गांव में पहचान का प्रमाण न होने से परेशान प्रवासी
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हरदोई: परदेश से आए प्रवासी मजदूरों को गांव में भी ठिकाना नहीं मिल रहा है। वैसे तो वह रोजगार की तलाश में शहर गए थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि संकट के समय में जब गांव आएंगे तो काम के लिए उन्हें अपनी पहचान का आधार दिखाना होगा। बिना उसके न काम मिलेगा और न ही कोई सरकारी मदद। अधिकांश गांवों में ऐसे प्रवासी श्रमिकों के सामने ऐसी ही समस्या आ रही है। पड़ोसियों की मदद उनके दिन कट रहे हैं, परेशान श्रमिकों का कहना है कि उन्हें नहीं पता था कि गांव में ऐसा होगा, अगर ऐसा ही रहा तो फिर वापस जाना उनकी मजबूरी बन जाएगी।
लखनऊ मार्ग स्थित पचकोहरा निवासी संतराम परिवार के साथ करीब 12 वर्ष से दिल्ली में रहकर ठेला लगाता था। करीब 12 दिन पहले वह पत्नी व बच्चों को लेकर गांव आया, लेकिन उसका आधार कार्ड दिल्ली से बना था, तो उसे गांव में काम नहीं मिला। कमतू अपने तीन पुत्रों और एक पुत्री के साथ करीब 16 वर्षों से रिठाला दिल्ली में रहकर दिहाड़ी मजदूरी करते थे। परिवार की गाड़ी चल रही थी, लेकिन फैक्ट्री बंद हो जाने से किसी तरह गांव पहुंचे, पर गांव में उन्हें काम नहीं मिल सका। उनके राशन कार्ड, आधार कार्ड और बैंक खाता दिल्ली के हैं। ऐसे में उन्हें कोई भी मदद नहीं मिल पा रही है। लालपुर निवासी श्रीचंद 20 वर्ष से परिवार के साथ जालंधर में रहता था। गांव में कच्चा मकान छोड़कर गया था। 20 दिन पहले लौटकर आया तो देखा उसका मकान भी गिर गया और सिर छिपाने के लिए भी जगह नहीं बची। गांव में न रोजगार मिल पा रहा है और न ही राशन आदि। भाई की झोपड़ी में रह रहा श्रीचंद भाई और पड़ोसियों के सहारे उसके परिवार का पेट पल रहा है। पालपुर निवासी विनय अपनी पत्नी राधिका और तीन बच्चों के साथ लुधियाना से 14 वर्ष बाद लौटकर आया। बेरोजगार वहां पर भी हो गया था और गांव में भी उसे कोई काम नहीं मिला है। राशन और आधार कार्ड लुधियाना के होने के कारण उन्हें कोई मदद नहीं मिली। कहने के लिए यह चार प्रवासियों की परेशानी है लेकिन अधिकांश गांवों में ऐसा ही दिख रहा है। वर्षों से गांव छोड़कर गए श्रमिकों की गांव में कोई पहचान नहीं बची है ऐसे में वह दर दर भटक रहे हैं। परेशान प्रवासियों का कहना है कि ऐसा ही रहा तो फिर उन्हें लौटना पड़ेगा।