Hapur News: खाकी और बदमाशों के बीच लुका-छुपी के खेल, इनामी हत्यारा कई महीनों से पुलिस को दे रहा चकमा
हापुड़ जिले में दो इनामी बदमाश पुलिस को चकमा दे रहे हैं। एक आरोपी जीशान उर्फ डॉन अपनी पत्नी की हत्या के बाद से फरार है जबकि दूसरा हिस्ट्रीशीटर अजीत अपने पिता का हत्यारा है। दोनों पर 20-20 हजार का इनाम घोषित है लेकिन पुलिस अभी तक उन्हें पकड़ने में नाकाम रही है। पुलिस की कार्यशैली पर उठ रहे सवाल।

केशव त्यागी, हापुड़। 1978 में आई फिल्म डॉन का डायलॉग, "डॉन का इंतजार 11 देशों की पुलिस कर रही है, लेकिन डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है..." आज जिले में हकीकत बन गया है। ऐसी ही चुनौती पत्नी की हत्या करने वाले पति जिशान उर्फ डॉन और पिता की हत्या करने वाले हिस्ट्रीशीटर अजीत ने दी है। 20 हजार रुपये का इनामी डॉन पिछले पांच महीने से पुलिस को छका रहा है।
वहीं, 22 अगस्त को अपने पिता को दो गोलियां मारकर मौत के घाट उतारने वाला 20 हजार रुपये का इनामी अजीत भी पुलिस की पकड़ से बाहर है। हिस्ट्रीशीटर ने दोहरे हत्याकांड को अंजाम देकर जिले को दहला दिया है। यह इस बात का प्रमाण है कि हाईटेक पुलिस लुका-छिपी के खेल में अपराधियों से कई कदम पीछे है।
प्यार से हत्या तक डॉन का खौफनाक सफर
गढ़मुक्तेश्वर के मोहल्ला मदरसा निवासी जीशान उर्फ डॉन हापुड़ के मजीदपुरा में फलों का ठेला लगाकर गुजारा करता था। लेकिन उसकी जिंदगी में मोड़ तब आया जब उसका प्यार परवान चढ़ा। उसने अपने परिजनों को बताए बिना शाजिया नाम की लड़की से शादी कर ली।
सब कुछ फिल्मी लग रहा था, लेकिन हकीकत कड़वी निकली। करीब पांच महीने पहले, अप्रैल 2025 में जीशान शाजिया को चुपके से गढ़मुक्तेश्वर ले आया। रात के अंधेरे में वह शाजिया को मीरा रेती से सटे सुनसान जंगल में ले गया और उसके ही दुपट्टे से गला घोंटकर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी।
शव को जंगल में फेंककर फरार हो गया। पुलिस ने जीशान के भाई नफीस, फरमान, इरफान, भाभी रेशमा और मामा तस्लीम को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। लेकिन, मुख्य आरोपी डॉन पुलिस की पकड़ से बाहर रहा। उस पर 20,000 रुपये का इनाम घोषित था और हाल ही में अदालत के आदेश पर उसका मकान भी कुर्क कर लिया गया था।
पिता की हत्या से लेकर दोहरे हत्याकांड तक का काला इतिहास
अब बात करते हैं हिस्ट्रीशीटर अजीत की, जिसने 22 अगस्त 2025 को बाबूगढ़ थाना क्षेत्र के गाँव नूरपुर में मात्र 17 बीघा ज़मीन के ठेके को लेकर हुए विवाद में अपने 83 वर्षीय पिता राममेहर की दो गोलियां मारकर हत्या कर दी थी। अजीत की भाभी ने उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन वह फरार हो गया था।
उसकी गिरफ्तारी न होने पर पुलिस ने उस पर 20,000 रुपये का इनाम घोषित किया था, लेकिन दस दिन बीत जाने के बाद भी उसका कोई सुराग नहीं लगा है। अजीत का इतिहास पहले से ही खून से सना हुआ है। 17 अप्रैल 2006 को अजीत ने अपने साथियों के साथ मिलकर किसान सेवा सहकारी समिति कैली के तत्कालीन अध्यक्ष और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के प्रदेश महासचिव वीरेंद्र त्यागी उर्फ बबली और उनके दोस्त मुकेश त्यागी की मेरठ रोड पर दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी थी।
अजीत बुलंदशहर में दो और मुज़फ़्फ़रनगर में एक हत्या में शामिल रहा है। उसका नाम ज़िले के टॉप हिस्ट्रीशीटरों में गिना जाता है, फिर भी वह पुलिस को चकमा देता रहा है। अजीत की फरारी ने साबित कर दिया कि पुराने अपराधी नए अपराध करके भी बच निकलते हैं।
पुलिस की नाकामी, हाई-टेक दावों का खोखलापन
- पुलिस खुद को हाईटेक कहती है, लेकिन इन मामलों में न तो मुखबिर काम आते हैं और न ही निगरानी। एसओजी से लेकर थानों की पुलिस टीमें भी इलाके में तलाशी ले रही हैं। कुर्की, इनाम और तलाशी अभियान सब बेकार साबित हो रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि अपराधी पुलिस से कई कदम आगे हैं। देखना यह है कि क्या लुका-छिपी का यह खेल ऐसे ही चलता रहेगा, या पुलिस कोई बड़ा कारनामा कर दिखाएगी।
दोनों घटनाओं का पर्दाफाश करने के लिए टीमें लगा दी गई हैं। जल्द ही वांछित अपराधियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाएगा।
-ज्ञानंजय सिंह, एसपी
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