प्रदूषण रुकेगा: प्रशासन की तैयारियां पूरी, पराली से किसानों की जेब होगी भारी
हापुड़ में पराली प्रबंधन अब किसानों के लिए आय का स्रोत बन रहा है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का कारण बनने वाली पराली अब उपयोगी है। कृषि विभाग पराली के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है जिससे किसान कटाई और मड़ाई का खर्च निकाल सकते हैं। पराली का उपयोग पशुओं के चारे खाद और उद्योगों में ईंधन के रूप में हो रहा है।

ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। पराली प्रबंधन एक दशक से सरकार और प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है। दिल्ली-एनसीआर में फैले प्रदूषण के लिए बड़े पैमाने पर पराली को जिम्मेदार माना जाता है। मजदूरों की कमी के कारण आजकल किसान मशीन से धान की कटाई करवाते हैं।
गेहूं के लिए खेत जल्दी तैयार करने के चक्कर में पराली में आग लगा देते हैं। ऐसे में पराली को उपयोगी बनाकर और धान की कटाई-मड़ाई-थ्रेसिंग का खर्च पराली से निकालकर पराली को जलने से रोकने की तैयारी है। प्रशासन ने पराली के चार उपयोगों पर अपनी व्यवस्था तैयार की है।
किसान धान के खेतों में गेहूं की बुवाई करते हैं। तापमान कम होने पर हल को तैयार होने में काफी समय लगता है। इस वजह से किसान जुताई करने की जल्दी में होते हैं। वे धान के अवशेषों के गलने का इंतजार नहीं करते। ऐसे में किसान पराली और उसके अवशेषों में आग लगा देते हैं। जिससे धान की जड़ें भी जल जाती हैं। इससे अगली फसल की बुवाई में कोई दिक्कत नहीं आती। कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों की इस समस्या के समाधान की तैयारी कर ली है।
पराली के लिए बाजार तैयार
कृषि विभाग के अधिकारी पराली प्रबंधन को लेकर कई बिंदुओं पर तैयारियों के साथ किसानों के संपर्क में हैं। एक ओर, पराली की बिक्री के लिए बाज़ार उपलब्ध कराया गया है। किसानों के सामने समस्या यह थी कि मज़दूरों से धान की कटाई करवाने में ज़्यादा खर्च आता था।
वहीं, पराली बेचने का कोई ज़रिया नहीं था। आजकल पराली कीमती हो गई है। खेतों से ही तीन से चार हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से पराली खरीदी जा रही है। इसका इस्तेमाल किसान ख़ुद पशुओं के चारे, सर्दियों में पशुओं के लिए बिछावन, पशुशाला, जैविक खाद के रूप में करते हैं।
वहीं, उद्योगों में बॉयलर में ईंधन के रूप में, गुजरात में सामान पैक करने और पंजाब में प्लाई बनाने में पराली का इस्तेमाल होता है। आसवनी में पराली का इस्तेमाल होता है। पौधों की नर्सरी तैयार करने वाले पराली खरीद रहे हैं। वहाँ इसका इस्तेमाल पौधों की जड़ों को बाँधने और उन्हें ठंड से बचाने के लिए ढकने में किया जाता है।
पराली की बिक्री से किसानों को धान की कटाई और मड़ाई की लागत निकालने में मदद मिलती है। इसी वजह से किसान अब मज़दूरों से धान की कटाई को प्राथमिकता देने लगे हैं। इससे खेतों में कम अवशेष बचते हैं। कंबाइन से कटाई में ज़्यादा अवशेष बचते हैं।
अनुमान है कि ज़िले में लगभग पाँच सौ एकड़ धान की कटाई कंबाइन से होगी। इसी आधार पर अधिकारियों ने 600 एकड़ के लिए डी-कंपोज़र मँगवाया है। इसकी आपूर्ति दिल्ली के पूसा संस्थान से हो रही है। इसके इस्तेमाल से धान की जड़ों और अन्य अवशेषों को खेतों में ही सड़ाया जा सकेगा।
हम कंबाइन से काटे गए खेतों का सर्वेक्षण करेंगे। उन्हें डी-कंपोज़र उपलब्ध कराया जाएगा। इसके लिए किसानों को फसल अवशेष न जलाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। खेतों में आग जलाने से मित्र कीटों और मृदा जीवों को नुकसान पहुँचता है। किसान अब विशेषज्ञों की सलाह मानकर उसी के अनुसार खेती कर रहे हैं।
- डॉ. अरविंद कुमार, प्रभारी कृषि विज्ञान केंद्र।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।