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    गंगा में शुरू हुई दुर्लभ डॉल्फिन की गिनती, पौराणिक कथाओं में भी है इनका जिक्र; जानिए कैसे होगी इनकी गणना

    By Prince SharmaEdited By: Geetarjun
    Updated: Mon, 02 Oct 2023 08:24 PM (IST)

    गंगा में डॉल्फिन की गणना सोमवार से शुरू हो गई। दो से छह अक्टूबर तक गणना में बिजनौर से गढ़मुक्तेश्वर और गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा बुलंदशहर के बीच डॉल्फिन की गिनती की जाएगी। इस बार एक बोट की बजाय दो बोट में टीमें डॉल्फिन की गणना करेंगी और उनकी जीपीएस लोकेशन सेट करेंगी। इसके बाद छह अक्टूबर को जीपीएस के माध्यम से गूगल मैप पर उनकी लोकेशन देखकर गिनती की जाएगी।

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    गंगा में अठखेली करती डालफिन। सौ टीम

    जागरण संवाददाता, गढ़मुक्तेश्वर। गंगा में डॉल्फिन की गणना सोमवार से शुरू हो गई। दो से छह अक्टूबर तक गणना में बिजनौर से गढ़मुक्तेश्वर और गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा बुलंदशहर के बीच डॉल्फिन की गिनती की जाएगी। इस बार एक बोट की बजाय दो बोट में टीमें डॉल्फिन की गणना करेंगी और उनकी जीपीएस लोकेशन सेट करेंगी।

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    इसके बाद छह अक्टूबर को जीपीएस के माध्यम से गूगल मैप पर उनकी लोकेशन देखकर गिनती की जाएगी। आठ अक्टूबर को गणना करने वाली टीम ब्रजघाट पहुंचेगी।

    पौराणिक ग्रंथों में भी है इन डॉल्फिन का जिक्र

    गांगेय डॉल्फिन विश्व में पाई जाने वाली दुर्लभ डॉल्फिन की प्रजातियों में से एक है। डॉल्फिन का वर्णन पौराणिक ग्रंथों एवं ऐतिहासिक पुस्तकों में भी मिलता है। स्तनधारी जीव होने के कारण यह नदी की सतह पर आकर सांस लेतीं हैं। श्वांस की ध्वनि के कारण ही इसको आमतौर पर सूंस या सुसु के नाम से भी जाना जाता है।

    घट रही है डॉल्फिन की संख्या

    किसी समय बड़ी संख्या में पाई जाने वाली गांगेय डॉल्फिन की संख्या अब घटकर केवल 3500 रह गई है। इसका मुख्य कारण प्रतिदिन नदियों का घटता जलस्तर और प्रदूषण है।

    टीमें कैसे गिनेंगी डॉल्फिन

    डब्लूडब्लूएफ विभाग के सीनियर कोऑर्डिनेटर संजीव यादव ने बताया कि इस बार डॉल्फिन की गणना के बारे में छह अक्टूबर के बाद ही सही स्थिति पता लगेगी। पिछले वर्ष की तरह इस बार भी जीपीएस सिस्टम से डॉल्फिन को लोकेट किया जा रहा है। दो टीमें डॉल्फिन की गणना कर रही हैं। जीपीएस से यह देखा जाएगा कि जो डॉल्फिन दोनों टीमों को दिखी हैं वह एक ही हैं या अलग-अलग लोकेशन पर हैं।

    गंगा नदी अभ्यारण्य घोषित

    वर्तमान में गांगेय डॉल्फिन भारत, नेपाल एवं बांग्लादेश में गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघना एवं करनाफुल्ली नदी में पाई जाती हैं। गांगेय डॉल्फिन का 80 प्रतिशत क्षेत्र भारत की सीमा में आता है। भारत में गांगेय डॉल्फिन को भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत कानूनी संरक्षण के साथ-साथ राष्ट्रीय जलीय जीव का दर्जा भी प्राप्त है।

    डॉल्फिन के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए 1991 में केंद्र सरकार द्वारा बिहार में सुल्तानगंज से कहलगांव के बीच 50 किमी लंबाई में फैली गंगा नदी को विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभ्यारण्य घोषित किया गया था। यूपी में डॉल्फिन के आवास संरक्षण की पहल करते हुए विश्व प्रकृति निधि भारत एवं वन विभाग के संयुक्त प्रयास से गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा बैराज के बीच की लगभग 100 किमी गंगा नदी को रामसर साइट 2005 में घोषित कराया गया था।

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    वर्षवार डॉल्फिन गणना

    2015- बिजनौर से गढ़मुक्तेश्वर- 11,

    गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा तक - 11

    2016- बिजनौर से गढ़मुक्तेश्वर- 13,

    गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा तक - 17

    2017- बिजनौर से गढ़मुक्तेश्वर- 17,

    गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा तक - 15

    2018- बिजनौर से गढ़मुक्तेश्वर- 18,

    गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा तक - 15

    2019- बिजनौर से गढ़मुक्तेश्वर- 18,

    गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा तक - 17

    2020- बिजनौर से गढ़मुक्तेश्वर- 31

    गढ़मुक्तेश्वर से नरौरा तक - 10

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