Mini Haridwar Project: रख-रखाव के अभाव में बेकार हुई करोड़ों रुपये की परियोजनाएं, सिस्टम पर उठ रहे सवाल
हरिद्वार के विलय के बाद ब्रजघाट को मिनी हरिद्वार के रूप में विकसित करने की योजना थी। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद, व्यवस्थागत कमियों के कारण कई परियोजनाएं अधर में लटकी हैं। गंगा तट पर बने लेजर लाइट शो और जेटी बैरिकेड्स बेकार पड़े हैं, और मनोरंजन पार्क भी बंद है। गेस्ट हाउस भी अभी तक उपयोग में नहीं आया है। एसडीएम ने जांच के बाद कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
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हरिद्वार के विलय के बाद ब्रजघाट को मिनी हरिद्वार के रूप में विकसित करने की योजना थी।
राम मोहन शर्मा, ब्रजघाट। हरिद्वार के उत्तराखंड में विलय के बाद तीर्थनगरी ब्रजघाट को मिनी हरिद्वार के रूप में विकसित किया जा रहा है। इस परियोजना पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन व्यवस्थागत लापरवाही के कारण इनमें से कई परियोजनाएं शुरू से ही अधर में लटकी हुई हैं।
तीर्थनगरी गढ़मुक्तेश्वर का पौराणिक इतिहास धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। गंगा तट पर बसी तीर्थनगरी गढ़मुक्तेश्वर-ब्रजघाट को मिनी हरिद्वार के रूप में विकसित किया जा रहा है। मिनी हरिद्वार की तर्ज पर यहां आरती मंच, गंगा घाट, फव्वारा चौक, लेजर लाइट शो, जेटी बैरिकेड्स, मनोरंजन पार्क, गेस्ट हाउस, गंगा पुल, पार्किंग और गंगा किनारे रंग-बिरंगी और फ्लड लाइटें लगाई गईं।
हालांकि, इनमें से कई परियोजनाएं जर्जर अवस्था में हैं। गंगा तट पर लगा लेजर लाइट शो निर्माण के कुछ दिन बाद ही बंद कर दिया गया है। इसी तरह, तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए 1.8 करोड़ रुपये की लागत से लगाए गए जेटी बैरिकेड्स गंगा की बजाय ज़मीन पर पड़े हैं। गंगा के किनारे अतिक्रमण का शिकार हो रहे हैं।
इसी तरह, लगभग तीन करोड़ रुपये की लागत से बना मनोरंजन पार्क भी रखरखाव के अभाव में ताले में बंद है और पार्क से कई सामान चोरी हो चुके हैं। लगभग 15 साल पहले हाईवे के किनारे पार्किंग स्थल बनाया गया था, लेकिन पार्किंग स्थल सड़क से नीचा होने के कारण अक्सर उसमें पानी भरा रहता है।
नतीजतन, श्रद्धालुओं को अपने वाहन हाईवे या तीर्थनगरी की गलियों में पार्क करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे अक्सर जाम की स्थिति बनी रहती है। लगभग आठ साल पहले कार्तिक मेले के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ब्रजघाट में एक गेस्ट हाउस के निर्माण की घोषणा की थी।
गेस्ट हाउस बनकर तैयार हुए पाँच साल बीत चुके हैं, लेकिन इसे अभी तक किसी भी संस्था को किराए पर नहीं दिया गया है। नतीजतन, संबंधित विभागों के बीच समन्वय की कमी या निर्माण पूरा होने के बाद रखरखाव की ज़िम्मेदारी न होने के कारण ये परियोजनाएँ धूल फांक रही हैं। एसडीएम श्रीराम यादव ने बताया कि मामले की गहन जाँच के बाद संबंधित विभागों को पत्र भेजा जाएगा।
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