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    संडीला का शीतला मंदिर

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    Updated: Wed, 05 Oct 2016 06:49 PM (IST)

    हरदोई, जागरण संवाददाता : शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि में स्थित गदर्भ सवार शीतला मां के मंदिर में श्रद्धा

    हरदोई, जागरण संवाददाता : शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि में स्थित गदर्भ सवार शीतला मां के मंदिर में श्रद्धा व भक्ति भाव से मत्था टेकने वालों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। प्रत्येक याचक की खाली झोली भर जाती है। मंदिर के चारो तरफ अन्य देवी देवताओं के कई मंदिर स्थित है। इसके अलावा यात्रियों के रुकने के लिए भी कमरे हैं। यही राम जानकी मंदिर , राधा कृष्ण मंदिर व प्राचीन शिवाला है। मुख्य मंदिर के दाहिने और एक विशाल जलाशय है जिसमें मछलियां पली हैं। ऐसे सुरम्य वातावरण में भक्तजनों का साधना करने में मन रमता है। नवरात्र के पावन दिनों में नित्य प्रात: से शाम तक दर्शन करने वालों का मेला लगा रहता है।

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    ऐसे पहुंचें मंदिर

    मंदिर संडीला नगर में स्थित है। संडीला लखनऊ-दिल्ली मार्ग पर रेल व सड़क के मुख्य मार्ग पर स्थित है। यहां पर ट्रेन व रोड मार्ग से पहुंचा जा सकता है। नगर के मध्य में ही रेल मार्ग है। यहीं से बसों का आवागमन भी होता है। इसलिए ट्रेन व बस से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

    इतिहास

    प्रदेश की राजधानी लखनऊ से पश्चिम 54 किलोमीटर की दूरी पर शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि संडीला स्थित है। यह तहसील पूर्व में कभी नैमिषारण्य तीर्थ का हिस्सा थी । यहीं शांडिल्य ऋषि ने तपस्या की थी। कस्बे के पश्चिमी छोर पर एक विशाल सरोवर के किनारे करीब एक हजार वर्ष पुराना मां शीतला देवी का भव्य मंदिर है। ऐतिहासिकता के बारे में कहा जाता है कि शांडिल्य ऋषि के समय से ही यहां पर मां का वास है। ब्रिटिश शासन काल में एक बार एक अंग्रेज गर्वनर यहां शिकार खेलने आया । जहां उसने जंगल के बीच एक छोटी की मढि़या में देवी की मूर्ति देखी, जिस पर पूजन सामग्री व पुष्प चढ़े थे। यह मूर्ति गदर्भ सवार मां की मूर्ति थी, जो आज भी मौजूद है। यह मूर्ति कहां से अवतरित हुई इसकी कोई जानकारी नहीं है। मढि़या के निकट छोटा तालाब था जो आज भव्य सरोवर का रूप ले चुका है।

    विशेषता

    नवरात्र के अलावा इस मंदिर में प्रत्येक माह की अमावस्या को मेला लगता है। श्रद्धालु पहले आकर सरोवर में स्नान करते हैं। फिर मां की पूजा कर मनौती मानते हैं। इसके अलावा मांगलिक कार्य, मुंडन,यज्ञ, रामकथा आदि के आयोजन बराबर होते रहते हैं। नवरात्र पर निकलने वाली प्रभात फेरियां मंदिर तक गाजे-बाजे के साथ आती हैं। वहां पर आरती के साथ मां की पूजा अर्चना होती है।

    वास्तुकला

    मंदिर में वास्तुकला तो वैसे भी दर्शनीय है। कुछ वर्षों पहले तालाब के बीचो-बीच भगवान शिव की मूर्ति स्थापित की गई। मंदिर के सच्चे मन से आने वाले की मां हर मनौती पूरी करती हैं। मंदिर में आने वाले की मनौती अवश्य पूर्ण होती है। तालाब के चारो ओर विशाल परिसर में नगर पालिका द्वारा इंटर ला¨कग लगवा देने से इसकी शोभा और बढ़ गई है।

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    मंदिर के पुजारी राजबहादुर दीक्षित का कहना है कि ब्रिटिश हुकुमत के समय यह छोटे मढ़ में आला बना था जिसमें मां का वास था। बाद में अंग्रेज गवर्नर ने मंदिर के आसपास की भूमि की वसीयत लालता शाह के नाम कर दी। उन्होंने इस मंदिर को भव्य रूप प्रदान किया। इसके अलावा छोटे तालाब को भव्य रूप 1935 में प्रदान किया गया। तालाब के किनारे महिलाओं के लिए स्नानघर व बरादरी का निर्माण कराया गया।

    मंदिर की देखभाल करने वाले सुरेश का कहना है कि व्यवस्था के लिए शीतला माता सेवा समिति का गठन किया गया है। जिसका संचालन अनिल गुप्ता व राजकुमार गुप्ता करते हैं। बाकी सफ-सफाई व अन्य व्यवस्थाएं मां की कृपा से यह देखते हैं।