Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हापुड़ में प्री-मेच्योर शिशु की जान बचाने में डॉक्टरों का जंगी संघर्ष, कम वजन के कारण नाजुक हालत में था मासूम

    Updated: Thu, 27 Nov 2025 05:30 AM (IST)

    हापुड़ में डॉक्टरों ने एक समयपूर्व जन्मे शिशु को बचाने के लिए संघर्ष किया। कम वजन के कारण शिशु की हालत गंभीर थी। डॉक्टरों ने तत्काल इलाज शुरू किया और उसे NICU पर रखा गया। लगातार प्रयासों के बाद, शिशु की हालत में सुधार हुआ और डॉक्टरों ने उसकी जान बचाई। यह डॉक्टरों की तत्परता और मेहनत का परिणाम था।

    Hero Image

    बच्चे के स्वास्थ्य की जांच करतीं डा. हेमलता। जागरण

    जागरण संवाददाता, हापुड़। डाक्टर को पृथ्वी का भगवान कहा जाता है, यह बात उनके लिए अधिक सत्य हो जाती है जिसकी वह सांसों को वापस लौटा देते हैं। ऐसा ही एक मामला जिला अस्पताल में भी देखने को मिला है। पौने सात माह में पैदा हुआ मात्र एक किलोग्राम के बच्चे की जिला अस्पताल की सीएमएस व शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डा. हेमलता व उनके सहयोगियों ने अथक प्रयास कर उसकी जान बचा ली। जिससे बच्चे से स्वजन ने खुशी की लहर दौड़ गई है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सिंभावली के झड़ीना गांव के रहने वाले जानी की पत्नी रेनू ने 31 अक्टूबर की सुबह करीब नौ बजे गढ़मुक्तेश्वर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बच्चे को जन्म दिया था। वह बच्चा पौने सात माह में ही पैदा हो गया था। चिकित्सकों के अनुसार वह बेहद कमजोर था और उसका वजन मात्र एक किलोग्राम ही था।

    पैदा होते ही हालत नाजुक

    प्री-मेच्योर अवस्था में इतना कमजोर बच्चा होने के कारण उसकी हालत पैदा होते ही नाजुक बन गई थी। उसे सांस लेने में परेशानी होने के साथ-साथ अन्य समस्याएं होनी शुरू हो गई थीं। अस्पताल के चिकित्सकों ने उसे तत्काल जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया।

    गढ़ से वह बच्चा सुबह करीब साढ़े दस बजे जिला अस्पताल में पहुंच गया और उसे तत्काल एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया। नाजुक हालत की जानकारी प्राप्त होते ही डा. हेमलता स्वयं ही एसएनसीयू वार्ड में पहुंची और उन्होंने बच्चे का उपचार करना शुरू कर दिया। डा. हेमलता ने बताया कि जिस समय वह बच्चा भर्ती हुआ था, उस समय वह सांस तक लेने के लायक नहीं था।

    जिसके चलते उन्होंने सबसे पहले उसे आक्सीजन पर लिया। उन्होंने वह उनके साथियों ने लगातार उस पर 24 घंटे नजर बनाए रखी। उपचार के दौरान बच्चे का वजन आठ सौ ग्राम तक भी पहुंच गया था। लेकिन बुधवार को बच्चा स्वस्थ हो गया है। उन्होंने बताया कि दो से तीन दिन में बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएगा और उसे घर भेज दिया जाएगा।

    15 प्रतिशत ही बचती है ऐसे बच्चों की जान

    डा. हेमलता ने बताया कि पौने सात माह में पैदा होने वाले बच्चे यदि हृष्ट-पुष्ट होता है तो उसके बचने के 50 प्रतिशत संभावना होती है। लेकिन यदि इतने माह में बच्चा बेहद कमजोर स्थिति में पैदा होता है तो उसके बचने की संभावना मात्र 15 प्रतिशत ही होती है।

    उन्होंने बताया कि इस बच्चे को बचाने के लिए चुनौती की तरह लिया था। जिसमें उनके साथियों ने भी पूरा साथ दिया। बच्चे के स्वस्थ होने के बाद उन्होंने अपने सहयोगियों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को बधाई दी है।

    बाहर से भी स्वयं मंगवाई दवाई

    डा. हेमलता ने बताया कि कुछ दवाइयां ऐसी थीं जो बच्चे को देने के लिए अस्पताल में उपलब्ध नहीं थीं। ऐसे में उन्होंने बच्चे को बचाने के लिए स्वयं से ही बाहर से दवाई मंगवाईं और बच्चे को दीं। इस दौरान उन्होंने बच्चे का लगातार 27 दिन तक उपचार किया। उन्होंने बताया कि बच्चे के स्वस्थ होने की सूचना देते ही उसके स्वजन की आंखों में खुशी देखते ही बन रही थी।