ख्याल आया कि कुछ अलग करके परिवार के साथ-साथ अन्य लोगों को भी रोजगार दिया जाए। फिर क्या था, इंटरनेट मीडिया पर सर्च किया और विभागों से जानकारी की। इसके बाद मत्स्य जीवी सहकारी समिति महरी समसपुर के नाम से समिति बनाई, जिसमें 26 सदस्य बनाए। मनोज कुमार को कोषाध्यक्ष बनाया। उसके बाद समिति का पंजीकरण कराकर उप जिलाधिकारी संडीला के माध्यम से समसपुर के वृहद तालाब का 10 वर्षों के लिए 117 बीघे का पट्टा कराया, जिसमें कमल ककड़ी यानी मखाने की खेती शुरू की। मछली पालन भी करने लगे। पहले अनुभव की कमी के चलते नुकसान भी हुआ, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। वर्तमान समय में 10 एकड़ यानी 50 बीघे में मखाने की खेती लहलहा रही है।
रामजीवन बताते हैं कि मखाने की फसल लखनऊ में बेचते हैं साथ-साथ भसीड़ा की खोदाई जून से शुरू हो जाती है। मखाने की जड़ सब्जी बनाने के काम आती है। 50 से 80 रुपये किलो बिक्री होती है। मखाने बेचने से प्रति एकड़ तीन से चार लाख रुपये की कमाई होती है। साथ ही मछली पालन भी करते हैं, जिससे भी अच्छा मुनाफा होता है। अधिक बरसात होने से कभी-कभी नुकसान भी हो जाता है। मछलियां किसानों के खेतों चली जाती है, जिससे किसान उनका शिकार कर लेते है। बताते हैं कि गांव के 26 परिवारों की जिदगी इस व्यवसाय से जुड़ी है। परिवार खुशहाल है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है। जो किसान मखाने की खेती की शुरुआत करना चाहते है, उन्हें वह मखाने की खेती की पूरी जानकारी देते है। क्षेत्र के कटियामऊ और त्योरी गांव में भी मखाने की खेती की शुरुआत हो गई है। तीन फीट गहरे तालाब में की जा सकती है मखाने की खेती : रामजीवन बताते हैं कि खेत में तीन फीट गहरा तालाब बनाकर मखाने की खेती कर सकते हैं। जनवरी-फरवरी में मखाने की पौध लगाई जाती है, जो तीन महीने यानी जून जुलाई में मखाने निकलने की शुरुआत हो जाती है।

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