मोनाड यूनिवर्सिटी के मालिक विजेंद्र को फर्जीवाड़ा करने में महारथ है हासिल, जेल में रची फिल्मी साजिश
गाजियाबाद की जेल में बंद विजेंद्र हुड्डा को बाहर निकालने के लिए फर्जीवाड़ा किया गया। मोनाड यूनिवर्सिटी के मालिक विजेंद्र हुड्डा पर फर्जी डिग्री बेचने और सत्यापन के लिए स्पेशल डेस्क बनाने का आरोप है। एसटीएफ ने इस मामले को संगठित अपराध माना है। विजेंद्र हुड्डा 4200 करोड़ के बाइक-बोट घोटाले में भी शामिल था जिससे शिक्षा जगत में हड़कंप मच गया।

ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। गाजियाबाद में घटित घटना किसी उपन्यास की कथा सरीखी है। जिला कारागार में बंद किसी व्यक्ति को बाहर निकालने के लिए ऐसा फर्जीवाड़ा किया गया, जिसकी कहानी फिल्मों में ही देखी जा सकती है।
सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इस फर्जीवाड़ा का मुख्य सूत्रधार जेल में बंद विजेंद्र हुड्डा खुद ही था। उसको पेशी के बहाने लेने के लिए दो सिपाही निजी वाहन से पहुंचे थे। जेल प्रबंधन की सतर्कता से आरोपित बाहर नहीं आ पाया और दोनों सिपाहियों के खिलाफ कार्रवाई कर दी गई है।
दरअसल विजेंद्र हुड्डा फर्जीवाड़ा करने का मास्टरमाइंड है। वह और कोई नहीं, बल्कि मोनाड यूनिवर्सिटी का वही मालिक है जिसने तीन साल में पांच लाख से ज्यादा फर्जी डिग्री बेच डालीं और नौकियों के लिए आने वाले सत्यापन के लिए भी स्पेशल डेस्क बना रखी थी।
फर्जीवाड़ा से मचा हुआ है तहलका
मोनाड के मालिक विजेंद्र हुड्डा जेल में फर्जीवाड़ा में ही बंद है। वह एक के बाद एक-एक करके लगातार फर्जीवाड़ा करता रहा है। अपने धनबल और सत्ता तक पहुंच के चलते चाक-चौबंद फर्जीवाड़ा करने का माहिर है। वह बिजनौर से चुनाव लड़ चुका और फर्जीवाड़ा करके अकूत संपत्ति अर्जित की हुई है।
लोगों ने नटवरलाल की कहानी ही सुनी होंगी, लेकिन विजेंद्र की फर्जीवाड़ा करने की साजिश ऐसी होती हैं, कि एकाएक कोई उन पर शक नहीं कर पाता है। यों तो उसके खिलाफ फर्जीवाड़ा के आधा दर्जन से ज्यादा मामले हैं, लेकिन वह चर्चा में बाइक-बोट घोटाले से आया।
42 सौ करोड़ के बाइक-बोट घोटाले में विजेंद्र ने पहले साथियों के साथ मिलकर लोगों को ठगा। उसके बाद अपने साथियों के साथ ही ठगी करके विदेश भाग गया था। वहां से आकर जमानत प्राप्त की और दोबारा से फर्जीवाड़ा करने लगा।
फर्जीवाड़ा से शिक्षाजगत रह गया हतप्रभ
फर्जी डिग्री छापने-बेचने के मामले में विजेंद्र हुड्डा की यूनिवर्सिटी मोनाड से शातिराना खेल खेला। एसटीएफ सूत्रों के अनुसार उसने तीन साल में पांच लाख से ज्यादा फर्जी डिग्री बिक्री करा दी थीं। एसटीएफ को लैपटाप और डेस्कटाप से से मिले नंबरों के आधार पर अभी तक 20 हजार युवकों ने यूनिवर्सिटी में आकर अपना सत्यापन कराया है।
उन सभी की डिग्री फर्जी मिली हैं। इसके साथ ही एसटीएफ की जांच में सामने आया है कि यूनिवर्सिटी में छह लोगों की स्पेशल डेस्क बनाई हुई थी। जो युवक डिग्रियों को नौकरी के लिए लगाते थे, उनका सत्यापन यूनिवर्सिटी को आता था। डाक विभाग से साजिश करके ऐसी डाक को अलग करके स्पेशल डेस्क को दे दिया जाता था।
वहां से सत्यापित करके इनको भेज दिया जाता था। जिसमें डिग्रियों को विश्वविद्यालय रिकार्ड के अनुसार सही बताकर रिपोर्ट लगा दी जाती थी। वहीं साजिश रचकर यूनिवर्सिटी के एक कक्ष में आग लगा दी गई थी।
सत्यापन के बाद संबंधित डिग्रियों के रिकार्ड को आग में जला हुूआ दिखाते हुए एक रजिस्टर में अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली जाती थी। जिससे दोबारा गहन सत्यापन होने की स्थिति में जांच से बचा जा सके। एसटीएफ विजेंद्र हुड्डा को संगठित अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
हम भी विजेंद्र हुड्डा द्वारा जेल में रची गई साजिश पर नजर रख रहे हैं। आशंका है कि वह जेल से बाहर यूनिवर्सिटी फर्जीवाड़ा में शामिल कुछ संदिग्ध व बड़े लोगों से मिलने वाला था। हमारी टीम एक-एक बिंदु पर नजर बनाए है। जेल में पिछले दिनों उससे मिलने वालों की भी रिपोर्ट हमने मांगी है। हालांकि माना जा रहा है कि कुछ लोग अन्य कैदियों से मिलने के नाम पर जेल में विजेंद्र से मुलाकात करते थे। इस संबंध में जल्द ही जेल अधिकारियों के साथ बैठक की जाएगी।
- संजीव दीक्षित - डीएसपी-एसटीएफ लखनऊ
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।